अग्नि पुराण दो सौ अठहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana 278 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ अठहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana 278 Chapter !

अग्नि पुराण 278 अध्याय - पुरुवंशवर्णनम्

अग्निरुवाच

पुरोर्जनमेजयोऽभूत्प्राचीन्नन्तस्तु तत्सुतः ।
प्राचीन्नन्तान्मनस्युस्तु तस्माद्वीतमयो तृपः ।। १ ।।

शुन्धुर्वीतमयाच्चाऽभूच्छुन्धोर्बहुविधः सुतः ।
बहुविधाच्च संयातिरहोवादी च तत्सुतः ।। २ ।।

तस्य पुत्रोऽथ भद्राश्वो भद्राश्वस्य दशात्मजाः ।
ऋचेयुश्च कृषेयुश्च सन्नतेयुस्तथात्मजः ।। ३ ।।

घृतेयुश्च चितेयुश्च स्थण्डिलेयुश्च सत्तमः ।
धर्म्मोयुः सन्नतेयुश्चः कृचेयुर्म्मतिनारकः ।। ४ ।।

तंसुरोघः प्रतिरथः पुरस्तो मतिनारजाः ।
आसीत्प्रतिरथात्कण्वः कण्वान्मेधातिथिस्त्वभूत् ।। ५ ।।

तंसुरोघाच्च चत्वारो दुष्मन्तोऽथ प्रवीरकः ।
सुमन्तश्चानयो वीरो दुष्मन्ताद्भरतोऽभवत् ।। ६ ।।

शकुन्तलायान्तु बली यस्य नाम्ना तु भारताः ।
सुतेषु मातृकोपेन नष्टेषु भरतस्य च ।। ७ ।।

ततो मरुद्‌भिरानीय पुत्रः स तु बृहस्पतेः ।
संक्रामितो भरद्वाजः क्रतुभिर्व्वितथोऽभवत् ।। ८ ।।

स चापि वितथः पुत्रान् जनयामास पञ्च वै ।
सुहोत्रं च सुहोतारं गयं गर्भं तथैव च ।। ९ ।।

कपिलश्च महात्मानं सुकेतुञ्च सुतद्वयम् ।
कौशिकञ्च गृत्सपतिं तथा गृत्सपतेः सुताः ।। १० ।।

ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः काशे दीर्घतमाः सुताः ।
ततो धन्वन्तरिश्चासीत्तत्सुतोऽभूच्च केतुमान् ।। ११ ।।

केतुमतो हेमरथो दिवोदास इतिश्रुतः ।
प्रतर्दनो दिवोदासाद्भर्गवत्सौ प्रतर्दनात् ।। १२ ।।

वत्सादनर्क्क आसीच्च अनर्क्कात् क्षेमकोऽभवत् ।
क्षेमकाद्वर्षकेतुश्च वर्षकेतोर्विभुः स्मृतः ।। १३ ।।

विभोरानर्त्तः पुत्रोऽभूद्धिभोश्य सुकुमारकः ।
सुकुमारात्सत्यकेतुर्वत्सभूमिस्तु वत्सकात् ।। १४ ।।

सुहोत्रस्य बृहत्पुत्रो बृहतस्तनयास्त्रयः ।
अजमीढो द्विमीढश्च पुरुमीढश्च वीर्य्यवान् ।। १५ ।।

अजमीढस्य केशिन्यां जज्ञे जह्नुः प्रतापवान् ।
जह्नोरभूदजकाश्वौ बलाकाश्वस्तदात्मजः ।। १६ ।।

बलाकाश्वस्य कुशिकः कुशिकात् गाधिरिन्द्रकः ।
गाधेः सत्यवती कन्या विश्वामित्रः सुतोत्तमः ।। १७ ।।

देवरातः कतिमुखा विश्वामित्रस्य ते सुताः ।
शुनः शेफाऽष्टकश्चान्यो ह्यजमीढात् सुतोऽभवत् ।। १८ ।।

नीलिन्यां शान्तिरपरः पुरुजातिः सुशान्तितः ।
पुरुजातेस्तु वाह्याश्वो वाह्याशवात् पञ्च पार्थिवाः ।। १९ ।।

मुकुलः सृञ्जयश्यैव राजा वृहदिषुस्तथा ।
यवीनरश्च कृमिलः पाञ्चाला इति विश्रुताः ।। २० ।।

मुकुलस्य तु मौकुल्याः क्षेत्रोपेता द्विजातयः ।
चञ्चाश्वो मुकुलाज्जज्ञे चञ्चाश्वान्मिथुनं ह्यभूत् ।। २१ ।।

दिवोदासो ह्यहल्या च अल्यायां शरद्वतात् ।
शतानन्दः शतानन्दात् सत्यधृन्मिथुनन्ततः ।। २२ ।।

कृपः कृपी दिवोदासान्मैत्रेयः सोमपस्ततः ।
सृञ्चयात् पञ्चधनुषः सोमदत्तश्य तत्सुतः ।। २३ ।।

सहदेवः सोमदत्तात् सहदेवात्तु सोमकः ।
आसीच्च सोमकाज्जन्तुर्ज्जन्तोश्च पृषतः सुतः ।। २४ ।।

पृषताद्‌द्रुपदस्तस्माद्‌धृष्टद्युम्नोऽथ तत्सुतः ।
धृष्टकेतुश्च धूमिन्यामृक्षोऽभूदजमीढतः ।। २५ ।।

ऋक्षात्सम्बलणो जज्ञे कुरुः सम्वरणात्ततः ।
यः प्रयागादपाक्रम्य कुरुक्षेत्रञ्चकार ह ।। २६ ।।

कुरोः सुधन्वा सुधनुः परिक्षइच्चारिमेजयः ।
सुधन्वनः सुहोत्रोऽभूत् सुहोत्राच्च्यवनो ह्यभूत् ।। २७ ।।

वशिष्ठपरिचाराभ्यां सप्तासन् गिरिकासुताः ।
वृहद्रथः कुशो वीरो यदुः प्रत्यग्रहो बलः ।। २८ ।।

मत्स्यकाली कुशाग्रोऽतो ह्यासीद्राज्ञो वृहद्रथात् ।
कुशाग्राद्‌वृषभो जज्ञे तस्य सत्यहितः सुतः ।। २९ ।।

सुधन्वा तत्सुतश्चोर्ज्ज ऊर्ज्जादासीच्च सम्भवः ।
सम्भवाच्च जरासन्धः सहदेवश्च तत्‌सुतः ।। ३० ।।

सहदेवादुदापिश्च उदापेः श्रुतकर्मकः ।
परिक्षइतस्य दायादो धार्मिको जनमेजयः ।। ३१ ।।

जनमेजयात्त्रसदस्युर्जह्रोस्तु सुरथः सुतः ।
श्रुतसेनोग्रसेनौ च भीमसेनश्च नामतः ।। ३२ ।।

जनमेजयस्य पुत्रौ तु सुरथो महिमांस्तथा ।
सुरथाद्‌विदूरथोऽभूदृक्ष आसीद्विदूरथात् ।। ३३ ।।

ऋक्षस्य तु द्वितीयस्य भीमसेनोऽभवत्‌सुतः ।
प्रतीपो भीमसेनात्तु प्रतीपस्य तु शान्तनुः ।। ३४ ।।

देवापिर्व्वाह्लिकश्चैव सोमदत्तस्तु शान्तनोः ।
वाह्लिकात्सोमदत्तोऽभूद्‌भूरिर्भूरिस्रवाः शलः ।। ३५ ।।

गङ्गायां शान्तनोर्भीष्मः काल्यायां विचित्रवीर्य्यकः ।
कृष्णद्वैपायनश्चैव क्षेत्रे वैचित्रवीर्य्यके ।। ३६ ।।

धृतराष्ट्रञ्च पाण्डुञ्च विदुरञ्चाप्यजीजनत् ।
पाण्डोर्युधिष्ठिरः कुन्त्यां भीमश्चैवार्जुनस्त्रयः ।। ३७ ।।

नकुलः सहदेवश्च पाण्डोर्म्माद्य्राञ्च दैवतः ।
अर्जुनस्य च सौभद्रः परिक्षिदभिमन्युतः ।। ३८ ।।

द्रौपदी पाण्डवानाञ्च प्रिया तस्यां युधिष्ठिरात् ।
प्रतिविन्ध्यो भीमसेनाच्छ्रुतकीर्त्तिर्द्धनञ्जयात् ।। ३९ ।।

सहदेवाच्छ्रुतकर्म्मा शतानीकस्तु नाकुलिः ।
भीमसेनाद्धिड़िम्बायामन्य आसीद् घटोत्‌कचः ।। ४० ।।

एते भूता भविष्याश्च नृपाः संख्या न विद्यते ।
गताः कालेन कालो हि हरिस्तं पूजयेद्‌द्विज ।। ४१ ।।

होममग्नौसमुद्दिश्य कुरु सर्व्वप्रदं यतः ।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये पुरुवंशवर्णनं नाम अष्टसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।

अग्नि पुराण - दो सौ अठहत्तरवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 278 Chapter!-In Hindi

दो सौ अठहत्तरवाँ अध्याय पूरुवंशका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! पूरुसे जनमेजय हुए, जनमेजयसे प्राचीवान् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्राचीवान्से मनस्यु और मनस्युसे राजा वीतमयका जन्म हुआ। वीतमयसे शुन्धु हुआ, शुन्धुसे बहुविध नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई। बहुविधसे संवाति और संयातिका पुत्र रहोवादी हुआ। रहोवादीके पुत्रका नाम भद्राश्व था। भद्राश्वके दस पुत्र हुए-ऋचेयु, कृषेयु, संनतेयु, मृतेयु, चितेयु, स्थण्डिलेयु, धर्मेयु, संनतेयु (दूसरा), कृतेयु और मतिनार। मतिनारके तंसुरोध, प्रतिरथ और पुरस्त ये तीन पुत्र हुए। प्रतिरथसे कण्व और कण्वसे मेधातिथिका जन्म हुआ। तंसुरोधसे चार पुत्र उत्पन्न हुए-दुष्यन्त, प्रवीरक, सुमन्त और वीरवर अनय दुष्यन्तसे भरतका जन्म हुआ। भरत शकुन्तलाके महाबली पुत्र थे। राजा भरतके नामपर उनके वंशज क्षत्रिय 'भारत' कहलाते हैं। 

भरत के पुत्र अपनी माताओंके क्रोधसे नष्ट हो गये, तब राजाके यज्ञ करनेपर मरुद्गणोंने बृहस्पतिके पुत्र भरद्वाजको ले आकर उन्हें पुत्ररूपसे अर्पण किया। (भरतवंश 'वितथ' हो रहा था, ऐसे समयमें भरद्वाज आये, अतः) वे 'वितथ' नामसे प्रसिद्ध हुए। वितथने पाँच पुत्र उत्पन्न किये, जिनके नाम ये हैं सुहोत्र, सुहोता, गय, गर्भ तथा कपिल। इनके सिवा उनसे महात्मा और सुकेतु ये दो पुत्र और उत्पन्न हुए। तत्पश्चात् उन्होंने कौशिक और गृत्सपतिको भी जन्म दिया। गृत्सपतिके अनेक पुत्र हुए, उनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य- सभी थे काश और दीर्घतमा भी उन्हींके पुत्र थे। दीर्घतमाके धन्वन्तरि हुए और धन्वन्तरिका पुत्र केतुमान् हुआ। केतुमान्से हिमरथका जन्म हुआ, जो  दिवोदास 'के नामसे भी प्रसिद्ध हैं। दिवोदाससे प्रतर्दन तथा प्रतर्दनसे भर्ग और वत्स नामक दो पुत्र हुए। वत्ससे अनर्क और अनर्कसे क्षेमककी उत्पत्ति हुई। क्षेमकके वर्षकेतु और वर्षकेतुके पुत्र विभु बतलाये गये हैं। विभुसे आनर्त और सुकुमार नामक पुत्र उत्पन्न हुए। सुकुमारसे सत्यकेतुका जन्म हुआ। राजा वत्ससे वत्सभूमि नामक पुत्रकी भी उत्पत्ति हुई थी। वितथकुमार सुहोत्रसे बृहत् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। बृहत्के तीन पुत्र हुए- अजमीढ, द्विमीढ और पराक्रमी पुरुमीढ। अजमीढकी केशिनी नामवाली पत्नीके गर्भसे प्रतापी जड्डुका जन्म हुआ। जहुसे अजकाश्वकी उत्पत्ति हुई और अजकाश्वका पुत्र बलाकाश्च हुआ। बलाकाश्वके पुत्रका नाम कुशिक हुआ। कुशिकसे गाधि उत्पन्न हुए, जिन्होंने इन्द्रत्व प्राप्त किया था। 

गाधिसे सत्यवती नामकी कन्या और विश्वामित्र नामक पुत्रका जन्म हुआ। देवरात और कतिमुख आदि विश्वामित्रके पुत्र हुए। अजमीढसे शुनःशेप और अष्टक नामवाले अन्य पुत्रोंकी भी उत्पत्ति हुई। उनकी नीलिनी नामवाली पत्नीके गर्भसे एक और पुत्र हुआ, जिसका नाम शान्ति था। शान्तिसे पुरुजाति, पुरुजातिसे बाह्याश्च और बाह्याश्वसे पाँच राजा उत्पन्न हुए, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मुकुल, सृञ्जय, राजा बृहदिषु, यवीनर और कृमिल। ये 'पाञ्चाल' नामसे विख्यात हुए। मुकुलके वंशज 'मौकुल्य' कहलाये। वे क्षात्रधर्मसे । युक्त ब्राह्मण हुए। मुकुलसे चञ्चाश्वका जन्म हुआ और चञ्चाश्वसे एक पुत्र और एक जुड़वों संतान पैदा हुई। पुत्रका नाम दिवोदास था और कन्याका अहल्या। अहल्याके गर्भसे शरद्वत (गौतम) द्वारा शतानन्दकी उत्पत्ति हुई। शतानन्दसे सत्यधृक् हुए। सत्यधृक्से भी दो जुड़वी सन्तानें पैदा हुईं। उनमें पुत्रका नाम कृप और कन्याका नाम कृपी था। दिवोदाससे मैत्रेय और मैत्रेयसे सोमक हुए। सृञ्जयसे पञ्चधनुषकी उत्पत्ति हुई। उनके पुत्रका नाम सोमदत्त था। सोमदत्तसे सहदेव, सहदेवसे सोमक और सोमकसे जन्तु हुए। जन्तुके पुत्रका नाम पृषत् हुआ। पृषत्से द्रुपदका जन्म हुआ तथा दुपदका पुत्र धृष्टद्युम्न था और धृष्टद्युम्नसे धृष्टकेतुकी उत्पत्ति हुई। महाराज अजमीढकी धूमिनी नामवाली पत्नीसे ऋक्ष नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ॥ १-२५॥

ऋक्षसे संवरण और संवरणसे कुरुका जन्म हुआ, जिन्होंने प्रयागसे जाकर कुरुक्षेत्र तीर्थकी स्थापना की। कुरुसे सुधन्वा, सुधनु, परीक्षित् और रिपुञ्जय- ये चार पुत्र हुए। सुधन्वासे सुहोत्र और सुहोत्रसे च्यवन उत्पन्न हुए। च्यवनकी पत्नी महारानी गिरिकाके वसुश्रेष्ठ उपरिचरके अंशसे सात पुत्र उत्पन्न हुए। उनके नाम इस प्रकार हैं- बृहद्रथ, कुश, वीर, यदु, प्रत्यग्रह, बल और मत्स्यकाली। राजा बृहद्रथसे कुशाग्रका जन्म हुआ। कुशाग्रसे वृषभकी उत्पत्ति हुई और वृषभके पुत्रका नाम सत्यहित हुआ। सत्यहितसे सुधन्वा, सुधन्वासे ऊर्ज, ऊर्जसे सम्भव और सम्भवसे जरासंध उत्पन्न हुआ। जरासंधके पुत्रका नाम सहदेव था। सहदेवसे उदापि और उदापिसे श्रुतकर्माकी उत्पत्ति हुई। कुरुनन्दन परीक्षित्के पुत्र जनमेजय हुए। वे बड़े धार्मिक थे। जनमेजयसे त्रसदस्युका जन्म हुआ। राजा अजमीढके जो जड्डु नामवाले पुत्र थे, उनके सुरथ, श्रुतसेन, उग्रसेन और भीमसेन ये चार पुत्र उत्पन्न हुए। परीक्षित्कुमार जनमेजयके दो पुत्र और हुए- सुरथ तथा महिमान्। सुरथसे विदूरथ और विदूरथसे ऋक्ष हुए। 

इस वंशमें ये ऋक्ष नामसे प्रसिद्ध द्वितीय राजा थे। इनके पुत्रका नाम भीमसेन हुआ। भीमसेनके पुत्र प्रतीप और प्रतीपके शंतनु हुए। शंतनुके देवापि, चाहिक और सोमदत्त - ये तीन पुत्र थे। बाह्निकसे सोमदत्त और सोमदत्तसे भूरि, भूरिश्रवा तथा शलका जन्म हुआ। शंतनुसे गङ्गाजीके गर्भसे भीष्म उत्पन्न हुए तथा उनकी काल्या (सत्यवती) नामवाली पत्नीसे विचित्रवीर्यकी उत्पत्ति हुई। विचित्रवीर्यकी पत्नीके गर्भसे श्रीकृष्णद्वैपायनने धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुरको जन्म दिया। पाण्डुकी रानी कुन्तीके गर्भसे युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए तथा उनकी माद्री नामवाली पत्नीसे नकुल और सहदेवका जन्म हुआ। पाण्डुके ये पाँच पुत्र देवताओंक अंशसे प्रकट हुए थे। अर्जुनके पुत्रका नाम अभिमन्यु था। वे सुभद्राके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। अभिमन्युसे राजा परीक्षित्‌का जन्म हुआ। द्रौपदी पाँचों पाण्डवोंकी पनी थी। उसके गर्भसे युधिष्ठिरसे प्रतिविन्ध्य, भीमसेनसे सुतसोम, अर्जुनसे श्रुतकीर्ति, सहदेवसे श्रुतशर्मा और नकुलसे शतानीककी उत्पत्ति हुई। भीमसेनका एक दूसरा पुत्र भी था, जो हिडिम्बाके गर्भसे उत्पन्न हुआ था। उसका नाम था घटोत्कच। ये भूतकालके राजा हैं। भविष्यमें भी बहुत से राजा होंगे, जिनकी कोई गणना नहीं हो सकती। सभी समयानुसार कालके गालमें चले जाते हैं। विप्रवर! काल भगवान् विष्णुका ही स्वरूप है, अतः उन्हींका पूजन करना चाहिये। उन्हींके उद्देश्यसे अग्रिमें हवन करो; क्योंकि वे भगवान् ही सब कुछ देनेवाले हैं॥ २६-४१ ॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'कुरुवंशका वर्णन' नामक दो सौ अठहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २७८ ॥

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