अग्नि पुराण - दो सौ दोवाँ अध्याय ! Agni Purana - 202 Chapter !
दो सौ दोवाँ अध्याय पुष्पाध्यायकथनं
अग्निरुवाच
पुष्पगन्धधूपदीपनैवेद्यैस्तुष्यते हरिः ।
पुष्पाणि देवयोग्यानि ह्ययोग्यानि वदामि ते ॥१
पुष्पं श्रेष्ठं मालती च तमालो भुक्तिमुक्तिमान् ।
मल्लिका सर्वपापघ्नी यूथिका विष्णुलोकदा ॥२
अतिमुक्तमयं तद्वत्पाटला विष्णुलोकदा ।
करवीरैर्विष्णुलोकी जवापुष्पैश्च पुण्यवान् ॥३
पावन्तीकुब्जकाद्यैश्च तगरैर्विष्णुलोकभाक् ।
कर्णिकारैर्विष्णुलोकः करुण्ठैः पापनाशनं ॥४
पद्मैश्च केतकीभिश्च कुन्दपुष्पैः परा गतिः ।
वाणपुष्पैर्वर्वराभिः कृष्णाभिर्हरिलोकभाक् ॥५
अशोकैस्तिलकैस्तद्वदटरूषभवैस्तथा ।
मुक्तिभागी बिल्वपत्रैः शमीपत्रैः परा गतिः ॥६
विष्णुलोकी भृङ्गराजैस्तमालस्य दलैस्तथा ।
तुलसी कृष्णगौराख्या कल्हारोत्पलकानि च ॥७
पद्मं कोकनदं पुण्यं शताब्जमालया हरिः ।
नीपार्जुनकदम्बैश्च वकुलैश्च सुगन्धिभिः ॥८
किंशुकैर्मुनिपुष्पैस्तु गोकर्णैर्नागकर्णकैः ।
सन्ध्यापुष्पैर्बिल्वतकै रञ्जनीकेतकीभवैः ॥९
कुष्माण्डतिमिरोत्थैश्च कुशकाशशरोद्भवैः ।
द्यूतादिभिर्मरुवकैः पत्रैरन्यैः सुगन्धिकैः ॥१०
भुक्तिमुक्तिः पापहानिर्भक्त्या सर्वैस्तु तुष्यति ।
स्वर्णलक्षाधिकं पुष्पं माला कोटिगुणाधिका ॥११
स्ववनेऽन्यवने पुष्पैस्त्रिगुणं वनजैः फलं ।
विशीर्णैर्नार्चयेद्विष्णुन्नाधिकाङ्गैर्न मोटितैः ॥१२
काञ्चनारैस्तथोन्मत्तैर्गिरिकर्णिकया तथा ।
कुटजैः शाल्मलीयैश्च शिरीषैर्नरकादिकं ॥१३
सुगन्धैर्ब्रह्मपद्मैश्च पुष्पैर्नीलोत्पलैर्हरिः ।
अर्कमन्दारधुस्तूरकुसुमैरर्च्यते हरः ॥१४
कुटजैः कर्कटीपुष्पैः केतकीन्न शिवे ददेत् ।
कुष्माण्डनिम्बसम्भूतं पैशाचं गन्धवर्जितं ॥१५
अहिंसा इन्द्रियजयः क्षान्तिर्ज्ञानं दया श्रुतं ।
भावाष्तपुष्पैः सम्पूज्य देवान् स्याद्भुक्तिमुक्तिभाक् ॥१६
अहिंसा प्रथमं पुष्पं पुष्पमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वपुष्पं दया भूते पुष्पं शान्तिर्विशिष्यते ॥१७
शमः पुष्पं तपः पुष्पं ध्यानं पुष्पं च सप्तमं ।
सत्यञ्चैवाष्टमं पुष्पमेतैस्तुष्यति केशवः ॥१८
एतैरेवाष्टभिः पुष्पैस्तुष्यत्येवार्चितो हरिः ।
पुष्पान्तराणि सन्त्यत्र वाह्यानि मनुजोत्तम ॥१९
भक्त्या दयान्वितैर्विष्णुः पूजितः परितुष्यति ।
वारुणं सलिलं पुष्पं सौम्यं घृतपयोदधि ॥२०
प्राजापत्यं तथान्नादि आग्नेयं धूपदीपकं ।
फलपुष्पादिकञ्चैव वानस्पत्यन्तु पञ्चमं ॥२१
पार्थिवं कुशमूलाद्यं वायव्यं गन्धचन्दनं ।
श्रद्धाख्यं विष्णुपुष्पञ्च सर्वदा चाष्टपुष्पिकाः ॥२२
आसनं मूर्तिपञ्चाङ्गं विष्णुर्वा चाष्टपुष्पिकाः ।
विष्णोस्तु वासुदेवाद्यैरीशानाद्यैः शिवस्य वा ॥२३
इत्याग्नेये महापुराणे पुष्पाध्यायो नाम द्व्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥
अग्नि पुराण - दो सौ दोवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 202 Chapter!-In Hindi
दो सौ दोवाँ अध्याय देव पूजा के योग्य और अयोग्य पुष्प
अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! भगवान् श्रीहरि पुष्प, गन्ध, धूप, दीप और नैवेद्यके समर्पणसे ही प्रसन्न हो जाते हैं। मैं तुम्हारे सम्मुख देवताओंके योग्य एवं अयोग्य पुष्पोंका वर्णन करता हूँ। पूजनमें मालती-पुष्प उत्तम है। तमाल पुष्प भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। मल्लिका (मोतिया) समस्त पापोंका नाश करती है तथा यूथिका (जूही) विष्णुलोक प्रदान करनेवाली है। अतिमुक्तक (मोगरा) और लोध्रपुष्प विष्णुलोककी प्राप्ति करानेवाले हैं। करवीर-कुसुमोंसे पूजन करनेवाला वैकुण्ठको प्राप्त होता है तथा जपा-पुष्पोंसे मनुष्य पुण्य उपलब्ध करता है। पावन्ती, कुब्जक और तगर-पुष्पोंसे पूजन करनेवाला विष्णुलोकका अधिकारी होता है। कर्णिकार (कनेर) द्वारा पूजन करनेसे वैकुण्ठकी प्राप्ति होती है एवं कुरुण्ट (पीली कटसरैया) के पुष्पोंसे किया हुआ पूजन पापोंका नाश करनेवाला होता है। कमल, कुन्द एवं केतकीके पुष्पोंसे परमगतिकी प्राप्ति होती है। बाणपुष्प, बर्बर-पुष्प और कृष्ण तुलसीके पत्तोंसे पूजन करनेवाला श्रीहरिके लोकमें जाता है। अशोक, तिलक तथा आटरूष (अडसे) के फूलोंका पूजनमें उपयोग करनेसे मनुष्य मक्षिका भागी होता है। बिल्वपत्रों एवं शमीपत्रोंसे परमगति सुलभ होती है। तमालदल तथा भृङ्गराज कुसुमोंसे पूजन करनेवाला विष्णुलोकमें निवास करता है। कृष्ण तुलसी, शुक्ल तुलसी, कल्हार, उत्पल, पद्म एवं कोकनद- ये पुष्प पुण्यप्रद माने गये हैं॥ १-७॥
भगवान् श्रीहरि सौ कमलोंकी माला समर्पण करनेसे परम प्रसन्न होते हैं। नीप, अर्जुन, कदम्ब, सुगन्धित बकुल (मौलसिरी), किंशुक (पलाश), मुनि (अगस्त्यपुष्प), गोकर्ण, नागकर्ण (रक्त एरण्ड), संध्यापुष्पी (चमेली), बिल्वातक, रञ्जनी एवं केतकी तथा कूष्माण्ड, ग्रामकर्कटी, कुश, कास, सरपत, विभीतक, मरुआ तथा अन्य सुगन्धित पत्रोंद्वारा भक्तिपूर्वक पूजन करनेसे भगवान् श्रीहरि प्रसन्न हो जाते हैं। इनसे पूजन करनेवालेके पाप नाश होकर उसको भोग-मोक्षकी प्राप्ति होती है। लक्ष स्वर्णभारसे पुष्प उत्तम है, पुष्पमाला उससे भी करोड़गुनी श्रेष्ठ है, अपने तथा दूसरोंके उद्यानके पुष्पोंकी अपेक्षा वन्य पुष्पोंका तिगुना फल माना गया है॥८-११॥
झड़कर गिरे, अधिकाङ्ग एवं मसले हुए पुष्पोंसे श्रीहरिका पूजन न करे। इसी प्रकार कचनार, धत्तूर, गिरिकर्णिका (सफेद किणही), कुटज, शाल्मलि (सेमर) एवं शिरीष (सिरस) वृक्षके पुष्पोंसे भी श्रीविष्णुकी अर्चना न करे। इससे पूजा करनेवालेका नरक आदिमें पतन होता है। विष्णुभगवान्का सुगन्धित रक्तकमल तथा नीलकमल कुसुमोंसे पूजन होता है। भगवान् शिवका आक, मदार, धत्तूर-पुष्पोंसे पूजन किया जाता है; किंतु कुटज, कर्कटी एवं केतकी (केवड़े) के फूल शिवके ऊपर नहीं चढ़ाने चाहिये। कूष्माण्ड एवं निम्बके पुष्प तथा अन्य गन्धहीन पुष्प 'पैशाच' माने गये हैं॥ १२-१५ ॥
अहिंसा, इन्द्रियसंयम, क्षमा, ज्ञान, दया एवं स्वाध्याय आदि आठ भावपुष्पोंसे देवताओंका यजन करके मनुष्य भोग-मोक्षका भागी होता है। इनमें अहिंसा प्रथम पुष्प है, इन्द्रिय-निग्रह द्वितीय पुष्प है, सम्पूर्ण भूत-प्राणियोंपर दया तृतीय पुष्प है, क्षमा चौथा विशिष्ट पुष्प है। इसी प्रकार क्रमशः शम, तप एवं ध्यान पाँचवें, छठे और सातवें पुष्प हैं। सत्य आठवाँ पुष्प है। इनसे पूजित होनेपर भगवान् केशव प्रसन्न हो जाते हैं। इन आठ भावपुष्पोंसे पूजा करनेपर ही भगवान् केशव संतुष्ट होते हैं। नरश्रेष्ठ! अन्य पुष्प तो पूजाके बाह्य उपकरण हैं, श्रीविष्णु तो भक्ति एवं दयासे समन्वित भाव-पुष्पोंद्वारा पूजित होनेपर परितुष्ट होते हैं ॥ १६-१९ ॥
जल वारुण पुष्प है: घृत, दुग्ध, दधि सौम्य पुष्प हैं; अन्नादि प्राजापत्य पुष्प हैं, धूप-दीप आग्नेय पुष्प हैं, फल-पुष्पादि पञ्चम वानस्पत्य पुष्प हैं, कुशमूल आदि पार्थिव पुष्प हैं; गन्ध चन्दन वायव्य कुसुम हैं, श्रद्धादि भाव वैष्णव प्रसून हैं। ये आठ पुष्पिकाएँ हैं, जो सब कुछ देनेवाली हैं। आसन (योगपीठ), मूर्ति-निर्माण, पञ्चाङ्गन्यास तथा अष्टपुष्पिकाएँ- ये विष्णुरूप हैं। भगवान् श्रीहरि पूर्वोक्त अष्टपुष्पिकाद्वारा पूजन करनेसे प्रसन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त भगवान् श्रीविष्णुका 'वासुदेव' आदि नामोंसे एवं श्रीशिवका 'ईशान' आदि नाम-पुष्पोंसे भी पूजन किया जाता है॥ २०-२३॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'पुष्पाध्याय' नामक दो सौ दोवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २०२॥
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