अग्नि पुराण दो सौ सतहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana 277 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ सतहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana 277 Chapter !

अग्नि पुराण 277 अध्याय - राजवंशवर्णनम्

अग्निरुवाच

तुर्व्वसोश्च सुतो वर्गो गोभानुस्तस्य चात्मजः ।
गोभानोरासीत् त्रैशानिस्त्रैशानेस्तु करन्धमः ।। १ ।।

करन्धमान्मरुत्तोभूऽद्‌दुष्मन्तस्तस्य चात्मजः ।
दुष्मन्तस्य वरूथोऽभूद्‌गाण्डीरस्तु वरूथतः ।। २ ।।

गाण्डीराच्चैव गान्धारः पञ्च जानपदास्ततः ।
गान्धाराः केरलाश्चोलाः पाण्ड्याः कोला महाबलाः ।। ३ ।।

द्रुह्यस्तु वभ्रुसेतुश्च वभ्रुसेतोः पुरोवसुः ।
ततो गान्धारा गान्धारैर्घर्म्मो घर्म्माद् घृतोऽभवत् ।। ४ ।।

घृतात्तु विदुषस्तस्मात् प्रचेतास्तस्य वै शतम् ।
आनद्रश्च सभानरश्चाक्षुपः परमेषुकः ।। ५ ।।

सभानरात् कालानलः कालानलजसृञ्जयः ।
पुरञ्जयः सृञ्जयस्य तत्पुत्रो जनमेजयः ।। ६ ।।

तत्पुत्रस्तु महाशालस्तुत्पुत्रोऽभून्महामनाः ।
तस्मादुशीनरो ब्रह्मन्नृगायान्तु तृगस्ततः ।। ७ ।।

नरायान्तु नरश्चासीत् कृमिस्तु कृमितः सुतः ।
दशायां सुब्रतो जज्ञे दृशद्वत्यां शिविस्तथा ।। ८ ।।

शिवेः पुत्त्रास्तु चत्वारः पृथुदर्भश्च वीरकः ।
कैकेयो भद्रकस्तेषां नाम्ना जनपदाः शुभाः ।। ९ ।।

तितिक्षुरुशीनरजस्तितिक्षोस्च रुषद्रयः ।
रुषद्रथादभूत्पैलः पैलाच्च सुतपाः सुतः ।। १० ।।

महायोगी बलिस्तस्मादह्गो वङ्गश्च मुख्यकः ।
पुण्डुः कलिङ्गो बालोयो बलिर्योगी बलान्वितः ।। ११ ।।

अङ्गाद्दधिवाहनोऽभूत तस्माद्दिविरथो नृपः ।
दिविरथाद्धर्म्मरथस्तस्य चित्ररथः सुतः ।। १२ ।।

चित्ररथात्सत्यरथो लोमपादश्च तत्सुतः ।
लोमपादाच्चतुरङ्गः पृथुलाक्षश्च तत्सुतः ।। १३ ।।

पृथुलाक्षाच्च चम्पोऽभूच्चम्पाद्धर्य्यङ्गकोऽभवत् ।
हर्य्यङ्गाच्च भद्ररथो बृहत्कर्म्मा च तत्सुतः ।। १४ ।।

तस्मादभूद्‌वॄहद्भानुर्वृहद्भानोर्बृहात्मवान् ।
तस्माज्जयद्रथो ह्यासीज्जयद्रथाद्‌वृहद्रथः ।। १५ ।।

वृहद्रथाद्विश्वजिच्च कर्णो विश्वजितोऽभवत् ।
कर्णस्य वृषसेनस्तु पृथुसेनस्तदात्मजः ।। १६ ।।

एतेऽङ्गवंशजा भूपाः पूरोर्वंशं निबोध मे । १७।।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये राज वंशवर्णनं नाम सप्तसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।

अग्नि पुराण - दो सौ सतहत्तरवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 277 Chapter!-In Hindi

दो सौ सतहत्तरवाँ अध्याय - तुर्वसु आदि राजाओंके वंशका तथा अङ्गवंशका वर्णन

अग्रिदेव कहते हैं- वसिष्ठ ! तुर्वसुके पुत्र वर्ग और वर्गके पुत्र गोभानु हुए। गोभानुसे त्रैशानि, वैशानिसे करंधम और करंधमसे मरुत्तका जन्म हुआ। उनके पुत्र दुष्यन्त हुए। दुष्यन्तसे वरूथ और वरूथसे गाण्डीरकी उत्पत्ति हुई। गाण्डीरसे गान्धार हुए। गान्धारके पाँच पुत्र हुए, जिनके नामपर गन्धार, केरल, चोल, पाण्ड्य और कोल इन पाँच देशोंकी प्रसिद्धि हुई। ये सभी महान् बलवान् थे। दुहासे बभुसेतु और बभ्रुसेतुसे पुरोवसुका जन्म हुआ। उनसे गान्धार नामक पुत्रोंकी उत्पत्ति हुई। गान्धारोंने धर्मको जन्म दिया और धर्मसे घृत उत्पन्न हुए। घृतसे विदुष और विदुषसे प्रचेता हुए। प्रचेताके सौ पुत्र हुए, जिनमें अनडु, सुभानु, चाक्षुष और परमेषु - ये प्रधान थे। सुभानुसे कालानल और कालानलसे सृञ्जय उत्पन्न हुए। सृञ्जयके पुरञ्जय और पुरञ्जयके पुत्र जनमेजय थे। जनमेजयके पुत्र महाशाल और उनके पुत्र महामना हुए। ब्रह्मन् । महामनासे उशीनरका जन्म हुआ और महामनाकी 'नृगा' नामवाली पत्नीके गर्भसे राजा नृगका जन्म हुआ। नृगकी 'नरा' नामक पत्नीसे नरकी उत्पत्ति हुई और कृमि नामवाली स्त्रीके गर्भसे कृमिका जन्म हुआ। इसी प्रकार नृगके दशा नामकी पत्नीसे सुव्रत और दृषद्वतीसे शिवि उत्पन्न हुए। 

शिविके चार पुत्र हुए- पृथुदर्भ, वीरक, कैकेय और भद्रक- इन चारोंके नामसे श्रेष्ठ जनपदोंकी प्रसिद्धि हुई। उशीनरके पुत्र तितिक्षु हुए, तितिक्षुसे रुषद्रथ, रुषद्रथसे पैल और पैलसे सुतपा नामक पुत्रोंकी उत्पत्ति हुई। सुतपासे महायोगी बलिका जन्म हुआ। बलिसे अङ्ग, बङ्ग, मुख्यक, पुण्ड्र और कलिङ्ग नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ये सभी 'बालेय' कहलाये। बलि योगी और बलवान् थे। अङ्गसे दधिवाहन, दधिवाहनसे राजा दिविरथ और दिविरथसे धर्मरथ उत्पन्न हुए। धर्मरथके पुत्रका नाम चित्ररथ हुआ। चित्ररथके सत्यरथ और उनके पुत्र लोमपाद हुए। लोमपादका पुत्र चतुरङ्ग और चतुरङ्गका पुत्र पृथुलाक्ष हुआ। पृथुलाक्षसे चम्प, चम्पसे हर्यङ्ग और हर्यङ्गसे भद्ररथ हुआ। भद्ररथके पुत्रका नाम बृहत्कर्मा था। बृहत्कर्मासे बृह‌द्भानु, बृहद्भानुसे बृहात्यवान्, उनसे जयद्रथ और जयद्रथसे बृहद्रथकी उत्पत्ति हुई। बृहद्रथसे विश्वजित् और विश्वजित्‌का पुत्र कर्ण हुआ। कर्णका वृषसेन और वृषसेनका पुत्र पृथुसेन था। ये अङ्गवंशमें उत्पन्न राजा बतलाये गये। अब मुझसे पूरुवंशका वर्णन सुनो ॥ १-१७ ॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'राजवंशका वर्णन' नामक दो सौ सतहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २७७॥

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