भैया दूज का महत्व और कारण

भैया दूज का महत्व और कारण

भैया दूज, दिवाली के बाद मनाया जाने वाला पर्व, भाई-बहन के पवित्र और अनमोल रिश्ते का प्रतीक है। यह त्योहार भाई-बहन को अपने संबंधों में प्रेम और स्नेह को व्यक्त करने का एक और अवसर देता है, जो रक्षाबंधन के बाद फिर से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के सुख, समृद्धि, और दीर्घायु की कामना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनका सम्मान और आभार व्यक्त करते हैं। भाई दूज का पर्व भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे उत्तर भारत में इसे "भाई दूज," महाराष्ट्र में "भाऊ-बीज," और बंगाल में "भाई फोंटा" कहा जाता है।

भाई दूज का धार्मिक महत्व

भाई दूज का उल्लेख प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल की द्वितीया को मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमी (यमुना) से मिलने आए थे। बहन ने अपने भाई का तिलक किया, आरती उतारी, और भोजन कराया। प्रसन्न होकर यमराज ने उसे वरदान दिया कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के तिलक के बाद उसका स्वागत स्वीकार करेगा, वह दीर्घायु और सुखी जीवन प्राप्त करेगा। इसलिए इसे 'यम द्वितीया' भी कहते हैं। साथ ही, इस दिन यमुना में स्नान और यमदेव की पूजा का विशेष महत्व माना गया है, जिससे यमराज का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।

भाई दूज क्यों मनाया जाता है?

भाई दूज का पर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए आरती और तिलक करती हैं और उनके खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का वचन देते हैं। एक पुरानी कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण, जब नरकासुर का वध करके लौटे, तो उनकी बहन सुभद्रा ने उनका स्वागत तिलक, माला, मिठाई, और आरती से किया था। इस दिन पूरा परिवार एकजुट होकर इस पर्व को धूमधाम से मनाता है और विविध व्यंजनों और मिठाइयों का आनंद लेता है।

कौन मनाता है भाई दूज?

भाई दूज को देशभर के हिंदू समुदाय द्वारा श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार खासकर उत्तर भारत, महाराष्ट्र, और पश्चिम बंगाल में प्रमुखता से मनाया जाता है।

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