अग्नि पुराण -एक सौ अट्ठानबेवाँ अध्याय ! Agni Purana - 198 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ अट्ठानबेवाँ अध्याय ! Agni Purana 198 Chapter !

अथाष्टनवत्यधिकशततमोऽध्यायः- मासव्रतानि

अग्निरुवाच

मासव्रतकमाख्यास्ये भुक्तिमुक्तिप्रदायकं ।
आषाढादिचतुर्मासमभ्यङ्गं वर्जयेत्सुधीः ॥१

वैशाखे पुष्पलवणन्त्यक्त्वा गोदो नृपो भवेत् ।
गोदो मासोपवासी च भीमव्रतकरो हरिः॥२

आषाढादिचतुर्मासं प्रातःस्नायी च विष्णुगः ।
माघे मास्यथ चैत्रे वा गुडधेनुप्रदो भवेत् ॥३

गुडव्रतस्तृतीयायां गौरीशः स्यान्महाव्रती ।
मार्गशीर्षादिमासेषु नक्तकृद्विष्णुलोकभाक् ॥४

एकभक्तव्रती तद्वद्द्वादशीव्रतकं पृठक् ।
फलव्रती चतुर्मासं फलं त्यक्त्वा प्रदापयेत् ॥५

श्रावणादिचतुर्मासं व्रतैः सर्वं लभेद्व्रती ।
आषाढस्य सिते पक्षे एकादश्यामुपोषितः ॥६

चातुर्मास्यव्रतानान्तु कुर्वीत परिकल्पनं ।
आषाढ्याञ्चाथ सङ्क्रान्तौ कर्कटस्य हरिं यजेत् ॥७

इदं व्रतं मया देव गृहीतं पुरतस्तव ।
निर्विघ्नां सिद्धिमायातु प्रसन्ने त्वयि केशव ॥८

गृहीतेऽस्मिन् व्रते देव यद्यपूर्णे म्रिये ह्यहं ।
तन्मे भवतु सम्पूर्णं त्वत्प्रसादाज्जनार्दन ॥९

मांसादि त्यक्त्वा विप्रः स्यात्तैलत्यागी हरिं यजेत् ।
एकान्तरोपवासी च त्रिरात्रं विष्णुलोकभाक् ॥१०

चान्द्रायणी विष्णुलोकी मौनी स्यान्मुक्तिभाजनं ।
प्राजापत्यव्रती स्वर्गी शक्तुयावकभक्षकः ॥११

गुग्धाद्याहारवान् स्वर्गी पञ्चगव्याम्बुभ्क्तथा ।
शाकमूलफलाहारी नरो विष्णुपुरीं व्रजेत् ॥१२

मांसवर्जी यवाहारो रसवर्जी हरिं व्रजेत् ।
कौमुदव्रतमाख्यास्ये आश्विने समुपोषितः ॥१३

द्वादश्यां पूजयेद्विष्णुं प्रलिप्याब्जोत्पलादिभिः ।
घृतेन तिलतैलेन दीपनैवेद्यमर्पयेत् ॥१४

ओं नमो वासुदेवाय मालत्या मालया यजेत् ।
धर्मकामार्थमोक्षांश्च प्राप्नुयात्कौमुदव्रती ॥१५

सर्वं लभेद्धरिं प्रार्च्य मासोपवासकव्रती ।१६

इत्याग्नेये महापुराणे मासव्रतानि नाम अष्टनवत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण एक सौ अट्ठानबेवाँ अध्याय हिन्दी मे -Agni Purana 198 Chapter In Hindi

एक सौ अट्ठानबेवाँ अध्याय मास-सम्बन्धी व्रत

अग्निदेव कहते हैं- मुनिश्रेष्ठ ! अब मैं मास-व्रतोंका वर्णन करूँगा, जो भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। आषाढ़से प्रारम्भ होनेवाले चातुर्मास्यमें अभ्यङ्ग (मालिश और उबटन) का त्याग करे। इससे मनुष्य उत्तम बुद्धि प्राप्त करता है। वैशाखमें पुष्परेणुतकका परित्याग करके गोदान करनेवाला राज्य प्राप्त करता है। एक मास उपवास रखकर गोदान करनेवाला इस भीमव्रतके प्रभावसे श्रीहरिस्वरूप हो जाता है। आषाढ़से प्रारम्भ होनेवाले चातुर्मास्यमें नियमपूर्वक प्रातः स्नान करनेवाला विष्णुलोकको जाता है। माघ अथवा चैत्र मासकी तृतीयाको गुड़-धेनुका दान दे, इसे 'गुड़व्रत' कहा गया है। इस महान् व्रतका अनुष्ठान करनेवाला शिवस्वरूप हो जाता है। मार्गशीर्ष आदि मासोंमें 'नक्तव्रत' (रात्रिमें एक बार भोजन) करनेवाला विष्णुलोकका अधिकारी होता है। 'एकभुक्त व्रत'का पालन करनेवाला उसी प्रकार पृथक् रूपसे द्वादशीव्रतका भी पालन करे। 'फलव्रत' करनेवाला चातुर्मास्यमें फलोंका त्याग करके उनका दान करे ॥१-५॥ 

श्रावण से प्रारम्भ होने वाले चातुर्मास्यमें व्रतोंके अनुष्ठान से व्रतकर्ता सब कुछ प्राप्त कर लेता है। चातुर्मास्य-व्रतोंका इस प्रकार विधान करे आषाढ़के शुक्लपक्षकी एकादशीको उपवास रखे। प्रायः आषाढ़में प्राप्त होनेवाली कर्क संक्रान्तिमें श्रीहरिका पूजन करे और कहे 'भगवन्! मैंने आपके सम्मुख यह व्रत ग्रहण किया है। केशव! आपकी प्रसन्नतासे इसकी निर्विघ्न सिद्धि हो। देवाधिदेव जनार्दन। यदि इस व्रतके ग्रहणके अनन्तर इसकी अपूर्णतामें ही मेरी मृत्यु हो जाय, तो आपके कृपा-प्रसादसे यह व्रत सम्पूर्ण हो।' व्रत करनेवाला द्विज मांस आदि निषिद्ध वस्तुओं और तेलका त्याग करके श्रीहरिका यजन करे। एक दिनके अन्तरसे उपवास रखकर त्रिरात्रव्रत करनेवाला विष्णुलोकको प्राप्त होता है।' चान्द्रायण व्रत' करनेवाला विष्णुलोकका और 'मौन व्रत' करनेवाला मोक्षका अधिकारी होता है। 'प्राजापत्य व्रत' करनेवाला स्वर्गलोकको जाता है। सत्तू और यवका भक्षण करके, दुग्ध आदिका आहार करके, अथवा पञ्चगव्य एवं जल पीकर कृच्छ्रव्रतोंका अनुष्ठान करनेवाला स्वर्गको प्राप्त होता है। शाक, मूल और फलके आहारपूर्वक कृच्छ्रव्रत करने वाला मनुष्य वैकुण्ठ को जाता है। मांस और रसका परित्याग करके जौका भोजन करने वाला श्रीहरिके सांनिध्यको प्राप्त करता है॥ ६-१२ ॥ 

अब मैं 'कौमुदव्रत' का वर्णन करूँगा। आश्विनके शुक्लपक्षकी एकादशीको उपवास रखे। द्वादशीको श्रीविष्णुके अङ्गोंमें चन्दनादिका अनुलेपन करके कमल और उत्पल आदि पुष्पोंसे उनका पूजन करे। तदनन्तर तिल-तैलसे परिपूर्ण दीपक और घृतसिद्ध पक्वान्नका नैवेद्य समर्पित करे। श्रीविष्णुको मालतीपुष्पोंकी माला भी निवेदन करे। 'ॐ नमो वासुदेवाय' इस मन्त्रसे व्रतका विसर्जन करे। इस प्रकार 'कौमुदव्रत 'का अनुष्ठान करनेवाला धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- चारों पुरुषार्थीको हस्तगत कर लेता है। मासोपवास व्रत करनेवाला श्रीविष्णुका पूजन करके सब कुछ प्राप्त कर लेता है॥ १३-१६ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'मास सम्बन्धी व्रतका वर्णन' नामक एक सौ अडानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १९८ ॥

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