अग्नि पुराण -एक सौ निन्यानबेवाँ अध्याय ! Agni Purana - 199 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ निन्यानबेवाँ अध्याय ! Agni Purana 199 Chapter!

अथैकोनशताधिकशततमोऽध्यायः - नानाव्रतानि

अग्निरुवाच

ऋतुव्रतान्त्यहं वक्ष्ये भुक्तिमुक्तिप्रदानि ते ।
इन्धनानि तु यो दद्याद्वर्षादिचतुरो ह्यृतून् ॥१

घृतधेनुप्रदश्चान्ते ब्राह्मणोऽग्निव्रती भवेत् ।
कृत्वा मौनन्तु सन्ध्यायां मासान्ते घृतकुम्भदः ॥२

तिलघण्टावस्त्रदाता सुखी सारस्वतव्रती ।
पञ्चामृतेन स्नपनं कृत्वाब्दं धेनुदो नृपः ॥३

एकादश्यान्तु नक्ताशी चैत्रे भक्तं निवेदयेत् ।
हैमं विष्णोः पदं याति मासन्ते विष्णुसद्व्रती ॥४

पायसाशी गोयुगदः श्रीभाग्देवीव्रती भवेत् ।
निवेद्य पितृदेवेभ्यो यो भुङ्क्ते स भवेन्नृपः ॥५

वर्षव्रतानि चोक्तानि सङ्क्रान्तिव्रतकं वदे ।
सङ्क्रान्तौ स्वर्गलोकी स्याद्रात्रिजागरणान्नरः ॥६

अमावास्यां तु सङ्क्रान्तौ शिवार्कयजनात्तथा ।
उत्तरे त्वयने चाज्यप्रस्थस्नानेन केशवे ॥७

द्वात्रिंशत्पलमानेन सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
घृतक्षीरादिना स्नाप्य प्राप्नोति विषुवादिषु ॥८

स्त्रीणामुमाव्रतं श्रीदं तृतीयास्वष्टमीषु च ।
गौरीं महेश्वरं चापि यजेत्सौभाग्यमाप्नुयात् ॥९

उमामहेश्वरौ प्रार्च्य अवियोगादि चाप्नुयात् ।
मूलव्रतकरी स्त्री च उमेशव्रतकारिणी ॥१०

सूर्यभक्ता तु या नारी ध्रुवं सा पुरुषो भवेत् ।११

इत्याग्नेये महा पुराणे नाना व्रतानि नाम एकोनशताधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ निन्यानबेवाँ अध्याय हिन्दी मे -Agni Purana 199 Chapter In Hindi

एक सौ निन्यानबेवाँ अध्याय ऋतु, वर्ष, मास, संक्रान्ति आदि विभिन्न व्रतोंका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ ! अब मैं आपके सम्मुख ऋतु-सम्बन्धी व्रतोंका वर्णन करता हूँ, जो भोग और मोक्षको सुलभ करनेवाले हैं। जो वर्षा, शरद्, हेमन्त और शिशिर ऋतुमें इन्धनका दान करता है एवं व्रतान्त में घृत-धेनुका दान करता है, वह 'अग्निव्रत' का पालन करनेवाला मनुष्य दूसरे जन्म में ब्राह्मण होता है। जो एक मासतक संध्याके समय मौन रहकर मासान्तमें ब्राह्मणको घृतकुम्भ, तिल, घण्टा और वस्त्र देता है, वह 'सारस्वतव्रत' करनेवाला मनुष्य सुखका उपभोग करता है। एक वर्षतक पञ्चामृतसे स्नान करके गोदान करनेवाला राजा होता है॥ १-३॥ 

चैत्र को एकादशी को नक्त भुक्त व्रत कर के चैत्र के समाप्त होने पर विष्णु भक्त ब्राह्मण को स्वर्ण मयी विष्णु-प्रतिमाका दान करे। इस विष्णु-सम्बन्धी उत्तम व्रतका पालन करनेवाला विष्णु पद को प्राप्त करता है। (एक वर्षतक) खीरका भोजन करके गोयुग्म का दान करनेवाला इस 'देवी व्रत 'के पालनके प्रभाव से श्री सम्मत्र होता है। जो (एक वर्षतक) पितृ देवों को समर्पित करके भोजन करता है, वह राज्य प्राप्त करता है। ये वर्ष-सम्बन्धी व्रत कहे गये। अब मैं संक्रान्ति-सम्बन्धी व्रतों का वर्णन करता हूँ। मनुष्य संक्रान्तिको रात्रि को जागरण करनेसे स्वर्गलोकको प्राप्त होता है। जब संक्रान्ति अमावास्या तिथिमें हो तो शिव और सूर्य का पूजन करनेसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है। उत्तरायण-सम्बन्धिनी मकर संक्रान्ति में प्रातःकाल स्नान करके भगवान् श्री केशव की अर्चना करनी चाहिये। उद्यापनमें बत्तीस पल स्वर्णका दान देकर वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। विषुव आदि योगोंमें भगवान् श्री हरि को घृतमिश्रित दुग्ध आदिसे स्नान करा के मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है॥४-८॥

स्त्रियों के लिये 'उमाव्रत' लक्ष्मी प्रदान करने वाला है। उन्हें तृतीया और अष्टमी तिथि को गौरी शंकर की पूजा करनी चाहिये। इस प्रकार शिव-पार्वती को अर्चना करके नारी अखण्ड सौभाग्य प्राप्त करती है और उसे कभी पति का वियोग नहीं होता। 'मूलव्रत' एवं 'उमेश व्रत' करनेवाली तथा सूर्व में भक्ति रखने वाली स्त्री दूसरे जन्म में अवश्य पुरुषत्व प्राप्त करती है॥ ९-११॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'विभिन्न व्रतोंका वर्णन' नामक एक सौ निन्यानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १९९॥

click to read 👇

[अग्नि पुराण अध्यायः १८१]   [अग्नि पुराण अध्यायः १८२]  [अग्नि पुराण अध्यायः १८३]

[अग्नि पुराण अध्यायः १८४]   [अग्नि पुराण अध्यायः १८५]  [अग्नि पुराण अध्यायः १८६]

[अग्नि पुराण अध्यायः १८७]   [अग्नि पुराण अध्यायः १८८]  [अग्नि पुराण अध्यायः १८९]

[अग्नि पुराण अध्यायः १९०]   [अग्नि पुराण अध्यायः १९१]   [अग्नि पुराण अध्यायः १९२]

[अग्नि पुराण अध्यायः १९३]   [अग्नि पुराण अध्यायः १९४]   [अग्नि पुराण अध्यायः १९५]

[अग्नि पुराण अध्यायः १९६]   [अग्नि पुराण अध्यायः १९७]   [अग्नि पुराण अध्यायः १९८]

[अग्नि पुराण अध्यायः १९९]   [अग्नि पुराण अध्यायः २००]

टिप्पणियाँ