अग्नि पुराण दो सौ छाछठवाँ अध्याय ! Agni Purana 266 Chapter !
अग्नि पुराण 266 अध्याय - विनायकस्नानम्
पुष्कर उवाच
विनायकोपसृष्टानां स्नानं सर्वकरं वदे ।
विनायकः कर्म्मविघ्नसिद्ध्यर्थं विनियोजितः ।। १ ।।
गणानामाधिपत्ये च केशवेशपितामहैः ।
स्वप्नेवगाहतेऽत्यर्थं जलं मुण्डांश्च पश्यति ।। २ ।।
विनायकोपसृष्टस्तु क्रव्यादानधिरोहति ।
व्रजमानस्तथात्मानं मन्यतेऽनुगतम्परैः ।। ३ ।।
विमना विफलारम्भः संसीदत्यनिमित्ततः ।
कन्या वरं न चाप्नोति च चापत्यं वराङ्गना ।। ४ ।।
आचार्य्यत्वं श्रोत्रियश्च न शिष्योऽध्ययनं लबेत् ।
धनी न लाभमाप्नोति न कृषिञ्च कृषीबलः ।। ५ ।।
राजा राज्यं न चाप्नोति स्नपननतस्य कारयेत् ।
हस्तपुष्याश्वयुक्सौम्ये वैष्णवे भद्रपीठके ।। ६ ।।
गौरसर्षपकल्केन साज्येनोत्सादितस्य च ।
सर्वौषधैः सर्वगन्धैः प्रलिप्तशिरसस्तथा ।। ७ ।।
चतुर्भिः कलसैः स्नानन्तेषु सर्वौषधीः क्षिपेत् ।
अश्वस्थानाद्गजस्थानाद्वल्मीकात् सङ्गमाद्ध्रदात् ।। ८ ।।
मृत्तिकां रोजनाङ्गन्धङ्गुग्गुलुन्तेषु निक्षिपेत् ।
सहस्राक्षं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम् ।। ९ ।।
तेन त्वामभिषिञ्चामि पावमान्यः पुनन्तु ते ।
भगन्ते वरुणो राजा भगं सूर्य्यो बृहस्पतिः ।। १० ।।
भगमिन्द्रश्च वायुश्च भगं सप्तर्षयो ददुः ।
यक्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यच्च मूर्द्धनि ।। ११ ।।
ललाटे कर्णयोरक्ष्णोरापस्तद्घ्नन्तु सर्वदा ।
दर्भपिञ्जलिमादाय वामहस्ते ततो गुरुः ।। १२ ।।
स्नातस्य सार्षपन्तैलं श्रुवेणौडुम्बरेण च ।
जुहुयान्मूर्द्धनि कुशान् सव्येन परिगृहाय च ।। १३ ।।
मितश्च सम्मितश्चैव तथा शालककण्टकौ ।
कुष्माण्डो राजपुत्रश्च एतैः स्वाहासमन्वितैः ।। १४ ।।
नामभिर्बलिमन्त्रैश्च नमस्कारसमन्वितैः ।
दद्याच्चतुष्पथे शूर्पे कुशानास्तीर्य्य सर्व्वतः ।। १५ ।।
कृताकृतांस्तण्डुलांश्च पललौदनमेव च ।
मत्स्यान्पङ्कांस्तथैवामान् पुष्पं चित्रं सुरां त्रिधा ।। १६ ।।
मुलकं पूरिकां पूपांस्तथैवैण्डविकास्रजः ।
दध्यन्नं पायसं पिष्टं मोदकं गुड़मर्पयेत् ।। १७ ।।
विनायकस्य जननीमुपतिष्ठेत्ततोऽम्बिकां ।
दूर्व्वासर्षपपुष्पाणां दत्त्वार्घ्यं पूर्णमञ्जलिं ।। १८ ।।
रूपं देहि यशो देहि सौभाग्यं सुभगे मम ।
पुत्रं देहि धनं देहि सर्व्वान् कामांश्च देहि मे ।। १९ ।।
भोजयेद्ब्राह्मणान्दद्याद्वस्त्रयुग्मं गुरोरपि ।
विनायकं ग्रहान्प्रार्च्य श्रियं कर्म्मफलं लभेत् ।। २० ।।
इत्यादिमहापुराणे आग्नेये विनायकस्नानं नाम षट्षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।
अग्नि पुराण - दो सौ छाछठवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 266 Chapter!-In Hindi
दो सौ छाछठवाँ अध्याय विनायक-स्त्रान विधि
पुष्कर कहते हैं- परशुराम ! जो मनुष्य विघ्नराज विनायकद्वारा पीड़ित हैं, उनके लिये सर्व-मनोरथ साधक खानकी विधिका वर्णन करता हूँ। कर्ममें विघ्न और उसकी सिद्धिके लिये विष्णु, शिव और ब्रह्माजीने विनायकको पुष्पदन्त आदि गणोंके अधिपतिपदपर प्रतिष्ठित किया है। विघ्नराज विनायकके द्वारा जो ग्रस्त है, उस पुरुषके लक्षण सुनो। वह स्वप्नमें बहुत अधिक स्रान करता है और वह भी गहरे जलमें। (उस अवस्थामें वह यह भी देखता है कि पानीका स्रोत मुझे बहाये लिये जाता है, अथवा मैं डूब रहा हूँ।) वह मुँड़ मुड़ाये (और गेरुआँ वस्त्र धारण करनेवाले) मनुष्योंको भी देखता है। कच्चे मांस खानेवाले गीधों एवं व्याघ्र आदि पशुओंकी पीठपर चढ़ता है। (चाण्डालों, गदहों और ऊँटोंके साथ एक स्थानपर बैठता है।) जाग्रत्-अवस्थामें भी जब वह कहीं जाता है तो उसे यह अनुभव होता है कि शत्रु मेरा पीछा कर रहे हैं। उसका चित्त विक्षिप्त रहता है। उसके द्वारा किये हुए प्रत्येक कार्यका आरम्भ निष्फल होता है। वह अकारण ही खिन्न रहता है। विघ्नराजकी सतायी हुई कुमारी कन्याको जल्दी वर ही नहीं मिलता है और विवाहिता स्त्री भी संतान नहीं पाती। श्रोत्रियको आचार्यपद नहीं मिलता।
शिष्य अध्ययन नहीं कर पाता। वैश्यको व्यापारमें और किसानको खेतीमें लाभ नहीं होता है। राजाका पुत्र भी राज्यको हस्तगत नहीं कर पाता है। ऐसे पुरुषको (किसी पवित्र दिन एवं शुभ मुहूर्तमें) विधिपूर्वक स्रान कराना चाहिये। हस्त, पुष्य, अश्विनी, मृगशिरा तथा श्रवण नक्षत्रमें किसी भद्रपीठपर स्वस्तिवाचन- पूर्वक बिठाकर उसे स्रान करानेका विधान है। पीली सरसों पीसकर उसे घीसे ढीला करके उबटन बनावे और उसको उस मनुष्यके सम्पूर्ण शरीरमें मले। फिर उसके मस्तकपर सर्वोषधिसहित सब प्रकारके सुगन्धित द्रव्यका लेप करे। चार कलशोंके जलसे उनमें सर्वांषधि छोड़कर स्नान कराये। अश्वशाला, गजशाला, वल्मीक (बाँबी), नदी संगम तथा जलाशयसे लायी गयी पाँच प्रकारकी मिट्टी, गोरोचन, गन्ध (चन्दन, कुङ्कुम, अगुरु आदि) और गुग्गुल ये सब वस्तुएँ भी उन कलशोंके जलमें छोड़े। आचार्य पूर्व- दिशावर्ती कलशको लेकर निम्नाङ्कित मन्त्रसे यजमानका अभिषेक करे- सहस्त्राक्षं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम् ।। तेन त्वामभिषिञ्चामि पावमान्यः पुनन्तु ते। 'जो सहस्रों नेत्रों (अनेक प्रकारको शक्तियों) से युक्त हैं, जिसकी सैकड़ों धाराएँ (बहुत-से प्रवाह) हैं और जिसे महर्षियोंने पावन बनाया है, उस पवित्र जलसे मैं (विनायकजनित उपद्रवसे ग्रस्त) तुम्हारा (उक्त उपद्रवको शान्तिके लिये) अभिषेक करता हूँ। यह पावन जल तुम्हें पवित्र करे ॥ १-९॥
(तदनन्तर दक्षिण दिशामें स्थित द्वितीय कलश लेकर नीचे लिखे मन्त्रको पड़ते हुए अभिषेक करे-)
भर्ग ते वरुणो राजा भगं सूर्यो बृहस्पतिः।
भगमिन्द्रश्च वायुद्ध भर्ग सप्तर्षयो ददुः ॥
'राजा वरुण, सूर्य, बृहस्पति, इन्द्र, वायु तथा सप्तर्षिगणने तुम्हें कल्याण प्रदान किया है॥१०॥
(फिर तीसरा पश्चिम कलश लेकर निम्नाङ्कित मन्त्रसे अभिषेक करे)
यत्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यच्च मूर्धनि ॥
ललाटे कर्णयोरक्ष्णोरापस्तदनन्तु सर्वदा।
'तुम्हारे केशोंमें, सीमन्तमें, मस्तकपर, ललाटमें, कानोंमें और नेत्रोंमें भी जो दुर्भाग्य (या अकल्याण) है, उसे जलदेवता सदाके लिये शान्त करें ॥ ११ ॥
(तत्पश्चात् चौथा कलश लेकर पूर्वोक्त तीनों मन्त्र पढ़कर अभिषेक करे।) इस प्रकार स्नान करनेवाले यजमानके मस्तकपर बायें हाथमें लिये हुए कुशोंको रखकर आचार्य उसपर गूलरकी खुवासे सरसोंका तेल उठाकर डाले ॥ १२-१३॥
(उस समय निम्नाङ्कित मन्त्र पढ़े-)
'ॐ मिताय स्वाहा। ॐ सम्मिताय स्वाहा।
ॐ शालाय स्वाहा। ॐ कण्टकाय स्वाहा।
ॐ कूष्माण्डाय स्वाहा। ॐ राजपुत्राय स्वाहा।'
इस प्रकार स्वाहासमन्वित इन मितादि नामोंक द्वारा सरसोंक तैलकी मस्तकपर आहुति दें। मस्तकपर तैल डालना ही हवन है॥ १४-१५॥
(मस्तकपर उक्त होमके पश्चात् लौकिक अग्रि में भी स्थालीपाककी विधिसे चरु तैयार करके उक्त छः मन्त्रोंसे ही उसी अग्रिमें हवन करे।) फिर होमशेष चरुद्वारा 'नमः' पदयुक्त इन्द्रादि नामोंको बलि-मन्त्र बनाकर उनके उच्चारणपूर्वक उन्हें बलि अर्पित करे। तत्पश्चात् सूपमें सब ओर कुश बिछाकर, उसमें कच्चे-पके चावल, पीसे हुए तिलसे मिश्रित भात तथा भाँति-भौतिके पुष्प, तीन प्रकारकी (गौड़ी, माधवी तथा पैष्टी) सुरा, मूली, पूरी, मालपूआ, पीठेकी मालाएँ, दही- मिश्रित अन्न, खीर, मीठा, लड्डू और गुड़-इन सबको एकत्र रखकर चौराहेपर रख दे और उसे देवता, सुपर्ण, सर्प, ग्रह, असुर, यातुधान, पिशाच, नागमाता, शाकिनी, यक्ष, वेताल, योगिनी और पूतना आदिको अर्पित करे। तदनन्तर विनायकजननी भगवती अम्बिकाको दूर्वादल, सर्षप एवं पुष्पोंसे भरी हुई अर्घ्यरूप अञ्जलि देकर निम्नाङ्कित मन्त्रसे उनका उपस्थान करे 'सौभाग्यवती अम्बिके ! मुझे रूप, यश, सौभाग्य, पुत्र एवं धन दीजिये। मेरी सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण कीजिये।' इसके बाद ब्राह्मणोंको भोजन करावे तथा आचार्यको दो वस्त्र दान करे। इस प्रकार विनायक और ग्रहोंका पूजन करके मनुष्य धन और सभी कार्योंमें सफलता प्राप्त करता है॥ १६-२०॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'विनायक-खानकथन' नामक दो सौ छाछठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २६६॥
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