श्री शिव चालीसा ( पीडीएफ ) Shri Shiv Chalisa ( PDF )
परिचय
श्री शिव चालीसा PDF 👇
श्री शिव चालीसा पाठ: विधि, नियम, लाभ, चालीसा पाठ, और निष्कर्ष
1. श्री शिव चालीसा पाठ की विधि
श्री शिव चालीसा पाठ: विधि, नियम, लाभ, चालीसा पाठ, और निष्कर्ष
- स्नान एवं शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान कर मन और शरीर को पवित्र करें।
- पूजा स्थान: शिवलिंग या भगवान शिव की प्रतिमा के समक्ष बैठकर पाठ करें। पूजा स्थल को स्वच्छ रखें।
- पूजन सामग्री: शिवलिंग या मूर्ति पर जल, बेलपत्र, सफेद फूल, चंदन, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें।
- एकाग्रता: पाठ के दौरान मन को शांत रखें और भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का ध्यान करें।
- बैठने की दिशा: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें, यह शुभ मानी जाती है।
2. श्री शिव चालीसा पाठ के नियम
- नियमितता: इसे प्रतिदिन प्रातःकाल या संध्या के समय करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
- विशेष दिन: त्रयोदशी और सोमवार के दिन श्री शिव चालीसा का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।
- उपवास: यदि संभव हो तो त्रयोदशी या सोमवार को उपवास रखें और उसी दिन पाठ करें।
- पवित्रता बनाए रखें: पाठ के दौरान मन और शरीर को पवित्र रखें, नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
- ध्यान और भक्ति: पाठ करते समय भगवान शिव के प्रति पूर्ण भक्ति और श्रद्धा का भाव रखें।
3. श्री शिव चालीसा पाठ के लाभ
- संकट निवारण: यह पाठ सभी प्रकार के कष्टों और संकटों को दूर करने में सहायक है।
- धन-धान्य में वृद्धि: श्री शिव चालीसा के नियमित पाठ से आर्थिक संपन्नता मिलती है और निर्धनता का नाश होता है।
- स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- संतान सुख: जिन दंपत्तियों को संतान की इच्छा है, उन्हें भगवान शिव की कृपा से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- पारिवारिक शांति और समृद्धि: घर में शांति और सुख-समृद्धि बनी रहती है, और आपसी रिश्तों में प्रेम बढ़ता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: श्री शिव चालीसा का पाठ आत्मा का शुद्धिकरण करता है और व्यक्ति की भक्ति में वृद्धि होती है।
श्री शिव चालीसा पाठ
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।
ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
4. निष्कर्ष
श्री शिव चालीसा का पाठ भगवान शिव की कृपा पाने का अद्भुत और सरल साधन है। यह पाठ न केवल जीवन के भौतिक और मानसिक कष्टों को दूर करता है, बल्कि व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है। इस पाठ को करने से जीवन में सकारात्मकता आती है, और भगवान शिव की अनुकंपा से जीवन के सभी दुखों का नाश होता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमित रूप से इसका पाठ करने पर व्यक्ति को आत्मिक शांति और दिव्य आनंद की अनुभूति होती है।
अंत में, यह कहना उचित होगा कि श्री शिव चालीसा पाठ हमारी हर मनोकामना को पूर्ण करने में सक्षम है। इसलिए, इसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं और भगवान शिव की कृपा से जीवन को सुखमय और संतुष्टिपूर्ण बनाएं।
click to read👇👇
टिप्पणियाँ