हनुमान अष्टक का पाठ PDF
विषय सूची
- हनुमान अष्टक पाठ का महत्व
- हनुमान अष्टक का पाठ विधि
- विशेष दिन
- हनुमान अष्टक पाठ के नियम
- हनुमान अष्टक पाठ के लाभ
- हनुमान अष्टक का संक्षिप्त सारांश
- हनुमान अष्टक का पाठ
- निष्कर्ष
- हनुमान अष्टक का पाठ PDF
हनुमान अष्टक पाठ का महत्व
हनुमान अष्टक का पाठ करने का विशेष महत्व है, और यह संकटमोचक हनुमान जी का प्रार्थनापूर्ण स्तोत्र है, जो उनके भक्तों को हर प्रकार की कठिनाइयों और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति प्रदान करता है। हनुमान जी की स्तुति में रचित यह अष्टक उनके महान कार्यों, उनके अद्वितीय साहस, और भक्तों पर उनकी असीम कृपा का स्मरण कराता है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति विधि-विधान के साथ मंगलवार के दिन सुबह और शाम हनुमान अष्टक का पाठ करता है, वह न केवल बाधाओं और प्रेत-बाधाओं से सुरक्षित रहता है, बल्कि हमेशा रोगमुक्त और बलशाली भी रहता है।
हनुमान अष्टक का पाठ विधि
हनुमान अष्टक का पाठ करते समय विशेष विधि का पालन करना लाभकारी माना गया है। इस विधि का अनुसरण करके भक्त हनुमान जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं।
पाठ की सामग्री
- हनुमान जी की मूर्ति या चित्र: किसी साफ और पवित्र स्थान पर हनुमान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- सिंदूर और चोला: हनुमान जी को सिंदूर और तेल का चोला चढ़ाएं। इससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं।
- लाल फूल: विशेषकर लाल गुलाब या गेंदा का फूल चढ़ाएं।
- धूप-दीप और अगरबत्ती: पूजा के दौरान धूप-दीप जलाना आवश्यक है।
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर मिलाकर पंचामृत तैयार करें।
- नैवेद्य: गुड़, चना या हनुमान जी का प्रिय भोग, जैसे लड्डू अर्पण करें।
हनुमान अष्टक पाठ की विधि
स्नान और शुद्धता: सबसे पहले स्वयं स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थान को भी साफ-सुथरा रखें।
आरंभिक पूजा: पूजा स्थल पर हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने आसन पर बैठ जाएं। सबसे पहले दीपक जलाकर पूजा का आरंभ करें।
प्रणाम और ध्यान: हनुमान जी का ध्यान करें, और उनकी कृपा और शक्ति को स्मरण करते हुए, तीन बार "ॐ हनुमंते नमः" मंत्र का उच्चारण करें।
हनुमान अष्टक का पाठ: अब हनुमान अष्टक का पाठ आरंभ करें। पूरे मनोयोग और श्रद्धा के साथ प्रत्येक चौपाई का ध्यानपूर्वक उच्चारण करें।
भोग अर्पित करें: पाठ समाप्त होने के बाद, हनुमान जी को नैवेद्य के रूप में गुड़, चना, या लड्डू का भोग अर्पण करें।
आरती: अंत में, हनुमान जी की आरती करें और उनके चरणों में अपने संपूर्ण कष्टों और समस्याओं के समाधान के लिए प्रार्थना करें।
प्रसाद वितरण: पूजा समाप्त होने के बाद, अर्पित भोग और प्रसाद सभी को वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
संकल्प: यदि कोई विशेष मनोकामना है, तो पाठ के अंत में हनुमान जी से उसे पूर्ण करने की प्रार्थना करें और 21 या 51 दिनों तक नियमित रूप से हनुमान अष्टक का पाठ करने का संकल्प लें।
विशेष दिन
हनुमान अष्टक का पाठ विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार के दिन करना अत्यधिक फलदायी माना गया है।
इस विधि से हनुमान अष्टक का पाठ करने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, बल और संकटों से मुक्ति मिलती है।
हनुमान अष्टक का पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करने से इसका प्रभाव बढ़ जाता है और हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यहाँ हनुमान अष्टक पाठ के नियम दिए गए हैं:
हनुमान अष्टक पाठ के नियम
शुद्धता का पालन: हनुमान अष्टक का पाठ करने से पहले शुद्धता का ध्यान रखें। पाठ से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पाठ करने का स्थान भी स्वच्छ और शांत होना चाहिए।
सही समय का चयन: हनुमान अष्टक का पाठ प्रातःकाल और संध्या के समय करना श्रेष्ठ माना गया है। यदि विशेष फल चाहते हैं तो मंगलवार और शनिवार के दिन पाठ करना अधिक लाभकारी होता है।
व्रत का पालन: यदि संभव हो, तो पाठ वाले दिन उपवास या एक समय भोजन करें। इसे "हनुमान व्रत" कहा जाता है और इससे हनुमान जी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
पवित्र आसन पर बैठें: हनुमान अष्टक का पाठ करते समय आसन पर बैठें, विशेषकर लाल रंग का आसन उपयुक्त माना जाता है। पाठ के दौरान किसी प्रकार का अनादर न हो, इसका ध्यान रखें।
हनुमान जी का ध्यान और संकल्प: पाठ आरंभ करने से पहले हनुमान जी का ध्यान करें और संकल्प लें कि आप यह पाठ अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए कर रहे हैं।
सिंदूर और चोला चढ़ाना: हनुमान जी को सिंदूर और चोला चढ़ाना विशेष फलदायी माना जाता है। पाठ के दौरान या पहले सिंदूर-चोला अर्पित करने से हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
भक्ति और श्रद्धा के साथ पाठ करें: पूरे मनोयोग और श्रद्धा से हनुमान अष्टक का पाठ करें। ध्यान रखें कि पाठ के दौरान मन शांत और एकाग्र होना चाहिए।
पाठ की संख्या: यदि आप हनुमान जी से विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो नियमित रूप से 7, 11 या 21 बार हनुमान अष्टक का पाठ करें। आप इसे 21, 41 या 108 दिनों तक नियमित रूप से भी कर सकते हैं।
भोग और प्रसाद: पाठ समाप्त होने पर हनुमान जी को गुड़ और चना का भोग अर्पण करें। इसे प्रसाद के रूप में स्वयं भी ग्रहण करें और दूसरों में भी बाँटें।
संकल्प और संयम: पाठ के दौरान और बाद में संयमित जीवन जीने का प्रयास करें। किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार, क्रोध, और असंयमित व्यवहार से बचें।
इन नियमों का पालन करने से हनुमान अष्टक का पाठ अधिक प्रभावशाली हो जाता है और हनुमान जी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
हनुमान अष्टक पाठ के लाभ
दोषों और प्रेत बाधाओं से मुक्ति: हनुमान अष्टक का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जाओं, प्रेत बाधाओं, और अन्य दोषों से रक्षा होती है। यह पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए प्रभावी है, जो बिना किसी कारण से जीवन में अवरोधों और परेशानियों का सामना कर रहे हैं।
शांति और सुख-समृद्धि: नियमित रूप से हनुमान अष्टक का पाठ व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और शांति लाता है। हनुमान जी की कृपा से समृद्धि और सुख-शांति का अनुभव होता है।
संकट से मुक्ति: मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति संकटमोचन हनुमान जी की कृपा पाने के लिए हनुमान अष्टक का सात बार पाठ करता है और यह सिलसिला लगातार 21 दिनों तक जारी रखता है, तो उसके जीवन में आ रहे बड़े से बड़े संकट भी दूर हो जाते हैं।
धैर्य और आत्मविश्वास का विकास: हनुमान जी के साहस और बलिदानों को स्मरण करते हुए यह अष्टक पाठ व्यक्ति में धैर्य और आत्मविश्वास का विकास करता है। विशेषकर जब कोई मुश्किल समय से गुजर रहा हो, तो यह पाठ आशा और साहस प्रदान करता है।
हनुमान अष्टक का संक्षिप्त सारांश
हनुमान अष्टक में हनुमान जी के अनन्य बल, पराक्रम, और भक्तों के प्रति उनकी करुणा को वर्णित किया गया है। इस अष्टक में उनके द्वारा किए गए महत्त्वपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख है, जैसे कि भगवान सूर्य को निगलना, सीता माता का पता लगाना, रावण के विरुद्ध लड़ाई में राम और लक्ष्मण की सहायता करना, और महावीर स्वरूप में पाताल लोक जाकर अहिरावण का वध करना।
हनुमान अष्टक का मुख्य भाग: इस अष्टक के पाठ में हनुमान जी के शौर्य और भक्ति का वर्णन किया गया है। प्रत्येक चौपाई में उनकी अद्वितीय लीलाओं का स्मरण किया जाता है और उनके बल और भक्तों की सहायता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाया गया है।
दोहा
अष्टक का दोहा, "लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर। वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।" हनुमान जी के रूप और उनके अद्भुत बल को दर्शाता है। यह दोहा पाठ का अंतिम भाग है और इसमें हनुमान जी की अजेयता और महाबली रूप का चित्रण होता है।
हनुमान अष्टक का पाठ | Hanuman Ashtak Ka Paath
बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।
।। दोहा।।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
जय श्रीराम, जय हनुमान, जय हनुमान।
निष्कर्ष
हनुमान अष्टक का पाठ न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह व्यक्ति को आत्मबल और साहस प्रदान करता है और जीवन में आने वाले हर प्रकार के संकटों से मुक्त करने में सहायक होता है।
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