कृष्ण ने उठाया गोवर्धन पर्वत - गोवर्धन लीला का महत्व
गोवर्धन पूजा का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला की याद में मनाया जाता है, जिसमें उन्होंने इंद्रदेव के प्रकोप से वृंदावनवासियों की रक्षा की। इस कथा के माध्यम से श्रीकृष्ण ने हमें कर्म, कर्तव्य, और प्रकृति की महत्ता का संदेश दिया।
कथा का आरंभ: इंद्र की पूजा का प्रचलन
एक बार श्रीकृष्ण ने देखा कि वृंदावन के लोग बड़ी श्रद्धा और भक्ति से इंद्रदेव की पूजा की तैयारी में लगे हैं। कृष्ण ने अपने पिता नंद बाबा से पूछा कि यह किस पूजा की तैयारी चल रही है। नंद बाबा ने बताया कि लोग इंद्र को खुश करने के लिए पूजा कर रहे हैं ताकि वे अच्छी वर्षा करें और फसलें हरी-भरी हों। श्रीकृष्ण को यह बात ठीक नहीं लगी। उन्होंने कहा, “बारिश करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। किसी को अपने कर्तव्य के बदले में उपहार या भेंट नहीं लेनी चाहिए।”
गोवर्धन और गायों की पूजा का महत्व
कृष्ण ने वृंदावनवासियों को समझाया कि यदि पूजा करनी ही है तो हमें अपने गोवर्धन पर्वत और गायों की करनी चाहिए। गोवर्धन पर्वत अपनी हरी-हरी घास और वनस्पति से गायों का पोषण करता है, और गायें हमें दूध देकर जीवन का आधार प्रदान करती हैं। ये दोनों निस्वार्थ भाव से हमारी सेवा करते हैं और कुछ भी बदले में नहीं माँगते।
इंद्र का प्रकोप और कृष्ण की लीला
कृष्ण की सलाह पर वृंदावनवासियों ने इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की, जिससे इंद्रदेव को क्रोध आ गया। इंद्र ने अपनी शक्ति दिखाने के लिए तेज आंधी और मूसलधार बारिश शुरू कर दी। पूरे वृंदावन में भारी वर्षा और तूफान ने भय और संकट का माहौल बना दिया। लोग डर गए और अपनी रक्षा के लिए कृष्ण की शरण में गए।
गोवर्धन पर्वत का उठाना: कृष्ण की दिव्यता का प्रमाण
कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर सभी लोगों और जानवरों को सुरक्षा प्रदान की। सात दिनों तक लगातार वर्षा होती रही, लेकिन कृष्ण की दिव्यता से सब लोग सुरक्षित रहे। गोवर्धन पर्वत की छाँव में सभी सुरक्षित थे और उन्होंने निर्भय होकर संकट का सामना किया।
इंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास
अंत में, इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्हें समझ में आया कि वे एक परमात्मा के सामने थे, जो संसार की सारी शक्तियों का आधार है। इंद्र ने कृष्ण और वृंदावनवासियों से माफी मांगी और उनकी महिमा को स्वीकार किया।
गोवर्धन लीला का संदेश: कर्म, कर्तव्य और प्रकृति प्रेम
श्रीकृष्ण की इस लीला से हमें यह सीख मिलती है कि कर्म बिना किसी अपेक्षा के करना चाहिए और प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। प्रकृति और पशु, जो हमें पोषण और संसाधन प्रदान करते हैं, हमारी पूजा और आदर के पात्र हैं। गोवर्धन पूजा का संदेश है कि हमें अपने पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए और प्रकृति का आदर करना चाहिए।
निष्कर्ष
गोवर्धन लीला हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म प्रकृति का सम्मान करना, निस्वार्थ कर्म करना, और अपनी जिम्मेदारियों को समझकर निभाना है। श्रीकृष्ण की यह लीला हमें कर्म और कर्तव्य की सच्ची भावना का पाठ पढ़ाती है। आइए, हम भी इस पर्व पर प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करने का संकल्प लें और श्रीकृष्ण के इस प्रेरणादायक संदेश को अपने जीवन में अपनाएं।
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