अग्नि पुराण तीन सौ नवाँ अध्याय ! Agni Purana 309 Chapter !

अग्नि पुराण तीन सौ नवाँ अध्याय ! Agni Purana 309 Chapter !

अग्नि पुराण 309 अध्याय - त्वरितापूजा

अग्निरुवाच

त्वरिताङ्गान्समाख्यास्ये भुक्तिमुक्तिप्रदायकान् ।
ओं आधारशक्त्यै नमः । ओं ह्रीँ पुरु महासिंहाय नमः ।

ओं पद्माय नमः । ओं ह्रीँ ह्रूँ खेचछेक्षः । स्त्रीँ ओं ह्रूँ क्षैँ ह्रूँ फट्
त्वरितायै नमः । खे च हृदयाय नमः । चछे शिरसे नमः ।

छेक्षः शिखायै नमः । क्षस्त्री कवचाय नमः । स्त्रीँ ह्रूँ नेत्राय नमः ।
ह्रूँ खे अस्त्राय फट् नमः । ओं त्वरिताविद्यां विद्महे तूर्णविद्याञ्च
धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् । श्रीप्रणितायै नमः । ह्रूँ कारायै नमः ।

ओं खेच हृदयाय नमः । खेचर्य्यै नमः । ओं चण्डायै नमः ।
छेदन्यै नमः क्षेपण्यै नमः । स्त्रियै ह्रूँ कार्य्यै नमः । क्षेमङ्कर्य्यै-
जयायै किङ्कराय रक्ष । ओं त्वरिताज्ञया स्थिरो भव वषट् ।

तोतला त्वरिता तूर्णेत्येवं विद्येयमीरिता ।। १ ।।

शिरोब्रुमस्तके कण्ठे हृदि नाभौ च गुह्यके ।
उर्व्वोश्च जानुजङ्घोरुद्वये चरणयोः क्रमात् ।। २ ।।

न्यस्ताङ्गो न्यस्तमन्त्रस्तु समस्तं व्यापकं न्यसेत् ।
पार्वती शवरी चेशा वरदाभयहस्तिका ।। ३ ।।

मयूरबलया पिच्छमौलिः किसलयांशुका ।
सिंहासनस्था मायूरवर्हच्छत्रसमन्विता ।। ४ ।।

त्रिनेत्रा श्यामला देवी वनमालाविभूषणा ।
विप्राहिकर्णाभरणा क्षत्रकेयूरभूषणा ।। ५ ।।

वैश्यानागकटोबन्धा वृषलाहिकृतनूपुरा ।
एवं रूपात्मिका भूत्वा तन्मन्त्रं नियुतं जपेत् ।। ६ ।।

ईशः किरातरूपोषऽभूत्‌ परा गौरी च तादृशी ।
जपेद्ध्यायेत् पूजयेत्तां सर्वसिद्ध्यैविषादिहृत् ।। ७ ।।

अष्टसिंहासने पूज्या दले पूर्वादिके क्रमात् ।
अङ्गणायत्री प्रणीता हूङ्काराद्या दलग्रके ।। ८ ।।

फट्‌कारी चाग्रतो देव्याः श्रीवीजेनार्च्चयेदिमाः ।
लोकेशायुधवर्णास्ताः फट्‌कारी तु धनुर्द्धरा ।। ९ ।।

जया च विजया द्वास्थे पूज्ये सौवर्णयष्टिके ।
किङ्कण वर्वरी मुण्डी लगुड़ी च तयोर्वरिः ।। १० ।।

इष्ट्वैवं सिद्धयेद्‌द्रव्यैः कुण्डे योन्याकृतौ हुनेत् ।
हेमलाभोऽर्जुनैर्द्धान्यैर्गोधूमैः पुष्टिसम्पदः ।। ११ ।।

यवैर्द्धान्यैस्तिलैः सर्वसिद्धिरीतिविनाशनम् ।
अक्षैरुन्मत्तता शत्रोः शाल्मलीभिश्च मारणम् ।। १२ ।।

जम्बुभिर्धनधान्याप्तिस्तुष्टिर्नीलोत्पलैरपि ।
रक्तोत्पलैर्म्महापुष्टिः कुन्दपुष्पैर्म्महोदयः ।। १३ ।।

मल्लिकाभिः परक्षोभः कुमुदैर्जनवल्लभः ।
अशोकैः पुत्रलाभः स्यात् पाटलाभिः शुभाङ्गना ।। १४ ।।

आम्रैरायुस्तिलैर्ल्लक्षअमीर्विल्वैः श्रीश्चम्पकैर्द्धनम् ।
इष्टं मधुकपुष्पैश्च विल्वैः सर्वज्ञतां लभेत् ।। १५ ।।

त्रिलक्षजप्यात्सर्व्वाप्तिर्होमाद्ध्यानात्तथेज्यया ।
मण्डलेऽभ्यर्च्च्य गायत्र्या आहुतीः पञ्चविंशतिम् ।। १६ ।।

दद्याच्छतत्रयं मूलात् पल्लवैर्दीक्षितो भवेत् ।
पञ्चगव्यं पुरा पीत्वा चरूकं प्राशयेत्सदा ।। १७ ।।

इत्यादिमहापुराणो आग्नेये त्वरितापूजा नाम नवाधिकत्रिशततमोऽध्यायः ।।

अग्नि पुराण - तीन सौ नवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 309 Chapter!-In Hindi

तीन सौ नवाँ अध्याय - त्वरिता-पूजा

अग्निदेव कहते हैं- मुने! त्वरिता-विद्याका ज्ञान भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है; अतः अब उसीका वर्णन करूँगा। पहले ॐ आधारशक्त्यै नमः ।'- इस मन्त्रसे आधारशक्तिका स्मरण और वन्दन करे। फिर महासिंहस्वरूप सिंहासनकी 'ॐ प्रों पुरु पुरु महासिंहाय नमः।'- इस मन्त्रसे और आसनस्वरूप कमलकी 'पद्माय नमः।' इस मन्त्रसे पूजा करे। तदनन्तर मूलमन्त्रका उच्चारण करके त्वरितादेवीकी पूजा करे। यथा 'ॐ ह्रीं हूं खेच च्छे क्षः स्त्री हूं क्षे ह्रीं फट् त्वरितायै नमः। इसका अङ्गन्यास इस प्रकार है-खे च हृदयाय नमः। च च्छे शिरसे नमः (शिरसे स्वाहा)। छे क्षः शिखायै नमः (शिखायै वषट्)। क्षः स्त्री कवचाय नमः (कवचाय हुम्)। स्त्री हूं नेत्राय (नेत्रत्रयाय नमः (वौषट्)। हूं. शें अस्त्राय नमः (अस्त्राय फट्) ॥ १-२ ॥ 

इसी प्रकार करन्यास करके निम्नाङ्कित गायत्रीका जप करे-

'ॐ त्वरिताविद्यां विद्यहे। तूर्णविद्यां च धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।' यह 'त्वरिता गायत्री मन्त्र' है।

तदनन्तर पीठगत कमल-कर्णिकाके केसरोंमें पूर्वादि क्रमसे अङ्ग-देवताओंका पूजन करे। यथा-
'खे च हृदयाय नमः (पूर्व)। च च्छे शिरसे नमः (अग्रिकोणे)। छे क्षः शिखायै नमः (दक्षिणे)। क्षः स्वी कवचाय नमः (नैऋत्ये)। स्त्री हूं नेत्रत्रयाय नमः (पश्चिमे)। हूँ क्षे अस्त्राय नमः (वायव्ये)।' तत्पश्चात् उत्तरदिशामें 'श्रीप्रणीतायै नमः' इस मन्त्रसे श्रीप्रणीताका तथा ईशानकोणमें 'श्रीगायत्र्यै नमः' से गायत्रीका पूजन करे ॥ ३३ ॥

तदनन्तर बाह्यगत तीन गोलाकार रेखाओं के बीचमें स्थित दो वीथियोंमेंसे देवीके सामनेवाले दलायके बाह्यभागमें 'कोदण्डशरधारिण्यै फट्‌कार्यं नमः।' से फट्‌कारीकी पूजा करे। फिर उसके बाहरवाली वीथीमें देवीके सम्मुख 'गदापाणये किङ्कराय नमः।' से किङ्करकी पूजा करके कहे- 'किङ्कर रक्ष रक्ष त्वरिताज्ञया स्थिरो भव।' इसके बाद द्वारके दक्षिणपार्श्वमें जयाकी और वामपार्श्वमें विजयाकी पूजा करे 'जयायै नमः, विजयायै नमः ।' तत्पश्चात् कमलके पूर्वादि दलोंमें 'हुंकार्य नमः। खेचर्यै नमः। चण्डायै नमः। छेदिन्यै नमः। क्षेपिण्यै नमः। स्त्रीकार्यै नमः। हुंकार्यै नमः। क्षेमङ्कयै नमः।' इन मन्त्रोंसे 'हूंकारी' आदि आठ मन्त्राक्षरशक्तियोंकी पूजा करनी चाहिये। त्वरिता-विद्या 'तोतला', 'त्वरिता' और 'तूर्णी' - इन तीन नामोंसे कही जाती है। इसके अक्षरोंका सिर, भ्रू-युगल, ललाट, कण्ठ, हृदय, नाभि, गुह्य (मूलाधार), ऊरुद्वय, जानुद्वय, जङ्घाद्वय, ऊरुद्वय, चरणद्वयमें न्यास करके समस्त विद्याद्वारा व्यापकन्यास करना चाहिये ॥ ४-६ ॥ 

त्वरितादेवी साक्षात् पर्वतराजनन्दिनीकी स्वरूपभूता हैं, इसलिये इनका नाम 'पार्वती' है। शबर (किरात) का वेष धारण करनेसे उनको 'शबरी' कहा गया है। वे सबकी स्वामिनी या सबपर शासन करनेमें समर्थ होनेसे 'ईशा' कही गयी हैं। उनके एक हाथमें वरमुद्रा और दूसरेमें अभयमुद्रा शोभा पाती है। मोरपंखका कंगन पहननेसे उनका नाम 'मयूरवलया' है। मयूरपिच्छका मुकुट धारण करनेसे उन्हें 'पिच्छमौलि' कहा जाता है। नूतन पल्लव ही उनके वस्त्रके उपयोगमें आते हैं, अतः वे 'किसलयांशुका' कही गयी हैं। वे सिंहासनपर विराजमान होती हैं। मोरपंखका छत्र धारण करती हैं। त्रिनेत्रधारिणी तथा श्यामवर्णा देवी हैं। आपादतललम्बिनी माला (वनमाला) उनका आभूषण है। ब्राह्मणजातीय दो नाग (अनन्त और कुलिक) देवीके कानोंके आभूषण हैं। क्षत्रियजातिके दो नागराज (वासुकि और शङ्खपाल) उनके बाजूबंद बने हुए हैं। वैश्यजातीय दो नाग (तक्षक और महापद्म) त्वरितादेवीके कटिप्रदेशमें किङ्किणी बनकर रहते हैं और शूद्रजातीय दो सर्प (पद्म तथा कर्कोटक) देवीके चरणोंमें नूपुरकी शोभा प्रदान करते हैं। साधक स्वयं भी देवीस्वरूप होकर उनके मन्त्रका एक लाख जप करे। पूर्वकालमें देवेश्वर शिव किरातरूपमें प्रकट हुए थे। उस समय देवी पार्वती भी तदनुरूप ही किराती बन गयी थीं। सब प्रकारकी सिद्धियोंके लिये उनका ध्यान करे। उनके मन्त्रका जप करे तथा उनका पूजन करे। देवीकी आराधना विष आदि सब प्रकारके उपद्रवोंको हर लेती है॥७-१०॥ 

(पूर्ववर्णनके अनुसार) कमलके पूर्वादि दलके भीतर कर्णिकामें आठ सिंहासनोंपर निम्नाङ्कित देवियोंका क्रमशः पूजन करे। हृदयादि छ: अङ्गोंसहित प्रणीता और गायत्रीका पूजन करे। पूर्वादि दलोंमें हूंकारी आदिकी पूजा करे। दलाग्रभागमें देवी त्वरिताके सम्मुख फट्‌कारीकी पूजा करे। इन सब देवियोंके नाममन्त्रके साथ 'श्री' बीज लगाकर उसीसे इनकी पूजा करना चाहिये। हुंकारी आदिके आयुध और वर्ण उस- उस दिशाके दिक्पालंकि ही समान हैं। परंतु फट्‌कारी देवी धनुष धारण करती हैं। मण्डलके द्वार-भागोंमें जया तथा विजयाकी पूजा करे। ये दोनों देवियाँ सुनहरे रंगकी छड़ी धारण करती हैं। उनके बाह्यभागमें देवीके समक्ष द्वारपाल किङ्करका पूजन करना चाहिये, जिसे 'वर्वर' कहा गया है। उसका मस्तक मुण्डित है। (मतान्तरके अनुसार उसके सिरके केश ऊपरकी और उठे रहते हैं।) वह लगुडधारी है। उसका स्थान जया-विजयाके बाह्यभागमें है। इस प्रकार पूजन करके सिद्धिके लिये हवनीय द्रव्योंद्वारा योन्याकार कुण्डमें हवन करे ॥ ११-१४॥

उज्ज्वल धान्यसे हवन करनेपर सुवर्ण-लाभ होता है। गोधूमसे हवन करनेपर पुष्टि सम्पत्ति प्राप्त होती है। जौ, धान्य (चावल) और तिलोंकी मिश्रित हवनसामग्रीसे हवन करनेपर सब प्रकारको सिद्धि सुलभ होती है तथा इतिभयका नाश हो जाता है। बहेड़ेका हवन किया जाय तो शत्रुको उन्माद हो जाता है। सेमरसे हवन करनेपर शत्रुके प्रति मारणका प्रयोग सफल होता है। जामुनके फलकी आहुतियाँ दी जायें तो उनसे धन-धान्यकी प्राप्ति होती है। नील कमलके हवनसे तुष्टि होती है। लाल कमलोंद्वारा होम करनेसे महापुष्टि होती है। कुन्दके फूलोंसे होम किया जाय तो महान् अभ्युदय होता है। मल्लिका कुसुमोंसे हवन करनेपर ग्राम या नगरमें क्षोभ होता है। कुमुद-कुसुमोंकी आहुतिसे साधक सब लोगोंका प्रिय हो जाता है॥ १५-१७॥

अशोक-सुमनोंसे होम किया जाय तो पुत्रकी और पाटलासे होम करनेपर उत्तम अङ्गनाकी प्राप्ति होती है। आम्रफलकी आहुतिसे आयु, तिलोंके हवनसे लक्ष्मी, बिल्वके होमसे श्री तथा चम्पाके फूलोंके हवनसे धनकी प्राप्ति होती है। महुएके फूलों और बेलके फलोंसे एक साथ होम करनेपर सर्वज्ञता-शक्ति सुलभ होती है। त्वरितामन्त्रके तीन लाख जप, होम, ध्यान तथा पूजनसे समस्त अभिलषित वस्तुओंकी प्राप्ति होती है। मण्डलमें त्वरितादेवीको अर्चना करके त्वरिता-गायत्रीसे पचीस आहुतियाँ दे। फिर मूलमन्त्रसे पल्लवोंकी तीन सौ आहुतियाँ देकर दीक्षा ग्रहण करे। दीक्षासे पूर्व पञ्चगव्य-पान कर ले। दीक्षितावस्थामें सदा चरु (हविष्य) का भोजन करना चाहिये ॥ १८-२० ॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'त्वरितापूजा कथन' नामक तीन सौ नाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ३०९॥

click to read 👇

अग्नि पुराण अध्यायः २९१ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २९२ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २९३ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २९४ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २९५ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २९६ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २९७ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २९८ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २९९ ]

अग्नि पुराण अध्यायः ३०० ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३०१ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३०२ ]

अग्नि पुराण अध्यायः ३०३ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३०४ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३०५ ]

अग्नि पुराण अध्यायः ३०६ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३०७ ] [ अग्नि पुराण अध्यायः ३०८ ]

अग्नि पुराण अध्यायः ३०९ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३१० ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३११ ]

अग्नि पुराण अध्यायः ३१२ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३१३ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३१४ ]

अग्नि पुराण अध्यायः ३१५ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३१६ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३१७ ]

अग्नि पुराण अध्यायः ३१८ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३१९ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः ३२० ]

टिप्पणियाँ