अग्नि पुराण दो सौ छियालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana 246 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ छियालीसवाँ अध्याय ! Agni Purana 246 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ छियालीसवाँ अध्याय - रत्न परीक्षा

अग्निरुवाच

रत्नानां लक्षणां वक्ष्ये रत्नं धार्य्यमिदं नपैः ।
वज्रं मरकतं रत्नं पद्मरागञ्च मौक्तिकं ।। १ ।।

इन्द्रनीलं महानीलं वैदूर्य्यं गन्धशस्यकं ।
चन्द्रकान्तं सूर्यकान्तं स्फटिकं पुलकं तथा ।। २ ।।

कर्केतनं पूष्परागं तथा ज्योतीरसं द्विज ।
स्फटिकं राजपट्टञ्च तथा राजमयं शुभं ।। ३ ।।

सौगन्धिकं तथा गञ्जं शङ्खब्र्ह्ममयं तथा ।
गोमेदं रुधिराक्षञ्च तथा भल्लातकं द्विज ।। ४ ।।

धूलीं मरकतञ्चैव तुथकं सीसमेव च ।
पीलुं प्रवालकञ्चैव गिरिवज्रं द्विजोत्तम ।। ५ ।।

भूजङ्गममणिञ्चैव तथा वज्रमणिं शुभं ।
टिट्टिभञ्च तथा पिण्डं भ्रामरञ्च तथोत्पलं ।। ६ ।।

सुवर्णप्रतिबद्धानि रत्नानि श्रीजयादिके ।
अन्तःप्रभावं वैमल्यं सुसंस्थानत्वमेव च ।। ७ ।।

सुधार्या नैव धार्य्यास्तु निष्प्रभा मलिनास्तथा ।
खण्डाः सशर्करा ये च प्रशस्तं वज्रधारणम् ।। ८ ।।

अम्भस्तरति यद्वज्रमभेद्यं विमलं च यत् ।
षट्कोणं शक्रचापाबं लघु चार्कनिभं शुभम् ।। ९ ।।

शुकपक्षनिभः स्निग्धः कान्तिमान्विमलस्तथा ।
स्वर्णचूर्णनिभैः सूक्ष्मैर्मरकतश्च विन्दुभिः ।। १० ।।

स्फटिकजाः पद्मरागाः स्यू रागवन्तोऽतिनिर्म्मलाः ।
जातवङ्गा भवन्तीह कुरुविन्दसमुद्भवाः ।। ११ ।।

सौगन्धिकोत्थाः काषाया मुक्ताफलास्तु शुक्तिजाः ।
विमलास्तेभ्य उत्कृष्टा ये च शङखोद्भवा मुने ।। १२ ।।

नागदन्तभवाश्चाग्र्याः कुम्भशूकरमत्स्यजाः ।
वेणुनागभवाः श्रेष्ठा मौक्तिकं नागजं वरं ।। १३ ।।

वृत्तत्वं शुक्लता स्वाच्छ्यं महत्त्वं मौक्तिके गुणाः ।
इन्द्रनीलं शुभं क्षीरे रजते भ्राजतेऽधिकं१ ।। १४ ।।

रञ्जयेत् स्वप्रभावेण तममूल्यं विनिर्द्दिशेत् ।
नीलरक्तन्तु वैदूर्य्यं श्रेष्ठं हारादिकं भजेत्२ ।। १५ ।।

इत्यादिम्हापुराणे आग्नेये रत्नपरिक्षा नाम षट्‌चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।

अग्नि पुराण दो सौ छियालीसवाँ अध्याय हिन्दी मे -Agni Purana 246 Chapter In Hindi

दो सौ छियालीसवाँ - अध्याय रत्न-परीक्षण

अग्निदेव कहते हैं- द्विजश्रेष्ठ वसिष्ठ। अब मैं रत्नोंके लक्षणोंका वर्णन करता हूँ। राजाओंको ये रत्न धारण करने चाहिये-वज्र (हीरा), मरकत, पद्मराग, मुक्ता, महानील, इन्द्रनील, वैदूर्य, गन्धसस्य, चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त, स्फटिक, पुलक, कर्केतन, पुष्पराग, ज्योतीरस, राजपट्ट, राजमय, शुभसौगन्धिक, गञ्ज, शङ्ख, ब्रह्ममय, गोमेद, रुधिराक्ष, भल्लातक, धूली, मरकत, तुष्यक, सीस, पीलु, प्रवाल, गिरिवज्र, भुजङ्गमणि, वज्रमणि, टिट्टिभ, भ्रामर और उत्पल। श्री एवं विजयकी प्राप्तिके लिये पूर्वोक्त रत्नोंको सुवर्णमण्डित कराके धारण करना चाहिये। जो अन्तर्भागमें प्रभायुक्त, निर्मल एवं सुसंस्थान हों, उन रत्नोंको ही धारण करना चाहिये। प्रभाहीन, मलिन, खण्डित और किरकिरीसे युक्त रत्नोंको धारण न करे। सभी रनोंमें हीरा धारण करना श्रेष्ठ है।

जो होरा जलमें तैर सके, अभेद्य हो, षट्‌कोण हो, इन्द्रधनुषके समान निर्मल प्रभासे युक्त हो, हल्का तथा सूर्यके समान तेजस्वी हो अथवा तोतेके पङ्खोंके समान वर्णवाला हो, स्निग्ध, कान्तिमान् तथा विभक्त हो, वह शुभ माना गया है। मरकतमणि सुवर्ण-चूर्णके समान सूक्ष्म बिन्दुओंसे विभूषित होनेपर श्रेष्ठ बतलायी गयी है। स्फटिक और पद्मराग अरुणिमासे युक्त तथा अत्यन्त निर्मल होनेपर उत्तम कहे जाते हैं। मोती शुक्तिसे उत्पन्न होते हैं, किंतु शङ्खसे बने मोती उनकी अपेक्षा निर्मल एवं उत्कृष्ट होते हैं। ऋषिप्रवर! हाथीके दाँत और कुम्भस्थलसे उत्पन्न, सूकर, मत्स्य और वेणुनागसे उत्पन्न एवं मेघोंद्वारा उत्पन्न मोती अत्यन्त श्रेष्ठ होते हैं। मौक्तिकमें वृत्तत्व (गोलाई), शुक्लता, स्वच्छता एवं महत्ता-ये गुण होते हैं। उत्तम इन्द्रनीलमणि दुग्धमें रखनेपर अत्यधिक प्रकाशित एवं सुशोभित होती है। जो रत्र अपने प्रभावसे सबको रञ्जित करता है, उसे अमूल्य समझे। नील एवं रक्त आभावाला वैदूर्य श्रेष्ठ होता है। यह हारमें पिरोने योग्य है॥ १-१५ ॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'रत्व परीक्षा-कथन' नामक दो सौ छियालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २४६ ॥

click to read👇

अग्नि पुराण अध्यायः २३१ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २३२ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २३३ ] 

अग्नि पुराण अध्यायः २३४ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २३५ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २३६ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २३७ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २३८ ] [ अग्नि पुराण अध्यायः २३९ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २४० ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २४१ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २४२ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २४३ ] [ अग्नि पुराण अध्यायः २४४ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २४५ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २४६ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २४७ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २४८ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २४९ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २५० ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २५१ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २५२ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २५३ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २५४ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २५५ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २५६ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २५७ ]

अग्नि पुराण अध्यायः २५८ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २५९ ]  [ अग्नि पुराण अध्यायः २६० ]

टिप्पणियाँ