अग्नि पुराण दो सौ इक्यावनवाँ अध्याय ! Agni Purana 251 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ इक्यावनवाँ अध्याय ! Agni Purana 251 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ इक्यावनवाँ अध्याय - धनुर्वेदकथनम्


अग्निरुवाच

जितहस्तो जितमतिर्ज्जितदृग्‌लक्ष्यसाधकः ।
नियतां सिद्धिमासाद्य ततो वाहनमारुहेत् ।। १ ।।

दशहस्तो भवेत् पाशो वृत्तः करमुखस्तथा ।
गुणकार्पासमुञ्जानां भङ्गस्नाय्वर्क्कवर्म्मिणाम् ।। २ ।।

अन्येषां सुदृढानाञ्च सुकृतं परिवेष्टितम् ।
तया त्रिंशत्‌समं पाशं बुधः कुर्य्यात् सुवर्त्तिंतम् ।। ३ ।।

कर्त्तव्यं शिक्षकैस्तस्य स्थानं कक्षासु वै तदा ।
वामहस्तेन सङ्गृह्य दक्षिणेनोद्धरेत्ततः ।। ४ ।।

कुण्डलस्याकृतिं कृत्वा भ्राम्यैकं मस्तकोपरि ।
क्षिपेत् तूणमये तूर्णं पुरुषे चर्मवेष्टिते ।। ५ ।।

वल्गिते च प्लुते चैव तथा प्रव्रजितेषु च ।
समयोगविधिं कृत्वा प्रयुञ्जीत सुशिक्षितम् ।। ६ ।।

विजित्वा तु यथान्यायं ततो बन्धं समाचरेत् ।
कट्याम्बद्‌ध्वा ततः खड्गं वामपार्श्वावलम्बितम् ।। ७ ।।

दृढं विगृह्य वामेन निष्कर्षेद्दक्षिणेन तु ।
षडङ्गुलपरीणाहं सप्तहस्तसमुच्छितं ।। ८ ।।

अयोमय्यः शलाकाश्च वर्माणि विविधानि च ।
अर्द्धहस्ते समे चैव तिर्य्यगूद्‌र्ध्वगतं तथा ।। ९ ।।

योजयेद्विधिना येन तथात्वङ्गदतः श्रृणु ।
तूणचर्मावनद्‌धाङ्गं स्थापयित्वा नवं दृढं ।। १० ।।

करेणादाय लगुडं दक्षिणाङ्गुलकं नवं ।
उद्यम्य घातयेद्यस्य नाशस्तेन शिशोर्दृढं ।। ११ ।।

उभाभ्यामथ हस्ताब्यां कुर्य्यात्तस्य निपातनं ।
अक्लेशेन ततः कुर्वन् बधे सिद्धिः प्रकीर्त्तिता ।। १२ ।।

वाहानां श्रमकरणं प्रचारार्थं पुरा तव ।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये धनुर्वेदो नाम एकपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।

अग्नि पुराण दो सौ इक्यावनवाँ अध्याय हिन्दी मे -Agni Purana 251 Chapter In Hindi


दो सौ इक्यावनवाँ अध्याय - पाशके निर्माण और प्रयोगकी विधि तथा तलवार और लाठीको अपने पास रखने एवं शत्रु पर चलाने की उपयुक्त पद्धतिका निर्देश

अग्निदेव कहते हैं- ब्रह्मन् ! जिसने हाथ, मन और दृष्टिको जीत लिया है, ऐसा लक्ष्यसाधक नियत सिद्धिको पाकर युद्धके लिये वाहनपर आरूढ़ हो। 'पाश' दस हाथ बड़ा, गोलाकार और हाथके लिये सुखद होना चाहिये। इसके लिये अच्छी गूंज, हरिणकी ताँत अथवा आकके छिलकोंकी डोरी तैयार करानी चाहिये। इनके सिवा अन्य सुदृढ़ (पट्टसूत्र आदि) वस्तुओंका भी सुन्दर पाश बनाया जा सकता है। उक्त सूत्रों या रस्सियोंको कई आवृत्ति लपेटकर खूब बट ले। विज्ञ पुरुष तीस आवृत्ति करके बटे हुए सूत्र या रस्सीसे ही पाशका निर्माण करे ॥ १-३॥

शिक्षकोंको पाशकी शिक्षा देने के लिये कक्षाओं में स्थान बनाना चाहिये। पाशको बायें हाथ में लेकर दाहिने हाथसे उधेड़े। उसे कुण्डलाकार बना, सब ओर घुमाकर शत्रुके मस्तकके ऊपर फेंकना चाहिये। पहले तिनकेके बने और चमड़ेसे मढ़े हुए पुरुषपर उसका प्रयोग करना चाहिये। तत्पश्चात् उछलते कूदते और जोर-जोरसे चलते हुए मनुष्योंपर सम्यक्रूपसे विधिवत् प्रयोग करके सफलता प्राप्त कर लेनेपर ही पाशका प्रयोग करे। सुशिक्षित योद्धाको पाशद्वारा यथोचित रीतिसे जीत लेनेपर ही शत्रुके प्रति पाश-बन्धनको क्रिया करनी चाहिये ॥ ४-६ ॥

तदनन्तर कमरमें म्यानसहित तलवार बाँधकर उसे बायीं ओर लटका ले और उसकी म्यानको बायें हाथसे दृढ़ताके साथ पकड़कर दायें हाथसे तलवारको बाहर निकाले। उस तलवारकी चौड़ाई छः अङ्गुल और लंबाई या ऊँचाई सात हाथकी हो ॥७-८॥

लोहेकी बनी हुई कई शलाकाएँ और नाना प्रकारके कवच अपने आधे या समूचे हाथमें लगा ले; अगल-बगलमें और ऊपर-नीचे भी शरीरकी रक्षा के लिये इन सब वस्तुओंको विधिवत् धारण करे ॥९॥

युद्धमें विजयके लिये जिस विधिसे जैसी योजना बनानी चाहिये, वह बताता हूँ, सुनो। तूणीरके चमड़ेसे मड़ी हुई एक नयी और मजबूत लाठी अपने पास रख ले। उस लाठीको दाहिने हाथकी अँगुलियोंसे उठाकर वह जिसके ऊपर जोरसे आघात करेगा, उस शत्रुका अवश्य नाश हो जायगा। इस क्रियामें सिद्धि मिलनेपर वह दोनों हाथोंसे लाठीको शत्रुके ऊपर गिरावे। इससे अनायास ही वह उसका वध कर सकता है। इस तरह युद्धमें सिद्धिकी बात बतायी गयी। रणभूमिमें भलीभाँति संचरणके लिये अपने वाहनोंसे श्रम कराते रहना चाहिये, यह बात तुम्हें पहले बतायी गयी है॥ १०-१२॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'धनुर्वेदका कथन' नामक दो सौ इक्यावनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २५

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