अग्नि पुराण दो सौ नब्बेवाँ अध्याय ! Agni Purana 290 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ नब्बेवाँ अध्याय ! Agni Purana 290 Chapter !

दो सौ नब्बेवाँ अध्याय - अश्व-शान्ति

शालिहोत्र उवाच

अश्वशान्तिं प्रवक्ष्यामि वाजिरोगविमर्द्दनीं ।
नित्यां नैमित्तिकीं काम्यां त्रिविधां श्रृणु सुश्रुत ।। १ ।।

शुभे दिने श्रीधरञ्च श्रियमुच्चैःश्रवाश्च तं ।
हयराजं समभ्यर्च्य सावित्रैर्जुहुयाद्घृतं ।। २ ।।

द्विजेभ्यो दक्षिणान्दद्यादश्ववृद्धिस्तथा भवेत् ।
अश्वयुक् शुक्लपक्षस्य पञ्चदश्याञ्च शान्तिकं ।। ३ ।।

बहिः कुर्य्याद्विशेषेण नासत्यौ वरुणं यजेत् ।
समुल्लिख्य ततो देवीं शाखाभिः परिवारयेत् ।। ४ ।।

घटान्सर्व्वरसैः पूर्णान् दिक्षु दद्यात्सवस्त्रकान् ।
यवाज्यं जुहुयात् प्रार्च्य यजेदश्वांश्च साश्विनान् ।। ५ ।।

विप्रेभ्यो दक्षिणान्दद्यान्नैमित्तिकमतः श्रृणु ।
मकरादौ हयानाञ्च पद्मैर्विष्णुं श्रियं यजेत् ।। ६ ।।

ब्रह्माणं शङ्करं सोममादित्यञ्च तथाश्विनौ ।
रेवन्तमुच्चैःश्रवसन्दिक्पालांश्च दलेष्वपि ।। ७ ।।

प्रत्येकं पूर्णंकुम्भैश्च वेद्यान्तत्सौम्यतः स्थले ।
तिलाक्षताज्यसिद्धार्थान् देवतानां शतं शतं ।। ८ ।।

उपोषितेन कर्त्तव्यं कर्म्म चाश्वरुजापहं ।। ९ ।।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये अश्वशान्तिर्नाम नवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।

अग्नि पुराण - दो सौ नब्बेवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 290 Chapter!-In Hindi

 सौ नब्बेवाँ अध्याय - अश्व-शान्ति

शालिहोत्र कहते हैं- सुश्रुत! अब मैं घोड़ोंके रोगोंका मर्दन करनेवाली 'अश्वशान्ति'का वर्णन करूंगा; जो नित्य, नैमित्तिक और काम्यके भेदसे तीन प्रकारकी मानी गयी है; इसे सुनो। किसी शुभ दिनको श्रीधर (विष्णु), श्री (लक्ष्मी) तथा उच्चैःश्रवाके पुत्र हयराजकी पूजा करके सविता देवता-सम्बन्धी मन्त्रोंद्वारा घीका हवन करे। तदनन्तर ब्राह्मणोंको दक्षिणा दे। इससे अश्वोंकी वृद्धि होती है। (शुभ दिनसे आरम्भ करके इस कर्मको प्रतिदिन चालू रखा जाय तो यह 'नित्य अश्व-शान्ति' है) ॥ १-२॥

(अश्व-समृद्धिकी कामनासे) आश्विनके शुक्ल पक्षकी पूर्णिमाको नगरके बाह्यदेशमें शान्ति-कर्म करे। उसमें विशेषतः अश्विनीकुमारों तथा वरुण देवताका पूजन करे। तत्पश्चात् श्रीदेवीको वेदीपर पद्मासनके ऊपर अङ्कित करके उन्हें चारों ओरसे वृक्षकी शाखाओंद्वारा आवृत कर दे। उनकी सभी दिशाओंमें समस्त रसॉसे परिपूर्ण कलशोंको वस्त्रसहित स्थापित करे। इसके बाद श्रीदेवीका पूजन करके उनकी प्रसन्नताके लिये जी और घीका हवन करे। फिर अश्विनीकुमारों और अश्वोंकी अर्चना करे तथा ब्राह्मणोंको दक्षिणा दे। (यह काम्य शान्ति हुई)। अब नैमित्तिक शान्तिका वर्णन सुनो ॥ ३-५॥

मकर आदि को संक्रान्तियों में अश्वों का पूजन करे। साथ ही कमलपुष्पों द्वारा विष्णु, लक्ष्मी, ब्रह्मा, शंकर, चन्द्रमा, सूर्य, अश्विनीकुमार, रेवन्त तथा उच्चैःश्रवाकी अर्चना करे। इसके सिवा कमलके दस दलोंपर दस दिक्पालोंकी भी पूजा करे। प्रत्येक अर्चनीय देवताके निमित्त वेदी पर जलपूर्ण कलश स्थापित करे और उन कलशोंमें अधिष्ठित देवोंकी पूजा करे। इन देवताओंके उत्तरभागमें इन सबके निमित्त तिल, अक्षत, घी और पीली सरसोंकी आहुतियाँ दे। एक-एक देवताके निमित्त सौ-सौ आहुतियाँ देनी चाहिये। अश्वसम्बन्धी रोगों के निवारण के लिये उपवास पूर्व क यह शान्ति कर्म करना उचित है॥ ६-८॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'अश्व शान्ति का कथन' नामक दो सौ नब्बेवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २९०॥

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