अग्नि पुराण दो सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय ! Agni Purana 228 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय ! Agni Purana 228 Chapter !

अग्नि पुराण 228 अध्याय 'युद्धयात्राका वर्णन'


पुष्कर उवाच

यदा मन्येत नृपतिराक्रन्देन बलीयसा ।
पार्ष्णिग्राहोऽभिभूतो मे तदा यात्रां प्रयोजयेत् ।। १ ।।

पुष्टा योधा भृता भृत्याः प्रभूतञ्च बलं मम ।
मूलरक्षासमर्थोऽस्मि तैर्गत्वा१ शिविरे व्रजेत् ।। २ ।।

शत्रोर्वा व्यसने यायात् दैवाद्यैः पीडितं परं ।
भूकम्पो यान्दिशं याति याञ्च केतुर्व्यदूषयत् ।। ३ ।।

विद्विष्टनाशकं सैन्यं सम्भूतान्तःप्रकोपनं ।
शरीरस्फुरणे धन्ये तथा सुस्वप्नदर्शने ।। ४ ।।

निमित्ते शकुने धन्ये जाते शत्रुपुरं व्रजेत् ।
पदातिनागबहुलां सेनां प्रावृषि योजयेत् ।। ५ ।।

हेमन्ते शिशिरे चैव रथवाजिसमाकुलां ।
चतुरङ्गबलोपेतां वसन्ते वा शरनमुखे ।। ६ ।।

सेना पदातिबहुला शत्रून् जयति सर्वदा ।
अङ्गदक्षिणभागे तु शस्तं प्रस्फुरणं भवेत् ।। ७ ।।

न शस्तन्तु तथा वामे पृष्ठस्य हृदयस्य च ।
लाञ्छनं पिटकञ्चैव विज्ञेयं स्फुरणं तथा ।। ८ ।।

विपर्य्ययेणाभिहितं सव्ये स्त्रीणां शुभं भवेत् ।

इत्यादिमहा पुराणे आग्नेये यात्रा नाम अष्टाविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।

अग्नि पुराण - दो सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 228 Chapter!-In Hindi

दो सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय युद्ध-यात्राके सम्बन्धमें विचार

पुष्कर कहते हैं- जब राजा यह समझ ले कि किसी बलवान् आक्रन्द' (राजा) के द्वारा मेरा पाणिग्राह' राजा पराजित कर दिया गया है तो वह सेनाको युद्धके लिये यात्रा करनेकी आज्ञा दे। पहले इस बातको समझ ले कि मेरे सैनिक खूब इष्ट-पुष्ट हैं, भृत्योंका भलीभाँति भरण-पोषण हुआ है, मेरे पास अधिक सेना मौजूद है तथा मैं मूलकी रक्षा करने में पूर्ण समर्थ हूँ; इसके बाद सैनिकोंसे घिरकर शिविर में जाय। जिस समय शत्रु पर कोई संकट पड़ा हो, दैवी और मानुषी आदि बाधाओंसे उसका नगर पीड़ित हो, तब युद्ध के लिये यात्रा करनी चाहिये। जिस दिशामें भूकम्प आया हो, जिसे केतुने अपने प्रभावसे दूषित किया हो, उसी ओर आक्रमण करे। 

जब सेना में शत्रु को नष्ट करने का उत्साह हो, योद्धाओं के मन में विपक्षियों के प्रति क्रोधका भाव प्रकट हुआ हो, शुभसूचक अंग फड़क रहे हों, अच्छे स्वप्न दिखायी देते हों तथा उत्तम निमित्त और शकुन हो रहे हों, तब शत्रुके नगरपर चढ़ाई करनी चाहिये। यदि वर्षाकालमें यात्रा करनी हो तो जिसमें पैदल और हाथियोंकी संख्या अधिक हो, ऐसी सेना को कूच करने की आज्ञा दे। हेमन्त और शिशिर ऋतु में ऐसी सेना ले जाय, जिसमें रथ और घोड़ोंकी संख्या अधिक हो। वसन्त और शरद्के आरम्भमें चतुरंगिणी सेना को युद्धके लिये नियुक्त करे। जिसमें पैदलोंकी संख्या अधिक हो, वही सेना सदा शत्रुओंपर विजय पाती है। यदि शरीरके दाहिने भागमें कोई अंग फड़क रहा हो तो उत्तम है। बायें अंग, पीठ तथा हृदयका फड़कना अच्छा नहीं है। इस प्रकार शरीरके चिह्नों, फोड़े-फुंसियों तथा फड़कने आदि के शुभा शुभ फलों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये। स्त्रियोंके लिये इसके विपरीत फल बताया गया है। उनके बायें अंगका फड़कना शुभ होता है॥ १-८ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'युद्ध यात्रा का वर्णन' नामक दो सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २२८॥

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