अग्नि पुराण दो सौ बहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana 272 Chapter !
अग्नि पुराण 272 अध्याय - दानादिमाहात्म्यम्
पुष्कर उवाच
ब्रह्मणाभिहितं पूर्व्वं यावन्मान्नं मरीचये ।
लक्षार्द्धार्द्धन्तु तद्ब्राह्मं लिखित्वा सम्प्रदाप्येत् ।। १ ।।
वैशाख्याम्पौर्णमास्याञ्च स्वर्गार्थी जलधेनुमत् ।
पाद्मं द्वादशसाहस्रं ज्येष्ठे दद्याच्च धेनुमत् ।। २ ।।
वराहकल्पवृत्तान्तमधिकृत्य पराशरः ।
त्रयोविंशतिसाहस्रं वैष्णवं प्राह चार्पयेत् ।। ३ ।।
जलधेनुमदापाढ्यां विष्णोः पदमवाप्नुयात् ।
चतुर्दशसहस्राणि वायवीयं हरिप्रियं ।। ४ ।।
श्वेतकल्पप्रसङ्गेन घर्म्मान् वायुरिहाब्रवीत् ।
दद्याल्लिखित्वा तद्विप्रे श्रावण्यां गुड़धेनुमत् ।। ५ ।।
यत्राधिकृत्य गायत्रीं कीर्त्त्यते धर्म्मविस्तरः ।
वृत्रासुरबधोपेतं तद्भागवतमुच्यते ।। ६ ।।
सारस्वतस्य कल्पस्य प्रोष्ठपद्यन्तु तद्ददेत् ।
अष्टादशसहस्राणि हेमसिंहसमन्वितं ।। ७ ।।
यत्राह नारदो धर्म्मान् वृहत्कल्पाश्रितानिह ।
पञ्चविंशसहस्राणि नारदीयं तदुच्यते ।। ८ ।।
सधेनुञ्चाश्विने दद्यात्सिद्धिमात्यन्तिकीं लभेत् ।
यत्राधिकृत्य शत्रूनान्दर्माधर्मविचारणा ।। ९ ।।
कार्त्तिक्यां नवसाहस्रं मार्कण्डेयमथार्पयेत् ।
अग्निना यद्वशिष्ठाय प्रोक्तञ्चाग्नेयमेव तत् ।। १० ।।
लिखित्वा पुस्तकं दद्यान्मार्गशीष्यां स सर्वदः ।
द्वादशैव सहस्राणि सर्वविद्यावबोधनं१ ।। ११ ।।
चतुर्दशसहस्राणि भविष्यं सूर्य्यसम्भवं ।
भवस्तु मनवे प्राह दद्यात् पौष्यां गुड़ादिमत् ।। १२ ।।
सावर्णिना नारदाय ब्रह्मवैवर्त्तमीरितं ।
रथान्तरस्य वृत्तान्तमष्टादशसहस्रकं ।। १३ ।।
माघ्यान्दद्याद्वराहस्य चरितं ब्रह्मवैवर्त्तमीरितं ।
रथान्तरस्य वृत्तान्तमष्टादशसहस्रकं ।। १४ ।।
आग्येयकल्पे लल्लिङ्गमेकादशसहस्रकम् ।
तद्दत्वा शिवमाप्नोति फाल्गुन्यां तिलधेनुमत् ।। १५ ।।
चतुर्द्दशशहस्राणि वाराहं विष्णुणेरितम् ।
भूयौ वराहचरितं मानवस्य प्रवृत्तितः ।। १६ ।।
सहेमगरुड़ञ्चैत्र्यां पदमाप्नोति वैष्णवम् ।
चतुरशीतिसाहस्रं स्कान्दं स्कन्देरितं महत् ।। १७ ।।
अधिकृत्य सधर्म्मांश्च कल्पे तत्पुरुषेऽर्पयेत्।
वामनं दशसाहस्रं धौमकल्पे हरेः कथा ।। १८ ।।
दद्यात् शरदि विषुवे धर्मार्थादिनिवोधनम् ।
कूर्मञअचाष्टसहस्रञ्च कूर्मोक्तञ्च रसातले ।। १९ ।।
इन्द्रद्युम्नप्रसङ्गेन दद्यात्तद्धेमकूर्मवत् ।
त्रयोदशसहस्राणि मात्स्यं कल्पादितोऽब्रवीत् ।। २० ।।
मत्स्यो हि मनवे दद्याद्विषुवे हेममत्स्यवत् ।
गारुड़ञ्चाष्टसाहस्रं विष्णूक्तन्तार्क्षकल्पके ।। २१ ।।
विश्वाण्डाद्गरुड़ोत्पत्तिं तद्दद्याद्धेमहंसवत् ।
ब्रह्मा ब्रह्माण्डमाहात्म्यमधिकृत्याब्रवीत्तु ।। २२ ।।
तच्च द्वादशसाहस्रं ब्हह्माण्डं तद्द्विजेऽर्पयेत् ।
भारते पर्वसमाप्तौ वस्त्रगन्धस्रगादिभिः ।। २२ ।।
वाचकं पूजयेदादौ भोजयेत् पायसैर्द्विजान् ।
गोभूग्रामसुवर्णादि दद्यात्पर्वणि पर्वणि ।। २३ ।।
समाप्ते बारते विप्रं संहितापुस्तकान्यजेत् ।
शुभे देशे निवेश्याथ क्षौमवस्त्रादिनावृतान् ।। २५ ।।
नरनारायणऔ पूज्यौ पुस्तकाः कुसुमादिभिः ।
गोऽन्नभूहेम दत्वाथ भोजयित्वा क्षमापयेत् ।। २६ ।।
महादानानि देयानि रत्नानि विविधानि च ।
मासकौ द्वौ त्रयश्चैव मासे मासे प्रदापयेत् ।। २७ ।।
अयनादौ श्रवकस्य दानमादौ विधीयते ।
श्रीतृभिः सकलैः कार्य्यं श्रावके पूजनं द्विज ।। २८ ।।
इतिहासपुराणानां पुस्तकानि प्रयच्छति ।
पूजयित्वायुरारोग्यं स्वर्गमोक्षमवाप्नुयात् ।। २९ ।।
इत्यादिमहापुराणे आग्नेये दानादिमाहात्म्यं नाम द्विसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।
अग्नि पुराण - दो सौ बहत्तरवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 272 Chapter!-In Hindi
दो सौ बहत्तरवाँ अध्याय - विभिन्न पुराणों के दान तथा महाभारत-श्रवण में दान-पूजन आदि का माहात्म्य
पुष्कर कहते हैं- परशुराम। पूर्वकाल में लोकपितामह ब्रह्मा ने मरीचि के सम्मुख जिस का वर्णन किया था, पचीस हजार श्लोकोंसे समन्वित उस 'ब्रह्मपुराण' को लिखकर ब्राह्मणको दान दे। स्वर्गाभिलाषी वैशाख की पूर्णिमा को जलधेनु के साथ 'ब्रह्मपुराण' का दान करे। 'पद्मपुराण' में जो पदा संहिता (भूमिखण्ड) है, उस में बारह हजार श्लोक हैं। ज्येष्ठमासकी पूर्णिमाको गौके साथ इसका दान करना चाहिये। महर्षि पराशरने वाराह कल्पके वृत्तान्तको अभिगत करके तेईस हजार श्लोकोंका 'विष्णुपुराण' कहा है। इसे आषाढ़की पूर्णिमा को जलधेनु सहित प्रदान करे। इससे मनुष्य भगवान् विष्णुके परमपदको प्राप्त होता है। चौदह हजार श्लोकोंवाला 'वायुपुराण' भगवान् शंकरको अत्यन्त प्रिय है। इसमें वायुदेवने श्वेतकल्प के प्रसङ्गसे धर्म का वर्णन किया है।
इस पुराण को लिखकर श्रावण की पूर्णिमा को गुड़धेनु के साथ ब्राह्मण को दान करे। गायत्री मन्त्र का आश्रय लेकर निर्मित हुए जिस पुराणमें भागवत धर्मका विस्तृत वर्णन है, सारस्वतकल्प का प्रसङ्ग कहा गया है तथा जो वृत्रासुर-वधकी कथासे युक्त है-उस पुराणको 'भागवत' कहते हैं। इस में अठारह हजार श्लोक हैं। इसको सोनेके सिंहासनके साथ भाद्रपदकी पूर्णिमाको दान करे। जिसमें देवर्षि नारदने बृहत्कल्पके वृत्तान्तका आश्रय लेकर धर्मोकी व्याख्या की है, वह 'नारदपुराण' है। उसमें पचीस हजार श्लोक हैं। आश्विन मास की पूर्णिमा को धेनु सहित उसका दान करे। इससे आत्यन्तिक सिद्धि प्राप्त होती है। जिसमें पक्षियोंके द्वारा धर्माधर्मका विचार किया गया है, नौ हजार श्लोकोंवाले उस 'मार्कण्डेयपुराण' का कार्तिककी पूर्णिमाको दान करे। अग्ग्रिदेवने वसिष्ठ मुनिको जिसका श्रवण कराया है, वह 'अग्रिपुराण' है। इस ग्रन्थको लिखकर मार्गशीर्ष की पूर्णिमा तिथि में ब्राह्मण के हाथ में दे। इस पुराण का दान सब कुछ देनेवाला है। इसमें बारह हजार ही श्लोक हैं और यह पुराण सम्पूर्ण विद्याओं का बोध कराने वाला है। 'भविष्यपुराण' सूर्य-सम्भव है। इसमें सूर्य देव की महिमा बतायी गयी है।
इसमें चौदह हजार श्लोक हैं। इसे भगवान् शंकरने मनुसे कहा है। गुड़ आदि वस्तुओंके साथ पौषकी पूर्णिमा को इसका दान करना चाहिये। सावर्ण्य-मनुने नारदसे 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' का वर्णन किया है। इसमें रथन्तर- कल्प का वृत्तान्त है और अठारह हजार श्लोक हैं। माघमास की पूर्णिमा को इसका दान करे। वराहके चरित्रसे युक्त जो 'वाराहपुराण' है, उसका भी माघ मासकी पूर्णिमा को दान करे। ऐसा करनेसे दाता ब्रह्मलोकका भागी होता है। जहाँ अग्निमय लिङ्गमें स्थित भगवान् महेश्वरने आग्रेयकल्पके वृत्तान्तोंसे युक्त धर्मोका विवेचन किया है, वह ग्यारह हजार श्लोकोंवाला 'लिङ्गपुराण' है। फाल्गुनकी पूर्णिमाको तिलधेनु के साथ उसका दान करके मनुष्य शिवलोक को प्राप्त होता है। 'वाराहपुराण में भगवान् श्रीविष्णुने भूदेवी के प्रति मानव जगत् की प्रवृत्तिसे लेकर वराह-चरित्र आदि उपाख्यानोंका वर्णन किया है। इसमें चौबीस हजार श्लोक हैं। चैत्रकी पूर्णिमा को 'गरुड पुराण 'का सुवर्णक साथ दान करके मनुष्य विष्णुपद को प्राप्त होता है।
'स्कन्दमहापुराण' चौरासी हजार श्लोकोंका है। कुमार स्कन्दने तत्पुरुष-कल्पकी कथा एवं शैवमतका आश्रय लेकर इस महापुराणका प्रवचन किया है। इसका भी चैत्रको पूर्णिमाको दान करना चाहिये। दस हजार श्लोकों से युक्त 'वामनपुराण' धर्मार्थ आदि पुरुषार्थोंका अवबोधक है। इसमें श्री हरि को धौमकल्प से सम्बन्धित कथा का वर्णन है। शरद् पूर्णिमामें विषुव-संक्रान्तिके समय इसका दान करे। 'कूर्मपुराण 'में आठ हजार श्लोक हैं। कूर्मावतार श्री हरिने इन्द्रद्युम्नके प्रसङ्गसे रसातलमें इसको कहा था। इसका सुवर्णमय कच्छपके साथ दान करना चाहिये। मत्स्यरूपी श्रीविष्णुने कल्पके आदिकाल में मनुको तेरह हजार श्लोकोंसे युक्त 'मत्स्यपुराण' का श्रवण कराया था। इसे हेमनिर्मित मत्स्यके साथ प्रदान करे। आठ हजार श्लोकोंवाले 'गरुडपुराण' का भगवान् श्री विष्णु ने ताक्ष्यकल्प में प्रवचन किया था। इसमें विश्वाण्डसे गरुड़की उत्पत्तिकी कथा कही गयी है। इसका स्वर्णहंस के साथ दान करे। भगवान् ब्रह्माने ब्रह्माण्डके माहात्म्य का आश्रय लेकर जिसे कहा है, बारह हजार श्लोकों वाले उस 'ब्रह्माण्ड पुराण 'को भी लिखकर ब्राह्मण के हाथ में दान करे ॥ १-२२ ॥
महाभारत-श्रवणकालमें प्रत्येक पर्वकी समाप्तिपर पहले कथावाचकका वस्त्र, गन्ध, माल्य आदिसे पूजन करे। तत्पश्चात् ब्राह्मणोंको खीरका भोजन करावे। प्रत्येक पर्वकी समाप्तिपर गौ, भूमि, ग्राम तथा सुवर्ण आदिका दान करे। महाभारतके पूर्ण होनेपर कथावाचक ब्राह्मण और महाभारत-संहिताकी पुस्तकका पूजन करे। ग्रन्थको पवित्र स्थानपर रेशमी वस्त्रसे आच्छादित करके पूजन करना चाहिये। फिर भगवान् नर-नारायण की पुष्प आदि से पूजा करे। गौ, अन्न, भूमि, सुवर्णके दानपूर्वक ब्राह्मणोंको भोजन कराकर क्षमा-प्रार्थना करे। श्रोताको विविध रत्नोंका महादान करना चाहिये। प्रत्येक मासमें कथावाचकको दो या तीन माशे सुवर्ण का दान करे और अयनके प्रारम्भमें भी पहले उसके लिये सुवर्णके दानका विधान है। द्विजश्रेष्ठ! समस्त श्रोताओं को भी कथावाचक का पूजन करना चाहिये। जो मनुष्य इतिहास एवं पुराणों का पूजन करके दान करता है, वह आयु, आरोग्य, स्वर्ग और मोक्षको भी प्राप्त कर लेता है ॥ २३-२९ ॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'पुराणदान आदिके माहात्म्यका कथन' नामक दो सौ बहत्तर अध्याय पूरा हुआ ॥ २७२ ॥
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