अष्टलक्ष्मी स्तोत्र ! Ashtalakshmi stotra
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र : अष्टलक्ष्मी के आठ स्वरूपों की स्तुति
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अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का महत्व:
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के पाठ के नियम:
स्नान और शुद्धता:
- स्तोत्र पाठ से पहले स्नान कर लें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ रखें और माँ लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने पाठ करें।
व्रत और ब्रह्मचर्य का पालन:
समीपता और एकाग्रता:
- माँ लक्ष्मी का स्मरण करते हुए पूर्ण एकाग्रता और भक्ति भाव के साथ पाठ करें। मन को शांत और स्थिर रखें।
विशेष समय:
- शुक्रवार का दिन माँ लक्ष्मी का विशेष दिन माना जाता है, इसलिए शुक्रवार को अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना अधिक शुभ होता है।
- इसके अतिरिक्त सुबह के समय या संध्या समय पाठ करना उत्तम माना गया है।
दिया और अगरबत्ती जलाना:
- माँ लक्ष्मी के सामने घी का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। इसके साथ ही कुछ मिठाई या फल का भोग अर्पित करें।
कमल या पीले फूल:
- माँ लक्ष्मी को कमल और पीले फूल बहुत प्रिय हैं। पूजा में इनका उपयोग करें। कमल का फूल माँ लक्ष्मी को समर्पित करने से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
संख्या का पालन:
सप्ताह के विशेष दिन:
सकारात्मक संकल्प:
- पाठ के दौरान माँ लक्ष्मी से आशीर्वाद और समृद्धि की प्रार्थना करें, लेकिन मन में किसी भी प्रकार की नकारात्मक भावना या किसी के लिए हानि का विचार न लाएं।
भोग प्रसाद का वितरण:
- पाठ के बाद जो भोग अर्पित किया गया हो, उसे परिवारजनों में प्रसाद के रूप में वितरित करें। इसे सभी सदस्यों में बांटें और खुद भी ग्रहण करें।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पूजन विधि
पूजन विधि
- प्रातः स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को स्वच्छ करके गंगाजल या शुद्ध जल का छिड़काव करें।
- एक साफ चौकी या पूजन स्थल पर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- माँ लक्ष्मी को लाल या पीले वस्त्र अर्पित करें और उनके सामने दीपक जलाएं।
- धूप, दीप और अगरबत्ती जलाकर पूजा स्थान को सुगंधित करें। दीपक में घी का उपयोग करना उत्तम माना जाता है।
- एक तांबे के कलश में जल भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें। इसे माँ लक्ष्मी का प्रतीक मानकर पूजा में शामिल करें।
- अष्टलक्ष्मी के आठ रूपों की पूजा के लिए धान्य (अन्न), पुष्प, अक्षत (चावल), दुग्ध, दही, शहद, नारियल, और श्रीफल (सुपारी) को अर्पित करें।
- गुलाब, कमल या कोई भी सुगंधित पुष्प माँ लक्ष्मी को अर्पित करें।
- शांत मन से माँ लक्ष्मी के अष्ट रूपों का स्मरण करते हुए अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।
- प्रत्येक श्लोक के बाद “जय जय हे मधुसूदन कामिनि” का जाप करें।
- पूजा के बाद कुछ समय माँ लक्ष्मी का ध्यान करें और उनसे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें।
- उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की कामना करें।
- अष्टलक्ष्मी की आरती करें। अगर आरती का पाठ उपलब्ध हो तो उसे पढ़ें या "ॐ जय लक्ष्मी माता" की आरती गाएं।
- माँ लक्ष्मी को खीर, फल, या कोई अन्य मिष्ठान का भोग अर्पित करें।
- पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद सभी को बांटें।
- पूजा के अंत में माँ लक्ष्मी को प्रणाम करें और उनके प्रति आभार व्यक्त करें। अपने जीवन में उनके आशीर्वाद की कामना करें।
- अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ शुक्रवार के दिन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- यदि संभव हो, तो लाल वस्त्र पहनकर पूजा करें और माँ लक्ष्मी के लिए विशेषकर लाल फूल अर्पित करें।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का लाभ:
- धन-धान्य की वृद्धि: धान्य लक्ष्मी और धन लक्ष्मी की कृपा से घर में धन-धान्य का अभाव नहीं रहता। आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है और समृद्धि का वास होता है।
- स्वास्थ्य और धैर्य: धैर्य लक्ष्मी के आशीर्वाद से मानसिक शांति, धैर्य और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इससे मन में नकारात्मकता का नाश होता है और सकारात्मकता का विकास होता है।
- विजय और सफलता: विजय लक्ष्मी की पूजा से कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। सभी प्रकार की प्रतिस्पर्धा और चुनौतियों में विजय मिलती है।
- विद्या और ज्ञान का विकास: विद्या लक्ष्मी की कृपा से विद्या और ज्ञान का विकास होता है। विद्यार्थी और शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए इसका विशेष महत्व है, जिससे पढ़ाई में सफलता मिलती है।
- सुखद पारिवारिक जीवन: संतान लक्ष्मी की कृपा से परिवार में सुख-शांति और संतान की प्राप्ति होती है। इसके नियमित पाठ से संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
- सुख-सौभाग्य में वृद्धि: गज लक्ष्मी की कृपा से ऐश्वर्य, सुख, सौभाग्य, और वैभव में वृद्धि होती है। परिवार में सुखद जीवन और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन का आनंद मिलता है।
- शांति और प्रसन्नता: आदिलक्ष्मी और संतोष लक्ष्मी की कृपा से घर में शांति और प्रसन्नता का माहौल बनता है। मन में संतोष रहता है, और सभी कार्य सरलता से पूर्ण होते हैं।
- संकटों का नाश: माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद सभी प्रकार के दुख, बाधाएं, और संकटों का नाश करता है। जीवन में सकारात्मकता और सुख-समृद्धि का प्रवेश होता है।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र : अष्टलक्ष्मी के आठ स्वरूपों की स्तुति
आइए जानते हैं अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के प्रत्येक रूप के बारे में:-
श्लोक:
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहॊदरि हेममये
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायनि, मञ्जुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
श्लोक:
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मङ्गल रूपिणि, मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥
श्लोक:
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥
श्लोक:
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥
श्लोक:
अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ॥
श्लोक:
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर, भूषित वासित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्करदेशिक मान्यपदे
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ॥
श्लोक:
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥
श्लोक:
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमि, दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पूराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥
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