शिव स्तुति ( पीडीएफ ) | Shiv Stuti ( PDF )

शिव स्तुति ( पीडीएफ ) | Shiv Stuti ( PDF )

परिचय

शिव स्तुति भगवान शिव के महिमामय गुणों और उनके अद्वितीय स्वरूप का बखान करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र पाठ है। इस स्तुति में शिव के रौद्र और करुणामय स्वरूप, उनके महान कार्यों और भक्तों के प्रति असीम स्नेह का वर्णन है। शिव स्तुति का नियमित पाठ करने से शिवजी की कृपा से जीवन के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और मन में शांति एवं संतोष का वास होता है। आइए शिव स्तुति की विधि, नियम, लाभ और इसका गूढ़ निष्कर्ष जानें।

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शिव स्तुति: विधि, नियम, लाभ और निष्कर्ष

1. शिव स्तुति की विधि

  1. शुद्धि: पाठ करने से पहले स्नान करें और मन को शांत रखें।
  2. पूजा स्थान: भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग के सामने बैठकर स्तुति करें। पूजा स्थल को स्वच्छ रखें और शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, सफेद फूल, धूप, दीप, और चंदन चढ़ाएं।
  3. सावधानी: पाठ करते समय भगवान शिव का ध्यान करें और उनके दिव्य स्वरूप को मन में धारण करें।
  4. दिशा: पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, जिससे अधिक शुभ परिणाम मिलते हैं।
  5. पूजा सामग्री: जल, धूप, दीप, बेलपत्र, सफेद पुष्प, और चंदन भगवान शिव को अर्पित करें और अंत में नैवेद्य का भोग लगाएं।

2. शिव स्तुति के नियम

  1. नियमितता: शिव स्तुति का पाठ प्रतिदिन प्रातः और संध्या के समय करें। नियमितता से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है।
  2. विशेष तिथि: विशेष रूप से सोमवार और त्रयोदशी के दिन इस स्तुति का पाठ करना अति फलदायी होता है।
  3. पवित्रता: शिव स्तुति का पाठ करते समय मन और वचन में पवित्रता बनाए रखें, ताकि पूजा का फल संपूर्ण रूप में प्राप्त हो।
  4. उपवास: सोमवार या त्रयोदशी के दिन व्रत रखकर स्तुति करने से और भी उत्तम फल प्राप्त होते हैं।
  5. शांति और ध्यान: शिव स्तुति का पाठ शांत मन से और बिना किसी अवरोध के करें, जिससे शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

3. शिव स्तुति के लाभ

  1. संकट का नाश: शिव स्तुति के पाठ से जीवन के सभी संकट और कष्ट दूर होते हैं। भगवान शिव की कृपा से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
  2. धन-धान्य में वृद्धि: शिवजी की कृपा से आर्थिक संपन्नता और खुशहाली प्राप्त होती है।
  3. स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक रूप से बल और शांति मिलती है।
  4. संतान सुख: जिन्हें संतान सुख की अभिलाषा है, उन्हें यह स्तुति संतान प्राप्ति का वरदान दिलाती है।
  5. परिवारिक सुख-शांति: घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। शिवजी की कृपा से परिवार में प्रेम और सहयोग बढ़ता है।
  6. आध्यात्मिक उन्नति: शिव स्तुति का पाठ मन को शांति प्रदान करता है और आत्मिक शक्ति को बढ़ाता है। इसके माध्यम से व्यक्ति की भक्ति और आध्यात्मिकता में वृद्धि होती है।

शिव स्तुति ! Shiva stuti

श्री गिरिजापति बंदि कर ,चरण मध्य शिर नाय। 
कहत अयोध्यादास तुम , मो पर करहो सहाय।।

नन्दी की सवारी नाग अंगीकार धारी, 
नित संत सुखकारी नीलकंठ त्रिपुरारी हैं।

गले मुण्डमाला धारी सिर सोहे जटाधारी,
वाम अंग मैं बिहारी गिरिराज सुतवारी हैं।

दानी देख भारी शेष शारदा पुकारी,
काशीपति मदनारी कर शूल चक्रधारी हैं।

कला उजियारी लख देव सो निहारी, 
यश गावें वेद चारी सो हमारी रखवारी हैं।।१।।

शम्भु बैठे हैं विशाला पीवैं भंग को प्याला, 
नित रहें मतवाला अहि अंग पे चढ़ाये हैं।

गले सोह मुण्डमाला कर डमरू विशाला, 
अरु ओढ़े मृगछाला भस्म अंग में लगाये हैं।

संग सुरभी सुतमाला कर भक्तन प्रतिपाला, 
मृत्यु हरे अकाला शीश जटा को बढ़ाये हैं।

कहैं रामलाला मोहिं करो तुम निहाला अब, 
गिरिजापति कैलाश जैसे काम को जलाये हैं।।२।।

मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन, 
जारा है काम जाके शीश गंगधारा हैं। 

धारा है अपार जासु महिमा तीनों लोक, 
भाल में हैं इन्दु जाके सुषमा के सारा सारा है।

सारा है बात सब खोल खायो हलाहल जानि, 
भक्त के अधारा जाहिं वेदन उचारा है।

चारा है भाग जाके द्वारा है गिरीश कन्या, 
कहत अयोध्यादास सोई मालिक हमारा है।।३।।

अष्ट गुरु ज्ञानी अरु मुख वेदवानी, 
सोहे भवन में भवानी सुख सम्पत्ति लहा करें।

मुण्डन की माला जाके चन्द्रमा ललाट सोहें, 
दासन के दास जाके दारिद दहा करें।

चारों द्वार बन्दी जाके द्वारपाल नन्दी, 
कहत कवि अनन्दी नर नाहक हा हा करें।

जगत रिसाय यमराज की कहा बसाय, 
शंकर सहाय तो भयंकर कहा करै।।४।।

गौर   शरीर    में   गौरि   विराजत  ,  
मोर   जटा   सिर   सोहत   जाके।

नगन   को   उपवीत   लसै   अयोध्या  ,  
कहें   शशि   भाल   में   ताके।

दान  करैं  पल  में  फल  चारि  और  टारत  अंक   लिखे   विधना   के। 
शंकर   नाम   निशंक   सदाहि   भरोसा  रहैं  निशिवासर   ताके।।५।।

।। दोहा।।

मंगसर मास हेमन्त ऋतु , छठ  दिन है शुभ बुद्ध। 
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समृद्ध।।

4. निष्कर्ष

शिव स्तुति भगवान शिव के प्रति भक्ति का सजीव रूप है। यह पाठ शिवजी की अनुकंपा से जीवन में आने वाले सभी प्रकार के कष्टों और संकटों का नाश करता है। इस स्तुति का पाठ करके शिवजी की कृपा पाई जा सकती है, जो हर मनोकामना को पूर्ण करने वाली है। यह स्तुति न केवल भक्त को बाहरी सुख-संपत्ति देती है बल्कि आंतरिक शांति और आत्मिक बल भी प्रदान करती है।

अंतिम बात, शिव स्तुति का नियमित पाठ भगवान शिव के प्रति प्रेम और श्रद्धा को गहरा करता है। इस स्तुति के माध्यम से भक्तों को शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे उनके दिव्य गुणों के साक्षी बनते हैं। अतः शिव स्तुति को अपनी पूजा का अभिन्न हिस्सा बनाएं और शिवजी की कृपा से जीवन को समृद्ध, शांतिपूर्ण, और संतोषजनक बनाएं।

दोहा
"मंगसर मास हेमन्त ऋतु, छठ दिन है शुभ बुद्ध।
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समृद्ध।।"

भगवान शिव की महिमा अपरंपार है, और उनकी स्तुति से सभी प्रकार की विघ्न-बाधाएं समाप्त होती हैं। शिव स्तुति का यह साधारण किन्तु अचूक पाठ जीवन को नया प्रकाश और शक्ति प्रदान करता है।

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