पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्र (PDF)
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं शनि देव के आशीर्वाद और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। महर्षि पिप्पलाद ने भगवान शिव की प्रेरणा से शनि देव की स्तुति करते हुए यह स्तोत्र रचा था। यह स्तोत्र विशेष रूप से शनि दोष, साढ़े साती, और ढैया के प्रभाव से बचने के लिए पाठ किया जाता है।
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं की विधि (Pippalad Rishikrit Shri Shani Stotram Path Vidhi)
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं का पाठ विशेष रूप से शनि दोष, साढ़े साती, ढैया, और जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए किया जाता है। इसे सही विधि और श्रद्धा के साथ पढ़ने से अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।
1. पाठ के लिए उपयुक्त समय
- शनिवार का दिन विशेष रूप से शुभ होता है।
- यह पाठ सूर्योदय के समय करें, लेकिन शाम के समय भी किया जा सकता है।
- शनि अमावस्या, शनि जयंती, और विशेष शनिवारों को यह पाठ अधिक फलदायी होता है।
2. पाठ से पहले की तैयारी
स्नान और स्वच्छता:
- सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- शुद्ध मन और सकारात्मक भावनाओं के साथ पाठ की तैयारी करें।
पूजन स्थान:
- पाठ करने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान चुनें।
- पीपल वृक्ष के नीचे या शनि देव की मूर्ति/चित्र के सामने बैठें।
आवश्यक सामग्री:
- सरसों का तेल
- काले तिल
- काला कपड़ा
- दीपक और धूपबत्ती
- नीले या काले रंग के पुष्प
- एक आसान (कुश या काले कपड़े का)
3. पाठ की विधि
(क) पूजन और ध्यान
- दीप प्रज्वलित करें:
- सरसों के तेल का दीपक जलाएं और शनि देव का ध्यान करें।
- पीपल वृक्ष की पूजा करें:
- पीपल वृक्ष को जल अर्पित करें और उसकी 7 बार परिक्रमा करें।
- पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर पाठ करें।
(ख) शनि देव का आवाहन
- हाथ जोड़कर शनि देव का ध्यान करें और निम्न मंत्र का जाप करें:- ॐ शं शनैश्चराय नमः।
(ग) पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्र का पाठ करें
- शांत मन और ध्यानमग्न होकर स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखें:
- प्रत्येक श्लोक को स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ें।
- पाठ समाप्त होने के बाद शनि देव के 10 नामों का जाप करें:
(घ) समर्पण और आशीर्वाद
- पाठ के अंत में शनि देव से प्रार्थना करें:- हे सूर्यपुत्र, शनैश्चर महाराज! मेरी सभी बाधाओं को दूर करें और मुझ पर अपनी कृपा बरसाएं।
4. विशेष नियम और सावधानियां
नियमितता का पालन करें:
- शनिवार के दिन इस स्तोत्र का पाठ करें। यदि संभव हो तो इसे प्रतिदिन पढ़ें।
भोजन और आचरण में शुद्धता:
- सात्विक भोजन करें और पाठ से पहले मांसाहार, मदिरा, और तामसिक भोजन से बचें।
दान और सेवा:
- शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए गरीबों और जरुरतमंदों को दान करें।
- सरसों का तेल, काले तिल, काले कपड़े, और लोहे का दान करना विशेष लाभकारी है।
श्रद्धा और विश्वास:
- पाठ के दौरान श्रद्धा और एकाग्रता बनाए रखें।
- मन में नकारात्मक विचार न लाएं।
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं का नियमित पाठ आपको शनि देव की कृपा दिलाकर जीवन की बाधाओं को दूर करेगा।
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं का पाठ करने के कुछ विशेष नियम और विधियाँ हैं, जिन्हें पालन करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। इन नियमों का पालन करके पाठ को सही तरीके से किया जा सकता है।
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं Path के नियम
- शनिवार: शनिवार का दिन शनि देव की उपासना के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
- सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के समय: शनि स्तोत्र का पाठ सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के समय करना अधिक प्रभावशाली होता है।
- शनि अमावस्या और शनि जयंती: इन विशेष दिनों पर इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से फलदायक होता है।
- स्नान और शुद्धता: पाठ से पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें और मानसिक रूप से शुद्ध रहें।
- स्थल का चयन: पाठ करने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान चुनें।
- अगर संभव हो तो पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर पाठ करें, क्योंकि पीपल वृक्ष शनि देव का प्रिय है।
- आसन: कुश या काले कपड़े का आसन बिछाकर बैठें।
- दिशा: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना उत्तम होता है।
- दीपक और धूपबत्ती:
- दीपक में सरसों का तेल डालें और उसे जलाएं।
- धूपबत्ती भी जलाएं।
- पुष्प और जल:
- नीला या काला पुष्प अर्पित करें।
- जल अर्पित करने से शनि देव की कृपा मिलती है।
- तेल और तिल:
- शनि देव को तेल और काले तिल अर्पित करें।
प्रारंभिक मंत्र:
- पाठ से पहले ॐ शं शनैश्चराय नमः का मंत्र 3 बार जपें।
- यह मंत्र शनि देव को प्रसन्न करने के लिए होता है।
पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्र का पाठ:
- स्तोत्र का पाठ पूर्ण श्रद्धा और ध्यान से करें।
- "य: पुरा नष्टराज्याय " से शुरू होकर पूरे स्तोत्र को पढ़ें।
- यदि संभव हो तो 108 बार पाठ करें, वरना कम से कम 3 बार स्तोत्र का पाठ करें।
- ध्यान केंद्रित रखें: पाठ करते समय शनि देव पर ध्यान केंद्रित करें और एकाग्रचित्त होकर पाठ करें।
- सकारात्मकता: नकारात्मक विचारों से दूर रहें और सकारात्मक सोच रखें।
दान:
- शनि देव की पूजा के बाद दान करना बहुत लाभकारी होता है।
- काले तिल, सरसों का तेल, काले कपड़े, और लोहे का सामान दान करें।
- शनि दोष से मुक्ति के लिए काले उड़द का दान भी करें।
पीपल वृक्ष की पूजा:
- पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर पाठ करें और जल अर्पित करें।
- पीपल के वृक्ष को शनि देव का प्रिय माना जाता है।
सात्विक आहार:
- पाठ के दौरान सात्विक आहार लें।
- तामसिक आहार से बचें, जैसे मांसाहार और मदिरा से दूर रहें।
नैतिक आचरण:
- झूठ बोलने, निंदा करने और अपशब्दों से बचें।
- अच्छे आचरण से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।
- नियमित पाठ:
- नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करें।
- खासकर शनिवार के दिन शनि देव के भक्तों को पाठ करने की सलाह दी जाती है।
- श्रद्धा से करें:
- शनि स्तोत्र का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास से करें।
- यह विश्वास रखें कि शनि देव आपके जीवन से कष्ट और बाधाएं दूर करेंगे।
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं के लाभ (Benefits of Pippalad Rishikrit Shri Shani Stotram)
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं का पाठ नियमित रूप से करने से जीवन में कई सकारात्मक प्रभाव आते हैं। इस स्तोत्र के पाठ से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। इसके कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
1. शनि दोषों से मुक्ति (Relief from Shani Dosha)
- शनि दोष, साढ़े साती और ढैया जैसी समस्याओं से मुक्त होने के लिए पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं का पाठ अत्यधिक प्रभावशाली है।
- यह स्तोत्र शनि के कुप्रभाव को शांत करता है और जीवन में शांति और सुख लाता है।
2. शनि की कृपा (Blessings of Shani)
- शनि देव के कठोर प्रभावों से बचने के लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से लाभकारी है।
- यह शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली उपाय है, जिससे व्यक्ति को जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता मिलती है।
3. मानसिक शांति और संतुलन (Mental Peace and Balance)
- यह स्तोत्र मानसिक शांति और संतुलन को बढ़ाता है।
- शनि का प्रभाव अक्सर व्यक्ति के मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है, लेकिन इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक स्थिति सशक्त और संतुलित होती है।
4. कष्टों का निवारण (Removal of Obstacles)
- यह स्तोत्र जीवन में आ रहे कष्टों, बाधाओं और विफलताओं को दूर करता है।
- शनि के प्रभाव के कारण जो भी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, वे इस स्तोत्र के पाठ से समाप्त होती हैं।
5. समृद्धि और धन का आशीर्वाद (Blessing of Prosperity and Wealth)
- शनि देव के आशीर्वाद से धन और समृद्धि प्राप्त होती है।
- पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
6. शुभ कार्यों में सफलता (Success in Auspicious Tasks)
- इस स्तोत्र का पाठ शुभ कार्यों, व्यवसाय, और शिक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- शनि देव की कृपा से कार्यों में रुकावटें समाप्त होती हैं और सफलता मिलती है।
7. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health)
- शनि के प्रभाव से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।
- यह स्तोत्र शरीर की ताकत और मानसिक स्थिति को मजबूत करने में मदद करता है।
8. जीवन में स्थिरता (Stability in Life)
- शनि देव का आशीर्वाद जीवन में स्थिरता, सुरक्षा और संतुलन लाता है।
- यह स्तोत्र जीवन के उतार-चढ़ाव को कम करता है और एक स्थिर और सुखमय जीवन की ओर मार्गदर्शन करता है।
पिप्पलाद ऋषिकृत श्रीशनि स्तोत्रं - Pippalad Rishikrit Shree shani Stotram
य: पुरा नष्टराज्याय, नलाय प्रददौ किल ।
स्वप्ने तस्मै निजं राज्यं, स मे सौरि: प्रसीद तु ।।1।।
केशनीलांजन प्रख्यं, मनश्चेष्टा प्रसारिणम् ।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, नमस्यामि शनैश्चरम् ।।2।।
नमोsर्कपुत्राय शनैश्चराय, नीहार वर्णांजनमेचकाय ।
श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च, फलप्रदो मे भवे सूर्य पुत्रं ।।3।।
नमोsस्तु प्रेतराजाय, कृष्णदेहाय वै नम: ।
शनैश्चराय ते तद्व शुद्धबुद्धि प्रदायिने ।।4।।
य एभिर्नामाभि: स्तौति, तस्य तुष्टो ददात्य सौ ।
तदीयं तु भयं तस्यस्वप्नेपि न भविष्यति ।।5।।
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रू:, कृष्णो रोद्रोsन्तको यम: ।
सौरि: शनैश्चरो मन्द:, प्रीयतां मे ग्रहोत्तम: ।।6।।
नमस्तु कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोsस्तुते ।
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमोsस्तुते ।।7।।
नमस्ते रौद्र देहाय, नमस्ते बालकाय च ।
नमस्ते यज्ञ संज्ञाय, नमस्ते सौरये विभो ।।8।।
नमस्ते मन्दसंज्ञाय, शनैश्चर नमोsस्तुते ।
प्रसादं कुरु देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च ।।9।।
निष्कर्ष (Conclusion)
पिप्पलाद ऋषिकृत श्री शनि स्तोत्रं का नियमित पाठ एक शक्तिशाली उपाय है शनि दोष, साढ़े साती, ढैया और अन्य समस्याओं को समाप्त करने के लिए। यह शनि देव की कृपा को आकर्षित करता है और जीवन में सुख, समृद्धि, शांति और सफलता की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र के द्वारा मानसिक शांति, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार, और जीवन में स्थिरता प्राप्त की जा सकती है।
इस स्तोत्र का पाठ पूरी श्रद्धा और ध्यान से करना चाहिए, और इसका पालन करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। नियमित रूप से पाठ करने से शनि के प्रभावों को शांत किया जा सकता है और जीवन को सुखी, समृद्ध और शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।
टिप्पणियाँ