श्री रुद्राष्टकम् ( पीडीएफ ) | Sri Rudrashtakam (PDF)
परिचय
श्री रुद्राष्टकम् PDF 👇
श्री रुद्राष्टकम्: विधि, नियम, लाभ और निष्कर्ष
1. श्री रुद्राष्टकम् की विधि
- शुद्धि: सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें और भगवान शिव की मूर्ति, शिवलिंग या चित्र के सामने बैठें।
- पूजन सामग्री: भगवान शिव को बेलपत्र, सफेद फूल, जल, धूप, दीप, और चंदन अर्पित करें।
- ध्यान: भगवान शिव के शांत, निर्मल और करुणामय स्वरूप का ध्यान करें।
- पाठ: श्री रुद्राष्टकम् का पाठ करें। इसे भाव से पढ़ें और प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव की महिमा को अनुभव करें।
- प्रार्थना: अंत में भगवान शिव से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
- शांति मंत्र: पाठ के बाद "ॐ शांति शांति शांति" का उच्चारण करें।
2. श्री रुद्राष्टकम् के नियम
- नियमितता: रुद्राष्टकम् का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। इसे विशेष रूप से सोमवार को करना अति शुभ माना गया है।
- शुद्ध स्थान और आसन: स्वच्छ स्थान पर बैठकर पाठ करें। कुश या ऊनी आसन का उपयोग करें, जिससे एकाग्रता में सहायता मिलती है।
- पूजा सामग्री का उपयोग: भगवान शिव की पूजा में उचित सामग्री का उपयोग करें, जैसे बेलपत्र और सफेद फूल।
- सच्चे मन से पाठ: श्री रुद्राष्टकम् का पाठ करते समय श्रद्धा और विश्वास का भाव बनाए रखें।
- उपवास: सोमवार या प्रदोष व्रत के दिन उपवास रखकर पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
3. श्री रुद्राष्टकम् के लाभ
- शांति और मोक्ष की प्राप्ति: रुद्राष्टकम् का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है और व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
- सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ जीवन के कष्टों, दुखों, और परेशानियों को दूर करता है।
- मन की शुद्धि: भगवान शिव की स्तुति में यह पाठ मन को शुद्ध करता है और आंतरिक संतुलन बनाए रखता है।
- स्वास्थ्य और सुरक्षा: रुद्राष्टकम् का पाठ व्यक्ति को न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि स्वास्थ्य लाभ भी देता है।
- भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के भय, चिंता और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
- पारिवारिक सुख: भगवान शिव की कृपा से पारिवारिक जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
श्रीरुद्राष्टकम् - Shiva - Sri Rudrashtakam
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥
4. निष्कर्ष
श्री रुद्राष्टकम् भगवान शिव की स्तुति और उनके अनंत स्वरूप की आराधना का एक प्रभावशाली स्तोत्र है। इसका पाठ भक्तों को भगवान शिव के प्रति सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाता है और समर्पण की भावना को प्रबल करता है। यह स्तोत्र न केवल शिव की महिमा का गान है, बल्कि यह उनके अद्वितीय गुणों को भी वर्णित करता है जो भक्तों के जीवन को पवित्रता, सुख और शांति से भरता है।
रुद्राष्टकम् का नियमित पाठ करने से भक्त भगवान शिव के आशीर्वाद से समस्त बाधाओं से मुक्त होते हैं और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है। यह स्तोत्र हमें शिव की अपार कृपा का अनुभव कराता है और हमें उनसे जुड़े रहने की प्रेरणा देता है।
भगवान शिव की कृपा से सभी प्रकार की विपदाओं का अंत होता है, जीवन में शांति आती है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री रुद्राष्टकम् का पाठ भगवान शिव के प्रति हमारी भक्ति को और प्रगाढ़ करता है।
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