अग्नि पुराण - दो सौ तीनवाँ अध्याय ! Agni Purana - 203 Chapter !
दो सौ तीनवाँ अध्याय - नरक स्वरूपम्
अग्निरुवाच
पुष्पाद्यैः पूजनाद्विष्णोर्न याति नरकान्दवे ।
आयुषोऽन्ते नरः प्राणैरनिच्छन्नपि मुच्यते ॥१
जलमग्निर्विषं शस्त्रं क्षुद्व्याधिः पतनं गिरेः ।
निमित्तं किञ्चिदासाद्य देही प्राणैर्विमुच्यते ॥२
अन्यच्छरीरमादत्ते यातनीयं स्वकर्मभिः ।
भुङ्क्तेऽथ पापकृत्दुःखं सुखं धर्माय सङ्गतः ॥३
नीयते यमदूतैस्तु यमं प्राणिभयङ्करैः ।
कुपथे दक्षिणद्वारि धर्मिकः पश्चिमादिभिः ॥४
यमाज्ञप्तैः किङ्करैस्तु पात्यते नरकेषु च ।
स्वर्गे तु नीयते धर्माद्वसिष्ठाद्युक्तिसंश्रयात् ॥५
गोघाती तु महावीच्यां वर्षलक्षन्तु पीड्यते ।
आमकुम्भे महादीप्ते ब्रह्महा भूमिहारकः ॥६
महाप्रलयकं यावद्रौरवे पीड्यते शनैः ।
स्त्रीबालवृद्धहन्ता तु यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥७
महारौरवके रौद्रे गृहक्षेत्रादिदीपकः ।
दह्यते कल्पमेकं स चौरस्तामिस्रके पतेत् ॥८
नैककल्पन्तु शूलाद्यैर्भिद्यते यमकिङ्करैः ।
महातामिस्रके सर्पजलौकाद्यैश्च पीड्यते ॥९
यावद्भूमिर्मातृहाद्या असिपत्रवनेऽसिभिः ।
नैककल्पन्तु नरके करम्भवालुकासु च ॥१०
येन दग्धो जनस्तत्र दह्यते वालुकादिभिः ।
काकोले कृमिविष्ठाशी एकाकी मिष्टभोजनः ॥११
कुट्टले मूत्ररक्ताशी पञ्चयज्ञक्रियोज्झितः ।
सुदुर्गन्धे रक्तभोजी भवेच्चाभक्ष्यभक्ष्यकः ॥१२
तैलपाके तु तिलवत्पीड्यते परपीडकः ।
तैलपाके तु पच्येत शरणागतघातकः ॥१३
निरुच्छासे दाननाशी रसविक्रयकोऽध्वरे ।
नाम्ना वज्रकवाटेन महापाते तदानृती ॥१४
महाज्वाले पापबुद्धिः क्रकचेऽगम्यगामिनः ।
सङ्करी गुडपाके च प्रतुदेत्परमर्मनुत् ॥१५
क्षारह्रदे प्राणिहन्ता क्षुरधारे च भूमिहृत् ।
अम्बरीषे गोस्वर्णहृद्द्रुमच्छिद्वज्रशस्त्रके ॥१६
मधुहर्ता परीतापे कालसूत्रे परार्थहृत् ।
कश्मलेऽत्यन्तमांसाशी उग्रगन्धे ह्यपिण्डदः ॥१७
दुर्धरे तु काचभक्षी वन्दिग्राहरताश्च ये ।
मञ्जुषे नरके लोहेऽप्रतिष्ठे श्रुतिनिन्दकः ॥१८
पूतिवक्त्रे कूटसाक्षी परिलुण्ठे धनापहा ।
बालस्त्रीवृद्धघाती च कराले ब्राह्मणार्तिकृत् ॥१९
विलेपे मद्यपो विप्रो महाताम्रे तु मेदिनः ॥२०॥
तथाक्रम्य पारदारान् ज्वलन्तीमायसीं शिलां ।
शाल्मलाख्ये तमालिङ्गेन्नारी बहुनरङ्गमा ॥२१
आस्फोटजिह्वोद्धरणं स्त्रीक्षणान्नेत्रभेदनं ।
अङ्गारराशौ क्षिप्यन्ते मातृपुत्र्यादिगामिनः ॥२२
चौराः क्षुरैश्च भिद्यन्ते स्वमांसाशी च मांसभुक् ।
मासोपवासकर्ता वै न याति नरकन्नरः ॥२३
एकादशीव्रतकरो भीष्मपञ्चकसद्व्रती ।२४
इत्याग्नेये महापुराणे नरकस्वरूपवर्णनं नाम त्र्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥
अग्नि पुराण - दो सौ तीनवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 203 Chapter!-In Hindi
दो सौ तीनवाँ अध्याय नरकों का वर्णन
अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं नरकोंका वर्णन करता हूँ। भगवान् श्री विष्णु का पुष्पादि उपचारों से पूजन करने वाले नरक को नहीं प्राप्त होते। आयुके समाप्त होनेपर मनुष्य न चाहता हुआ भी प्राणोंसे बिछुड़ जाता है। देहधारी जीव जल, अग्नि, विष, शस्त्राघात, भूख, व्याधि या पर्वतसे पतन-किसी-न-किसी निमित्तको पाकर प्राणोंसे हाथ धो बैठता है। वह अपने कर्मोंके अनुसार यातनाएँ भोगनेके लिये दूसरा शरीर ग्रहण करता है। इस प्रकार पापकर्म करनेवाला दुःख भोगता है, परंतु धर्मात्मा पुरुष सुखका भोग करता है। मृत्युके पश्चात् पापी जीवको यमदूत बड़े दुर्गम मार्ग से ले जाते हैं और वह वमपुरी के दक्षिण द्वार से यमराज के पास पहुँचाया जाता है। वे यमदूत बड़े डरावने होते हैं। परंतु धर्मात्मा मनुष्य पश्चिम आदि द्वारों से ले जाये जाते हैं।
वहाँ पापी जीव यमराजकी आज्ञासे यमदूतोंद्वारा नरकोंमें गिराये जाते हैं, किंतु वसिष्ठ आदि ऋषियोंद्वारा प्रतिपादित धर्मका आचरण करनेवाले स्वर्गमें ले जाये जाते हैं। गोहत्यारा 'महावीचि' नामक नरकमें एक लाख वर्षतक पीड़ित किया जाता है। ब्रह्मघाती अत्यन्त दहकते हुए 'ताम्रकुम्भ' नामक नरकमें गिराये जाते हैं और भूमिका अपहरण करनेवाले पापीको महाप्रलय कालतक 'रौरव नरक में धीरे-धीरे दुःसह पीड़ा दी जाती है। स्त्री, बालक अथवा वृद्धोंका वध करनेवाले पापी चौदह इन्द्रोंके राज्यकालपर्यन्त 'महारौरव' नामक रौद्र नरकमें क्लेश भोगते हैं। दूसरोंके घर और खेतको जलानेवाले अत्यन्त भयंकर 'महारौरव' नरकमें एक कल्पपर्यन्त पकाये जाते हैं। चोरी करनेवालेको 'तामिस्र' नामक नरकमें गिराया जाता है। इसके बाद उसे अनेक कल्पोंतक यमराजके अनुचर भालोंसे बींधते रहते हैं और फिर 'महातामिस्र' नरकमें जाकर वह पापी सर्पों और जोकोंद्वारा पीड़ित किया जाता है। मातृघाती आदि मनुष्य 'असिपत्रवन' नामक नरकमें गिराये जाते हैं। वहाँ तलवारोंसे उनके अङ्ग तबतक काटे जाते हैं, जबतक यह पृथ्वी स्थित रहती है। जो इस लोकमें दूसरे प्राणियोंके हृदयको जलाते हैं, वे अनेक कल्पोंतक 'करम्भवालुका' नरकमें जलती हुई रेतमें भुने जाते हैं। दूसरोंको बिना दिये अकेले मिष्टान्न भोजन करनेवाला 'काकोल' नामक नरकमें कीड़ा और विष्ठाका भक्षण करता है। पञ्चमहायज्ञ और नित्यकर्मका परित्याग करनेवाला 'कुट्टल' नामक नरकमें जाकर मूत्र और रक्तका पान करता है। अभक्ष्य वस्तुका भक्षण करनेवालेको महादुर्गन्धमय नरकमें गिरकर रक्तका आहार करना पड़ता है॥ १-१२॥
दूसरोंको कष्ट देनेवाला 'तैलपाक' नामक नरकमें तिलोंकी भाँति पेरा जाता है। शरणागतका वध करनेवालेको भी 'तैलपाक' में पकाया जाता है। यज्ञमें कोई चीज देनेकी प्रतिज्ञा करके न देनेवाला 'निरुच्छास' में, रस-विक्रय करनेवाला 'वज्रकटाह' नामक नरकमें और असत्यभाषण करनेवाला 'महापात' नामक नरकमें गिराया जाता है ॥ १३-१४॥
पापपूर्ण विचार रखनेवाला 'महाज्वाल 'में, अगम्या स्त्रीके साथ गमन करनेवाला 'क्रकच 'में, वर्णसंकर संतान उत्पन्न करनेवाला 'गुडपाक 'में, दूसरोंक मर्मस्थानोंमें पीड़ा पहुँचानेवाला 'प्रतुद 'में, प्राणिहिंसा करनेवाला 'क्षारहृद 'में, भूमिका अपहरण करनेवाला 'क्षुरधार 'में, गौ और स्वर्णकी चोरी करनेवाला 'अम्बरीष' में, वृक्ष काटनेवाला 'वज्रशस्त्र' में, मधु चुरानेवाला 'परीताप 'में, दूसरोंका धन अपहरण करनेवाला 'कालसूत्र 'में, अधिक मांस खानेवाला 'कश्मल' में और पितरोंको पिण्ड न देनेवाला 'उग्रगन्ध' नामक नरक में यमदूतोंद्वारा ले जाया जाता है। घूस खानेवाले 'दुर्धर' नामक नरकमें और निरपराध मनुष्योंको कैद करनेवाले 'लौहमय मंजूष' नामक नरकमें यमदूतोंद्वारा ले जाकर कैद किये जाते हैं। वेदनिन्दक मनुष्य 'अप्रतिष्ठ' नामक नरकमें गिराया जाता है। झूठी गवाही देनेवाला 'पूतिवका 'में, धनका अपहरण करनेवाला 'परिलुण्ठ 'में, बालक, स्त्री और वृद्धकी हत्या करने वाला तथा ब्राह्मणको पीड़ा देनेवाला 'कराल' में, मद्यपान करनेवाला ब्राह्मण 'विलेप' में और मित्रोंमें परस्पर भेदभाव करानेवाला 'महाप्रेत' नरकको प्राप्त होता है। परायी स्त्रीका उपभोग करनेवाले पुरुष और अनेक पुरुषोंसे सम्भोग करनेवाली नारीको 'शाल्मल' नामक नरकमें जलती हुई लौहमयी शिलाके रूपमें अपनी उस प्रिया अथवा प्रियका आलिङ्गन करना पड़ता है॥ १५-२१ ॥
नरकों में चुगली करने वालों की जीभ खींचकर निकाल ली जाती है, परायी स्त्रियों को कुदृष्टि से देखने वालों की आँखें फोड़ी जाती हैं, माता और पुत्रीके साथ व्यभिचार करने वाले धध कते हुए अंगारोंपर फेंक दिये जाते हैं, चोरोंको छुरोंसे काटा जाता है और मांस-भक्षण करनेवाले नरपिशाचोंको उन्हींका मांस काटकर खिलाया जाता है। मासोपवास, एकादशीव्रत अथवा भीष्मपञ्चकव्रत करनेवाला मनुष्य नरकोंमें नहीं जाता ॥ २२-२३॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'एक सौ नवासी नरकोंके स्वरूपका वर्णन' नामक दो सौ तीनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २०३॥
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