श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र ( पीडीएफ )
परिचय
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र एक पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। यह स्तोत्र उनके भक्तों को सुख, समृद्धि, शांति और सभी अभिलाषाओं की पूर्ति प्रदान करता है। इसमें श्री नारायण के विभिन्न रूपों और लक्ष्मी जी की महिमा का गुणगान है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाने वाला माना जाता है।
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मंत्र की रचना
इस स्तोत्र के ऋषि हैं भार्गव, छंद अनुष्टुप् है, और देवता लक्ष्मी-नारायण हैं। यह स्तोत्र मन की शुद्धि, अध्यात्मिक उन्नति और भक्तों के हर संकट को दूर करने के लिए अति प्रभावकारी है। इस स्तोत्र का पाठ करने से लक्ष्मी और नारायण की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति का अनुभव होता है।
करन्यास एवं अङ्गन्यास
इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले करन्यास एवं अङ्गन्यास का संकल्प किया जाता है, जिससे भक्त अपने शरीर के अंगों में दिव्य ऊर्जा का प्रवाह अनुभव कर सकते हैं। यह संकल्प भक्त के मन, हृदय और शरीर को साधना के लिए तैयार करता है।
ध्यान
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ करते समय ध्यान करने का भी विशेष महत्व है। भगवान नारायण का ध्यान करते समय उन्हें पीले वस्त्र धारण किए, शंख, चक्र और गदा धारण किए हुए तथा लक्ष्मी जी के साथ चिंतन किया जाता है।
मूलाष्टक
मूलाष्टक में नारायण के विभिन्न रूपों का उल्लेख है, जैसे कि वह परब्रह्म हैं, सर्वश्रेष्ठ देवता हैं, धारण करने योग्य धर्म हैं। यह आठ पदों वाला स्तोत्र भक्तों को हर संकट से मुक्ति और श्री नारायण की कृपा प्रदान करने में सहायक है।
प्रार्थनादशक
इस स्तोत्र में दस पदों की प्रार्थना भी सम्मिलित है, जिसमें नारायण को संपूर्ण सृष्टि का आधार मानते हुए उन्हें परम पिता और माता के रूप में स्मरण किया गया है। यह प्रार्थना हर व्यक्ति के भीतर के अंधकार को दूर करके सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।
पाठ का महत्व
इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से माता लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है और समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। मान्यता है कि जो भी इस स्तोत्र का नियमित पाठ करता है, उसके जीवन में सभी प्रकार की खुशियों का आगमन होता है और कोई भी नकारात्मक ऊर्जा उसके निकट नहीं आती।
विशेष साधना
भक्तों को शुक्रवार को, विशेषकर रात्रि के समय, इस स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करना चाहिए। साथ ही, इस ग्रंथ के संग्रह को गोपनीय रखना लाभकारी माना गया है। इस पवित्र स्तोत्र का गोपनीय रूप से साधना करने वाले भक्त को जीवन में धन, ऐश्वर्य और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र के नियम
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ करने के कुछ विशेष नियम हैं, जिन्हें धारण करने से स्तोत्र का प्रभाव अधिक बढ़ता है। यहां इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं:
- शुद्धता : पाठ से पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को स्वच्छ और धूप-दीप जलाएं।
- पाठ का समय : इस स्तोत्र का पाठ का समय गुरुवार या शुक्रवार को प्रातः काल करना शुभ माना गया है। नियमित रूप से दैनिक पाठ करना होता है, ब्रह्ममुहूर्त में।
- आसन का चयन : पाठ करें समय कुश, रेशम, या ऊनी आसन पर बैठें। एसोसिएशन का समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर है।
- संकल्प और ध्यान : पाठ के आरंभ में लक्ष्मी नारायण का ध्यान मुद्रा में ध्यान करें। इससे ध्यान स्थिर रहेगा और लाभ मिलेगा।
- धर्म और आस्था : मन को शांत और स्थिर बनाए रखें पूर्ण भक्ति, श्रद्धा, और धर्म के साथ पाठ करें। पाठ के दौरान कोई नकारात्मक विचार न पसंद।
- पाठ की संख्या : स्तोत्र का पाठ तीन, पांच या बारह बार करना शुभ माना जाता है। विशेष इच्छाओं की प्रस्तुति के लिए 108 बार पाठ का विधान है।
- फल और प्रसाद : पाठ के बाद लक्ष्मी नारायण को पुष्प, मिठाई, और फल निर्भय करें और भोग लगाएं प्रसाद ग्रहण करें। इसे परिवार के सदस्यों में भी बाँटें।
- गोपनीयता : यह स्तोत्र विश्वास माना जाता है, इसलिए इसे सार्वजनिक रूप से करना आवश्यक नहीं है।
- संयम और नियम : इस स्तोत्र का पाठ समय सात्विक भोजन करें और संयमित जीवन जीने का प्रयास करें।
इस स्तोत्र का नियमित रूप से पालन करें । इससे मन की शांति, आर्थिक समृद्धि और घर में सुख-शांति बनी रहती है। इनका पालन करने से श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ करने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ विधि
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ विधिपूर्वक करने से भक्त को विशेष लाभ प्राप्त होता है। इसे सही तरीके से करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
1. स्नान और शुद्धिकरण
सबसे पहले प्रातः स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
अपने मन, शरीर और स्थान की शुद्धि करें। पूजा स्थल को गंगाजल या साफ पानी से पवित्र करें।
2. ध्यान और संकल्प
श्री लक्ष्मी नारायण का ध्यान करें और संकल्प लें कि इस पाठ के माध्यम से आप माता लक्ष्मी और भगवान नारायण की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं।
संकल्प में यह भी कहें कि आप अपने जीवन के सभी संकटों और कष्टों से मुक्ति पाने के उद्देश्य से इस स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं।
3. करन्यास और अङ्गन्यास
करन्यास (हाथ के अंगों में मंत्र को स्थापित करना) और अङ्गन्यास (शरीर के अंगों में मंत्र को स्थापित करना) करें।
निम्नलिखित मंत्रों को उंगलियों और अंगों पर स्थापित करें:
- करन्यास:
"ॐ नारायणः परं ज्योतिरिति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।"
"नारायणः परं ब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः।"
इसी तरह अन्य उंगलियों पर करें।
- अङ्गन्यास:
"नारायणः परं ज्योतिरिति हृदयाय नमः।"
"नारायणः परं ब्रह्मेति शिरसे स्वाहा।"
इस तरह शरीर के विभिन्न अंगों पर करें।
4. ध्यान
भगवान लक्ष्मी-नारायण का ध्यान करें, उन्हें शंख, चक्र, गदा, और पद्म धारण किए हुए, पीले वस्त्र पहने हुए, शांत और सौम्य स्वरूप में ध्यान करें। यह ध्यान मन को स्थिर करता है और पूजा के लिए उपयुक्त बनाता है।
5. मूलाष्टक और प्रार्थनादशक का पाठ
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र के मूलाष्टक और प्रार्थनादशक का श्रद्धा एवं भक्ति से पाठ करें।
हर श्लोक के अर्थ को समझते हुए उसे गहराई से अनुभव करने का प्रयास करें।
6. विशेष अनुष्ठान
शुक्रवार के दिन इस स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है।
इसे गोपनीय रखते हुए रात्रि के समय पाठ करें और लक्ष्मी-नारायण के चित्र के सामने दीप जलाकर उनका आह्वान करें।
7. समर्पण और आभार
अंत में माता लक्ष्मी और भगवान नारायण को अपने हृदय से धन्यवाद दें और उन्हें अपनी भक्ति समर्पित करें।
पाठ समाप्त होने पर 'ॐ लक्ष्मी-नारायणाय नमः' का 108 बार जाप करें।
8. प्रसाद और समापन
पूजा के अंत में फल या मिठाई का प्रसाद चढ़ाएं और भक्तों में बांटें।
इस स्तोत्र को गोपनीय रखा जाना चाहिए और हर पाठ के बाद इसे सुरक्षित स्थान पर रखें।
नियमितता: यदि संभव हो तो इस स्तोत्र का नियमित पाठ करें, इससे लक्ष्मी-नारायण की कृपा आपके जीवन में स्थिर रहती है और हर प्रकार के संकट दूर होते हैं।
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र पाठ करने के अनेक लाभ
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का सरल मार्ग है। इसके पाठ के लाभ निम्नलिखित हैं:
- धन-वैभव की प्राप्ति
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में धन, वैभव, और समृद्धि की वृद्धि होती है। माता लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है, जिससे सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- संकटों और रोगों से मुक्ति
स्तोत्र के नियमित पाठ से जीवन के सभी प्रकार के संकट, रोग, और कष्ट दूर होते हैं। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करता है और व्यक्ति रोग-मुक्त रहता है।
- अधिव्याधि और भयों का नाश
इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के आधि-व्याधि (मानसिक और शारीरिक) एवं भय दूर हो जाते हैं। विशेष रूप से भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव समाप्त होता है।
- सुख और शांति का वास
भगवान नारायण और माता लक्ष्मी की उपासना से घर में सुख-शांति का वातावरण बना रहता है। पारिवारिक जीवन में प्रेम, सद्भाव, और सहयोग बढ़ता है।
- अभय प्राप्ति
भक्त को किसी भी प्रकार के डर और असुरक्षा से मुक्ति मिलती है। जीवन में साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है, जिससे वह हर कठिनाई का सामना कर पाता है।
- विपरीत परिस्थितियों से मुक्ति
यह स्तोत्र जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों को दूर करने में सहायक है। इससे व्यक्ति पर आने वाली बाधाएं और विघ्न समाप्त होते हैं।
- सफलता और सिद्धियों की प्राप्ति
इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को सफलताएं और सिद्धियां प्रदान करता है। इसके पाठ से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
- पारिवारिक समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि
लक्ष्मी नारायण की कृपा से संपूर्ण परिवार पर शुभता और सौभाग्य बना रहता है। जीवन में अच्छे अवसरों और शुभ संयोगों की प्राप्ति होती है।
- आध्यात्मिक उन्नति
इस स्तोत्र के पाठ से आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है। व्यक्ति का मन भगवान के प्रति समर्पित होता है और उसे मोक्ष के मार्ग की प्राप्ति होती है।
- अनिष्ट प्रभावों का नाश
यह स्तोत्र अनिष्ट ग्रहों और दुश्प्रभावों से रक्षा करता है। इससे व्यक्ति का भाग्य उत्तम होता है,और वह विपरीत ग्रहों के प्रभाव से मुक्त रहता है।
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। यह स्तोत्र साधना को सिद्धि की ओर ले जाता है और सभी प्रकार के भय, रोग, और दरिद्रता को समाप्त करता है।
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र
अस्य श्रीनारायणहृदयस्तोत्रमन्त्रस्य भार्गव ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीलक्ष्मीनारायणो देवता, ॐ बीजं, नमश्शक्तिः , नारायणायेति कीलकं, श्रीलक्ष्मीनारायण प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
करन्यासः ।
ॐ नारायणः परं ज्योतिरिति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
नारायणः परं ब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः ।
नारायणः परो देव इति मध्यमाभ्यां नमः ।
नारायणः परं धामेति अनामिकाभ्यां नमः ।
नारायणः परो धर्म इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
विश्वं नारायण इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
अङ्गन्यासः ।
नारायणः परं ज्योतिरिति हृदयाय नमः ।
नारायणः परं ब्रह्मेति शिरसे स्वाहा ।
नारायणः परो देव इति शिखायै वौषट् ।
नारायणः परं धामेति कवचाय हुम् ।
नारायणः परो धर्म इति नेत्राभ्यां वौषट् ।
विश्वं नारायण इति अस्त्राय फट् ।
दिग्बन्धः ।
ॐ ऐन्द्र्यादिदशदिशं ॐ नमः सुदर्शनाय सहस्राराय हुं फट् बध्नामि नमश्चक्राय स्वाहा ।
इति प्रतिदिशं योज्यम् ।
अथ ध्यानम् ।
उद्यादादित्यसङ्काशं पीतवासं चतुर्भुजम् ।
शङ्खचक्रगदापाणिं ध्यायेल्लक्ष्मीपतिं हरिम् ॥ 1 ॥
त्रैलोक्याधारचक्रं तदुपरि कमठं तत्र चानन्तभोगी
तन्मध्ये भूमिपद्माङ्कुशशिखरदलं कर्णिकाभूतमेरुम् ।
तत्रस्थं शान्तमूर्तिं मणिमयमकुटं कुण्डलोद्भासिताङ्गं
लक्ष्मीनारायणाख्यं सरसिजनयनं सन्ततं चिन्तयामि ॥ 2 ॥
अथ मूलाष्टकम् ।
ओम् ॥ नारायणः परं ज्योतिरात्मा नारायणः परः ।
नारायणः परं ब्रह्म नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 1 ॥
नारायणः परो देवो धाता नारायणः परः ।
नारायणः परो धाता नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 2 ॥
नारायणः परं धाम ध्यानं नारायणः परः ।
नारायण परो धर्मो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 3 ॥
नारायणः परोवेद्यः विद्या नारायणः परः ।
विश्वं नारायणः साक्षान्नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 4 ॥
नारायणाद्विधिर्जातो जातो नारायणाद्भवः ।
जातो नारायणादिन्द्रो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 5 ॥
रविर्नारायणस्तेजः चन्द्रो नारायणो महः ।
वह्निर्नारायणः साक्षान्नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 6 ॥
नारायण उपास्यः स्याद्गुरुर्नारायणः परः ।
नारायणः परो बोधो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 7 ॥
नारायणः फलं मुख्यं सिद्धिर्नारायणः सुखम् ।
सेव्योनारायणः शुद्धो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ 8 ॥ [हरि
अथ प्रार्थनादशकम् ।
नारायण त्वमेवासि दहराख्ये हृदि स्थितः ।
प्रेरकः प्रेर्यमाणानां त्वया प्रेरितमानसः ॥ 9 ॥
त्वदाज्ञां शिरसा धृत्वा जपामि जनपावनम् ।
नानोपासनमार्गाणां भवकृद्भावबोधकः ॥ 10 ॥
भावार्थकृद्भवातीतो भव सौख्यप्रदो मम ।
त्वन्मायामोहितं विश्वं त्वयैव परिकल्पितम् ॥ 11 ॥
त्वदधिष्ठानमात्रेण सा वै सर्वार्थकारिणी ।
त्वमेतां च पुरस्कृत्य सर्वकामान्प्रदर्शय ॥ 12 ॥
न मे त्वदन्यस्त्रातास्ति त्वदन्यन्न हि दैवतम् ।
त्वदन्यं न हि जानामि पालकं पुण्यवर्धनम् ॥ 13 ॥
यावत्सांसारिको भावो मनस्स्थो भावनात्मकः ।
तावत्सिद्धिर्भवेत्साध्या सर्वथा सर्वदा विभो ॥ 14 ॥
पापिनामहमेवाग्र्यो दयालूनां त्वमग्रणीः ।
दयनीयो मदन्योऽस्ति तव कोऽत्र जगत्त्रये ॥ 15 ॥
त्वयाहं नैव सृष्टश्चेन्न स्यात्तव दयालुता ।
आमयो वा न सृष्टश्चेदौषधस्य वृथोदयः ॥ 16 ॥
पापसङ्घपरिश्रान्तः पापात्मा पापरूपधृत् ।
त्वदन्यः कोऽत्र पापेभ्यस्त्रातास्ति जगतीतले ॥ 17 ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव सेव्यश्च गुरुस्त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥ 18 ॥
प्रार्थनादशकं चैव मूलाष्टकमतः परम् ।
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत् ॥ 19 ॥
नारायणस्य हृदयं सर्वाभीष्टफलप्रदम् ।
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं यदि चेत्तद्विनाकृतम् ॥ 20 ॥
तत्सर्वं निष्फलं प्रोक्तं लक्ष्मीः क्रुद्ध्यति सर्वदा ।
एतत्सङ्कलितं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् ॥ 21 ॥
लक्ष्मीहृदयकं चैव तथा नारायणात्मकम् ।
जपेद्यः सङ्कलीकृत्य सर्वाभीष्टमवाप्नुयात् ॥ 22 ॥
नारायणस्य हृदयमादौ जप्त्वा ततः परम् ।
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं जपेन्नारायणं पुनः ॥ 23 ॥
पुनर्नारायणं जप्त्वा पुनर्लक्ष्मीनुतिं जपेत् ।
पुनर्नारायणं जाप्यं सङ्कलीकरणं भवेत् ॥ 24 ॥
एवं मध्ये द्विवारेण जपेत्सङ्कलितं तु तत् ।
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं सर्वकामप्रकाशितम् ॥ 25 ॥
तद्वज्जपादिकं कुर्यादेतत्सङ्कलितं शुभम् ।
सर्वान्कामानवाप्नोति आधिव्याधिभयं हरेत् ॥ 26 ॥
गोप्यमेतत्सदा कुर्यान्न सर्वत्र प्रकाशयेत् ।
इति गुह्यतमं शास्त्रं प्राप्तं ब्रह्मादिकैः पुरा ॥ 27 ॥
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन गोपयेत्साधयेसुधीः ।
यत्रैतत्पुस्तकं तिष्ठेल्लक्ष्मीनारायणात्मकम् ॥ 28 ॥
भूतपैशाचवेताल भयं नैव तु सर्वदा ।
लक्ष्मीहृदयकं प्रोक्तं विधिना साधयेत्सुधीः ॥ 29 ॥
भृगुवारे च रात्रौ च पूजयेत्पुस्तकद्वयम् ।
सर्वथा सर्वदा सत्यं गोपयेत्साधयेत्सुधीः ।
गोपनात्साधनाल्लोके धन्यो भवति तत्त्वतः ॥ 30 ॥
इत्यथर्वरहस्ये उत्तरभागे नारायणहृदयं सम्पूर्णम् ।
श्री लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो भक्तों को लक्ष्मी और नारायण की कृपा प्राप्त करने में सहायक है। इसके पाठ से धन, समृद्धि, मानसिक शांति और आत्मिक विकास की प्राप्ति होती है।
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