अग्नि पुराण दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय ! Agni Purana 232 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय ! Agni Purana 232 Chapter !

अग्नि पुराण 232 अध्याय - शुभाशुभ शकुनों का वर्णन

पुष्कर उवाच

विशन्ति येन मार्गेण वायसा बहवः पुरं ।
तेन मार्गेण रुद्धस्य पुरस्य ग्रहणं भवेत् ॥ १

सेनायां यदि वासार्थे निविष्टो वायसो रुवन् ।
वामो भयातुरस्त्रस्तो भयं वदति दुस्तरं ॥ २

छायाङ्गवाहनोपानच्छत्रवस्त्रादिकुट्टने ।
मृत्युस्तत्पूजने पूजा तदिष्टकरणे शुभं ॥ ३

प्रोषितागमकृत्काकः कुर्वन् द्वारि गतागतं ।
रक्तं दग्धं गृहे द्रव्यं क्षिपन्वह्निवेदकः ॥ ४

न्यसेद्रक्तं पुरस्ताच्च निवेदयति बन्धनं ।
पीतं द्रव्यं तथा रुक्म रूप्यमेव तु भार्गव ॥ ५

यच्चैवोपनयेद्द्रव्यं तस्य लब्धिं विनिर्दिशेत् ।
द्रव्यं वापनयेद्यत्तु तस्य हानिं विनिर्दिशेत् ॥ ६

पुरतो धनलब्धिः स्यादाममांसस्य छर्दने ।
भूलब्धिः स्यान्मृदः क्षेपे राज्यं रत्नार्पणे महत् ॥ ७

यातुः काकोऽनुकूलस्तु क्षेमः कर्मक्षमो भवेत् ।
न त्वर्थसाधको ज्ञेयः प्रतिकूलो भयावहः ॥ ८

सम्मुखेऽभ्येति विरुवन् यात्राघातकरो भवेत् ।
वामः काकः स्मृतो धन्यो दक्षिणोऽर्थविनाशकृत् ॥ ९

वामोऽनुलोमगः श्रेष्ठो मध्यमो दक्षिणः स्मृतः ।
प्रतिलोमगतिर्वामो गमनप्रतिषेधकृत् ॥१०

निवेदयति यात्रार्थमभिप्रेतं गृहे गतः ।
एकाक्षरचरणस्त्वर्कं वीक्षमाणो भयावहः ॥११

कोटरे वासमानश्च महानर्थकरो भवेत् ।
न शुभस्तूषरे काकः पङ्काङ्कः स तु शस्यते ॥१२

अमेध्यपूर्णवदनः काकः सर्वार्थसाधकः ।
ज्ञेयाः पतत्रिणोऽन्येऽपि काकवद्भृगुनन्दन ॥१३

स्कन्धावारापसव्यस्थाः श्वानो विप्रविनाशकाः ।
इन्द्रस्थाने नरेन्द्रस्य पुरेशस्य तु गोपुरे ॥१४

अन्तर्गृहे गृहेशस्य मरणाय भवेद्भषन् ।
यस्य जिघ्रति वामाङ्गं तस्य स्यादर्थसिद्धये ॥१५

भयाय दक्षिणं चाङ्गं तथा भुजमदक्षिणं ।
यात्राघातकरो यातुर्भवेत्प्रतिमुखागतः ॥१६

मार्गावरोधको मार्गे चौरान् वदति भार्गव ।
अलाभोऽस्थिमुखः पापो रज्जुचीरमुखस्तथा ॥१७

सोपानत्कमुखो धन्यो मांसपूर्णमुखोऽपि च ।
अमङ्गल्यमुखद्रव्यं केशञ्चैवाशुभं तथा ॥१८

अवमूत्र्याग्रतो याति यस्य तस्य भयं भवेत् ।
यस्यावमूत्र्य व्रजति शुभं देशन्तथा द्रुमं ॥१९

मङ्गलञ्च तथा द्रव्यं तस्य स्यादर्थसिद्धये ।
श्ववच्च राम विज्ञेयास्तथा वै जम्बुकादयः ॥२०

भयाय स्वामिनि ज्ञेयमनिमित्तं रुतङ्गवां ।
निशि चौरभयाय स्याद्विकृतं मृत्यवे तथा ॥२१

शिवाय स्वामिनो रात्रौ बलीवर्दो नदन् भवेत् ।
उत्सृष्टवृषभो राज्ञो विजयं सम्प्रयच्छति ॥२२

अभयं भक्षयन्त्यश्च गावो दत्तास्तथा स्वकाः ।
त्यक्तस्नेहाः स्ववत्सेषु गर्भक्षयकरा मताः ॥२३

भूमिं पादैर्विनिघ्नन्त्यो दीना भीता भयावहाः ।
आर्द्राङ्ग्यो हृष्टरोमाश्च शृगलग्नमृदः शुभाः ॥२४

महिष्यादिषु चाप्येतत्सर्वं वाच्यं विजानता ।
आरोहणं तथान्येन सपर्याणस्य वाजिनः ॥२५

जलोपवेशनं नेष्टं भूमौ च परिवर्तनं ।
विपत्करन्तुरङ्गस्य सुप्तं वाप्यनिमित्ततः ॥२६

यवमोदकयोर्द्वेषस्त्वकस्माच्च न शस्यते ।
वदनाद्रुधिरोत्पत्तिर्वेपनं न च शस्यते ॥२७

क्रीडन् वैकः कपोतैश्च सारिकाभिर्मृतिं वदेत् ।
साश्रुनेत्रो जिह्वया च पादलेही विनष्टये ॥२८

वामपादेन च तथा विलिखंश्च वसुन्धरां ।
स्वपेद्वा वामपार्श्वेन दिवा वा न शुभप्रदः ॥२९

भयाय स्यात्सकृन्मूत्री तथा निद्राविलाननः ।
आरोहणं न चेद्दद्यात्प्रतीपं वा गृहं व्रजेत् ॥३०

यात्राविघातमाचष्टे वामपार्श्वं तथा स्पृशन् ।
हेषमाणः शत्रुयोधं पादस्पर्शी जयावहः ॥३१

ग्रामे व्रजति नागश्चेन्मैथुनं देशहा भवेत् ।
प्रसूता नागवनिता मत्ता चान्ताय भूपतेः ॥३२

आरोहणं न चेद्दद्यात्प्रतीपं वा गृहं व्रजेत् ।
मदं वा वारणो जह्याद्राजघातकरो भवेत् ॥३३

वामं दक्षिणपादेन पादमाक्रमते शुभः ।
दक्षिणञ्च तथा दन्तं परिमार्ष्टि करेण च ॥३४

वृषोऽश्वः कुञ्जरो वापि रिपुसैन्यगतोऽशुभः ।
खण्डमेघातिवृष्ट्या तु सेना नाशमवाप्नुयात् ॥३५

प्रतिकूलग्रहर्क्षात्तु तथा सम्मुखमारुतात् ।
यात्राकाले रणे वापि छत्रादिपतनं भयं ॥३६

हृष्टा नराश्चानुलोमा ग्रहा वै जयलक्षणं ।
काकैर्योधाभिभवनं क्रव्याद्भिर्मण्डलक्षयः ॥३७

प्राचीपश्चिमकैशानी शौम्या प्रेष्ठा शुभा च दिक् ॥३८॥

इत्याग्नेये महापुराणे शकुनानि नाम एकत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 232 Chapter!-In Hindi

दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय कौए, कुत्ते, गौ, घोड़े और हाथी आदिके द्वारा होने वाले

पुष्कर कहते हैं- जिस मार्गसे बहुतेरे कौए शत्रुके नगरमें प्रवेश करें, उसी मार्गसे घेरा डालनेपर उस नगरके ऊपर अपना अधिकार प्राप्त होता है। यदि किसी सेना या समुदायमें बार्थी ओरसे भयभीत कौआ रोता हुआ प्रवेश करे तो वह आनेवाले अपार भयकी सूचना देता है। छाया (तम्बू, रावटी आदि), अङ्ग, वाहन, उपानह, छत्र और वस्त्र आदिके द्वारा कौएको कुचल डालनेपर अपने लिये मृत्युकी सूचना मिलती है। उसकी पूजा करनेपर अपनी भी पूजा होती है तथा अन्न आदिके द्वारा उसका इष्ट करनेपर अपना भी शुभ होता है। यदि कौआ दरवाजेपर बारंबार आया-जाया करे तो वह उस घरके किसी परदेशी व्यक्तिके आनेकी सूचना देता है तथा यदि वह कोई लाल या जली हुई वस्तु मकानके ऊपर डाल देता है तो उससे आग लगनेकी सूचना मिलती है॥ १-४॥

भृगुनन्दन ! यदि वह मनुष्यके आगे कोई लाल वस्तु डाल देता है तो उसके कैद होनेकी बात बतलाता है और यदि कोई पीले रंगका द्रव्य सामने गिराता है तो उससे सोने-चाँदीकी प्राप्ति सूचित होती है। सारांश यह कि वह जिस द्रव्यको अपने पास ला देता है, उसकी प्राप्ति और जिस द्रव्यको अपने यहाँसे उठा ले जाता है, उसकी हानिकी ओर संकेत करता है। यदि वह अपने आगे कच्चा मांस लाकर डाल दे तो धनकी, मिट्टी गिरावे तो पृथ्वीकी और कोई रन डाल दे तो महान् साम्राज्यकी प्राप्ति होती है। यदि यात्रा करनेवालेकी अनुकूल दिशा (सामने) की और कौआ जाय तो वह कल्याणकारी और कार्यसाधक होता है, परंतु यदि प्रतिकूल दिशाकी ओर जाय तो उसे कार्यमें बाधा डालनेवाला तथा भर्यकर जानना चाहिये। यदि कौआ सामने काँव-काँव होता है। कौएका वामभागमें होना शुभ माना गया है और दाहिने भागमें होनेपर वह कार्यका नाश करता है। वामभागमें होकर कौआ यदि अनुकूल दिशाकी ओर चले तो 'श्रेष्ठ' और दाहिने होकर अनुकूल दिशाकी ओर चले तो 'मध्यम' माना जाता है; किंतु वामभागमें होकर यदि वह विपरीत दिशाकी ओर जाय तो यात्राका निषेध करता है। यात्राकालमें घरपर कौआ आ जाय तो वह अभीष्ट कार्यकी सिद्धि सूचित करता है। यदि वह एक पैर उठाकर एक आँखसे सूर्यकी ओर देखे तो भय देनेवाला होता है। यदि कौआ किसी वृक्षके खोखलेमें बैठकर आवाज दे तो वह महान् अनर्थका कारण है। ऊसर भूमिमें बैठा हो तो भी अशुभ होता है, किंतु यदि वह कीचड़में लिपटा हुआ हो तो उत्तम माना गया है। परशुरामजी ! जिसकी चोंचमें मल आदि अपवित्र वस्तुएँ लगी हों, वह कौआ दीख जाय तो सभी कार्योंका साधक होता है। कौएकी भाँति अन्य पक्षियोंका भी फल जानना चाहिये ॥ ५-१३॥ 

यदि सेनाकी छावनीके दाहिने भागमें कुत्ते आ जायें तो वे ब्राह्मणोंके विनाशकी सूचना देते हैं। इन्द्रध्वजके स्थानमें हों तो राजाका और गोपुर (नगरद्वार) पर हों तो नगराधीशकी मृत्यु सूचित करते हैं। घरके भीतर भूकता हुआ कुत्ता आवे तो गृहस्वामीको मृत्युका कारण होता है। वह जिसके बायें अङ्गको सूँघता है, उसके कार्यकी सिद्धि होती है। यदि दाहिने अङ्ग और बार्यों भुजाको सूँघे तो भय उपस्थित होता है। यात्रीके सामनेकी ओरसे आवे तो यात्रामें विघ्न डालनेवाला होता है। भृगुनन्दन। यदि कुत्ता राह रोककर खड़ा हो तो मार्गमें चोरोंका भय सूचित करता है; मुँहमें हड्डी लिये हो तो उसे देखकर यात्रा करनेपर कोई लाभ नहीं होता तथा रस्सी या चिथड़ा मुखमें रखनेवाला कुत्ता भी अशुभसूचक होता है। जिसके मुँहमें जूता या मांस हो, ऐसा कुत्ता सामने हो तो शुभ होता है। यदि उसके मुँहमें कोई अमाङ्गलिक वस्तु तथा केश आदि हो तो उससे अशुभकी सूचना मिलती है। कुत्ता जिसके आगे पेशाब करके चला जाता है, उसके ऊपर भय आता है; किन्तु मूत्र त्यागकर यदि वह किसी शुभ स्थान, शुभ वृक्ष तथा माङ्गलिक वस्तुके समीप चला जाय तो वह उस पुरुषके कार्यका साधक होता है। परशुरामजी कुत्तेकी ही भाँति गीदड़ आदि भी समझने चाहिये ॥ १४-२०॥

यदि गौएँ अकारण ही डकराने लगें तो समझना चाहिये कि स्वामी के ऊपर भय आनेवाला है। रातमें उनके बोलनेसे चोरोंका भय सूचित होता है और यदि वे विकृत स्वरमें क्रन्दन करें तो मृत्युकी सूचना मिलती है। यदि रातमें बैल गर्जना करे तो स्वामीका कल्याण होता है और साँड आवाज दे तो राजाको विजय प्रदान करता है। यदि अपनी दी हुई तथा अपने घरपर मौजूद रहनेवाली गौएँ अभक्ष्य-भक्षण करें और अपने बछड़ोंपर भी नेह करना छोड़ दें तो गर्भक्षयको सूचना देनेवाली मानी गयी हैं। पैरोंसे भूमि खोदनेवाली, दीन तथा भयभीत गौएँ भय लानेवाली होती हैं। जिनका शरीर भीगा हो, रोम-रोम प्रसन्नतासे खिला हो और सींगोंमें मिट्टी लगी हुई हो, वे गौएँ शुभ होती हैं। विज्ञ पुरुषको भैंस आदिके सम्बन्धमें भी यही सब शकुन बताना चाहिये॥ २१-२४ ॥

जीन कसे हुए अपने घोड़ेपर दूसरेका चढ़ना, उस घोड़ेका जलमें बैठना और भूमि पर एक ही जगह चक्कर लगाना अनिष्टका सूचक है। बिना किसी कारणके घोड़ेका सो जाना विपत्तिमें डालनेवाला होता है। यदि अकस्मात् जई और गुड़की ओरसे घोड़ेको अरुचि हो जाय, उसके मुँहसे खून गिरने लगे तथा उसका सारा बदन काँपने लगे तो ये सब अच्छे लक्षण नहीं हैं; इनसे अशुभकी सूचना मिलती है। यदि घोड़ा बगुलों, कबूतरों और सारिकाओंसे खिलवाड़ करे तो मृत्युका संदेश देता है। उसके नेत्रोंसे आँसू बहे तथा वह जीभसे अपना पैर चाटने लगे तो विनाशका सूचक होता है। यदि वह बायें टापसे धरती खोदे, बार्यों करवटसे सोये अथवा दिनमें नींद ले तो शुभकारक नहीं माना जाता। जो घोड़ा एक बार मूत्र करनेवाला हो, अर्थात् जिसका मूत्र एक बार थोड़ा-सा निकलकर फिर रुक जाय तथा निद्राके कारण जिसका मुँह मलिन हो रहा हो, वह भय उपस्थित करनेवाला होता है। यदि वह चड़ने न दे अथवा चढ़ते समय उलटे घरमें चला जाय या सवारकी वायर्यों पसलीका स्पर्श करने लगे तो वह यात्रामें विघ्न पड़नेकी सूचना देता है। यदि शत्रु-योद्धाको देखकर हींसने लगे और स्वामीके चरणोंका स्पर्श करे तो वह विजय दिलानेवाला होता है॥ २५-३१॥

यदि हाथी गाँवमें मैथुन करे तो उस देशके लिये हानिकारक होता है। हथिनी गाँवमें बच्चा दे या पागल हो जाय तो राजाके विनाशकी सूचना देती है। यदि हाथी चढ़ने न दे, उलटे हथिसारमें चला जाय या मदकी धारा बहाने लगे तो वह राजाका घातक होता है। यदि दाहिने पैरको बायेंपर रखे और सूँड़से दाहिने दाँतका मार्जन करे तो वह शुभ होता है ॥ ३२-३४॥

अपना बैल, घोड़ा अथवा हाथी शत्रुकी सेनामें चला जाय तो अशुभ होता है। यदि थोड़ी ही दूरमें बादल घिरकर अधिक वर्षा करे तो सेनाका नाश होता है। यात्राके समय अथवा युद्धकालमें ग्रह और नक्षत्र प्रतिकूल हों, सामनेसे हवा आ रही हो और छत्र आदि गिर जायें तो भय उपस्थित होता है। लड़नेवाले योद्धा हर्ष और उत्साहमें भरे हों और ग्रह अनुकूल हों तो यह विजयका लक्षण है। यदि कौए और मांसाहारी जीव-जन्तु योद्धाओंका तिरस्कार करें तो मण्डलका नाश होता है। पूर्व, पश्चिम एवं ईशान दिशा प्रसन्न तथा शान्त हों तो प्रिय और शुभ फलकी प्राप्ति करानेवाली होती हैं॥ ३५-३७ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'शकुन वर्णन' नामक दो सौ बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २३२ ॥

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