शिव तांडव स्तोत्र (पीडीएफ) | Shiv Tandav Stotra (PDF)

शिव तांडव स्तोत्र PDF

विषय सूचि

  • शिव तांडव स्तोत्र की कथा
  • शिव तांडव स्तोत्र पाठ विधि
  • शिव तांडव स्तोत्र पाठ के नियम
  • शिव तांडव स्तोत्र के लाभ
  • शिव तांडव स्तोत्रम्
  • निष्कर्ष
  • शिव तांडव स्तोत्र PDF

शिव तांडव स्तोत्र: हिंदू धर्म में भगवान शिव को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, इसलिए उन्हें देवाधिदेव महादेव कहा जाता है। वे कालों के काल, महाकाल हैं, और उनकी कृपा से बड़े से बड़ा संकट भी टल सकता है। भगवान शिव की महिमा इतनी अपरंपार है कि मनुष्य ही नहीं, देवी-देवता, सुर-असुर सभी उनकी आराधना करते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रावण महादेव का महान भक्त था और उसने ही तांडव स्तोत्र की रचना की थी। यह स्तोत्र कुल 17 श्लोकों में भगवान शिव की अद्भुत स्तुति प्रस्तुत करता है।

शिव तांडव स्तोत्र की कथा

शिव पुराण के अनुसार, एक बार अहंकार में रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लेने का प्रयास किया। शिव जी ने इसे देखकर अपने अंगूठे से पर्वत को स्थिर कर दिया, जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और वह पीड़ा से कराह उठा। अपनी इस पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए रावण ने भगवान शिव की भक्ति में यह स्तुति गाई, जो आज शिव तांडव स्तोत्र के रूप में प्रसिद्ध है। तो चलिए जानते हैं शिव तांडव स्तोत्र पाठ करने की विधि , नियम लाभ आदि !

शिव तांडव स्तोत्र पाठ विधि

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ भगवान शिव को प्रसन्न करने का अत्यंत शक्तिशाली तरीका माना गया है। इसका नियमित रूप से विधि-विधान के साथ पाठ करने से शिव की कृपा प्राप्त होती है। यहाँ शिव तांडव स्तोत्र के पाठ की सरल विधि दी गई है:

1. स्थान की शुद्धि और समय:
  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें।
  • इसे प्रातःकाल या संध्या के समय, विशेषकर प्रदोष व्रत के दिन, करना शुभ माना जाता है।
  • सोमवार के दिन या किसी शिवरात्रि के अवसर पर इसका पाठ विशेष फलदायक होता है।

2. स्नान और स्वच्छ वस्त्र:

  • पाठ से पहले स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनना श्रेष्ठ माना जाता है।

3. पूजा सामग्री और आसन:

  • एक स्वच्छ आसन पर बैठकर शिवलिंग या भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएँ।
  • जल, अक्षत, पुष्प, बिल्वपत्र, चंदन, और फल अर्पित करें। शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाना विशेष लाभकारी माना जाता है।

4. मंत्र जाप और ध्यान:

  • पाठ शुरू करने से पहले ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करें और भगवान शिव का ध्यान करें।
  • अपने मन को एकाग्र करते हुए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ शुरू करें।

5. पाठ की विधि:

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ धीमी और स्पष्ट ध्वनि में करें।
  • प्रत्येक श्लोक का उच्चारण सही से करें और शिव की महिमा का भाव मन में रखें।
  • यदि संस्कृत पढ़ना कठिन हो तो हिंदी में इसका अर्थ समझकर मन में उसकी भावना के साथ पढ़ें।

6. प्रार्थना और समर्पण:

  • पाठ समाप्त करने के बाद शिवजी से अपने और परिवार की रक्षा, सुख-समृद्धि, और शांति की प्रार्थना करें।
  • उन्हें गंगाजल या स्वच्छ जल अर्पित करें और शिव तांडव स्तोत्र को समर्पित करें।

7. भोग और प्रसाद:

  • भगवान शिव को भोग अर्पित करें, जैसे दूध, शहद, या पंचामृत।
  • अंत में प्रसाद सभी को वितरित करें।

8. सावधानियाँ:

  • पाठ के दौरान मन को शिव के ध्यान में लगाएं, अन्य विचारों से बचें।
  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और पूर्ण भक्ति से करें।

विशेष: शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ करने से शिवजी की कृपा और आशीर्वाद मिलता है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, शांति, और आत्मिक विकास होता है।

शिव तांडव स्तोत्र पाठ के नियम

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। इसका पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करने से अधिक शुभ फल प्राप्त होता है। ये नियम इस प्रकार हैं:

1. पवित्रता का ध्यान:

  • पाठ करने से पहले स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • शरीर और मन की शुद्धि पर विशेष ध्यान दें ताकि पाठ के दौरान मन शांत और एकाग्र हो सके।

2. स्थान की पवित्रता:

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किसी शांत, पवित्र और स्वच्छ स्थान पर करें।
  • यदि संभव हो, तो शिवलिंग के सामने या पूजा स्थान पर बैठकर पाठ करें।
  • पूजा स्थान को गंगाजल या शुद्ध जल से पवित्र करें।

3. सही समय का चयन:

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय करना शुभ माना जाता है।
  • सोमवार, प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि के दिन विशेष लाभकारी माना गया है।

4. उच्चारण और भाव:

  • श्लोकों का उच्चारण सही से करें और प्रत्येक शब्द का ध्यानपूर्वक उच्चारण करें।
  • पाठ करते समय भगवान शिव की महिमा का अनुभव करें और उनकी शक्ति और तांडव के भाव का ध्यान करें।

5. आसन का प्रयोग:

  • पाठ के दौरान एक निश्चित आसन का प्रयोग करें, जैसे कुश, ऊनी, या कपड़े का आसन।
  • यह मन को स्थिर रखने और ऊर्जा को केंद्रित करने में सहायक होता है।

6. भक्ति और श्रद्धा:

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ भक्ति और श्रद्धा भाव से करें। भगवान शिव के प्रति समर्पण और आदर का भाव बनाए रखें।
  • पाठ के दौरान किसी प्रकार की नकारात्मक सोच या भावना न रखें।

7. नियमितता:

  • अधिक लाभ के लिए शिव तांडव स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें। इसे हर दिन या विशेष रूप से सोमवार और प्रदोष के दिन पढ़ सकते हैं।
  • नियमित पाठ करने से शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और मन, तन एवं जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

8. विशेष ध्यान:

  • पाठ से पहले और बाद में "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
  • पाठ समाप्ति के बाद भगवान शिव से प्रार्थना करें और जीवन में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करें।

9. भोग और प्रसाद:

  • शिव तांडव स्तोत्र पाठ के बाद भगवान शिव को जल, दूध, फल, या पंचामृत का भोग अर्पित करें।
  • प्रसाद सभी को बांटें और पूजा को पूर्ण करें।

10. सावधानियाँ:

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ शांत मन से करें और अपने चारों ओर की ऊर्जा का ध्यान रखें।
  • पाठ के दौरान कोई विक्षेप या ध्यान भंग न हो, इसका ध्यान रखें।

इन नियमों का पालन करके शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-शांति और संकटों का नाश होता है।

शिव तांडव स्तोत्र के लाभ

शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव का एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी स्तोत्र है। इसका पाठ रावण ने भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया था। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से कई आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक लाभ मिलते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख लाभ दिए गए हैं:

1. शांति और मानसिक शुद्धि

  • शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक शांति, एकाग्रता, और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है।
  • इससे नकारात्मक विचारों का नाश होता है और मन में सकारात्मकता आती है।

2. रोगों से मुक्ति

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • यह शरीर को ऊर्जा से भर देता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

3. संकटों का निवारण

  • जीवन में आने वाले विभिन्न संकटों से रक्षा के लिए शिव तांडव स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।
  • कठिन परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए यह पाठ सहायता करता है और मार्गदर्शन प्रदान करता है।

4. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ घर, कार्यस्थल और जीवन में नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
  • यह बुरी शक्तियों और बुरी नजर से रक्षा करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।

5. आध्यात्मिक उन्नति

  • शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ आध्यात्मिक प्रगति में सहायक है और साधक को भगवान शिव के करीब लाता है।
  • इसके प्रभाव से साधक में विनम्रता, ध्यान और समर्पण की भावना बढ़ती है।

6. धन और समृद्धि में वृद्धि

  • इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से धन और समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • रावण ने भी इस स्तोत्र का पाठ भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए किया था, जिससे वे ऐश्वर्य और शक्ति से संपन्न हुए।

7. भय और तनाव का नाश

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से मन का डर और तनाव कम होता है।
  • यह स्तोत्र व्यक्ति के भीतर साहस और आत्मबल को बढ़ाता है, जिससे हर प्रकार की समस्या से लड़ने की शक्ति मिलती है।

8. शिव की कृपा

  • भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना जाग्रत होती है, जिससे उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
  • शिव तांडव स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव साधक को अभयदान और कल्याण का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

9. विवाह और दांपत्य जीवन में सुख

  • यदि दांपत्य जीवन में कोई समस्या हो तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावी होता है। इससे वैवाहिक जीवन में सौहार्द, प्रेम और खुशियाँ बढ़ती हैं।

10. शत्रुओं पर विजय

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और हर प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए सहायक है।
  • यह शक्ति और साहस को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त कर सकता है।

11. मोक्ष की प्राप्ति

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
  • यह संसार के दुखों से मुक्त करता है और अंततः आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का कार्य करता है।

इन सभी लाभों के कारण शिव तांडव स्तोत्र का पाठ भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इसे विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है।

शिव तांडव स्तोत्र ! Shiv Tandav Stotra !

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर.
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।

भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।

धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्.
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्.
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवर्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्.
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका
निगुम्फनिर्भक्षरन्मधूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीमहर्निशं
परिश्रयं परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

॥ इति श्रीरावण कृतम् शिव ताण्डव स्तोत्रम्सम्पूर्णम् ॥

निष्कर्ष:

शिव तांडव स्तोत्र का महत्त्व अत्यधिक है क्योंकि यह न केवल भगवान शिव की महिमा का उद्घाटन करता है, बल्कि भक्तों को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक रूप से सशक्त भी बनाता है। इसका नियमित पाठ भगवान शिव के आशीर्वाद से भक्तों को जीवन की कठिनाइयों से उबारने और सफलता की प्राप्ति में सहायक होता है।

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