अग्नि पुराण एक सौ पंचानबेवाँ अध्याय ! Agni Purana 195 Chapter !
अथ पञ्चनवत्यधिकशततमोऽध्यायः - वारव्रतानि
अग्निरुवाच
वारव्रतानि वक्ष्यामि भुक्तिमुक्तिप्रदानि हि ।
करं पुनर्वसुः सूर्ये स्नाने सर्वौषधी शुभा ॥१
श्राध्हौ चादित्यवारे तु सप्तजन्मस्वरोगभाक् ।
सङ्क्रान्तौ सूर्यवारो यः सोऽर्कस्य हृदयः शुभः ॥२
कृत्वा हस्ते सूर्यवारं नक्तेनाब्दं स सर्वभाक् ।
चित्राभसोमवाराणि सप्त कृत्वा सुखी भवेत् ॥३
स्वात्यां गृहीत्वा चाङ्गारं सप्तनक्त्यार्तिवर्जितः ।
विशाखायां बुधं गृह्य सप्तनक्ती ग्रहार्तिनुत् ॥४
अनुराधे देवगुरुं सप्तनक्ती ग्रहार्तिनुत्।
शुक्रं ज्येष्ठासु सङ्गृह्य सप्तनक्ती ग्रहार्तिनुत् ॥५
मूले शनैश्चरं गृह्य सप्तनक्ती ग्रहार्तिनुत् ॥
इत्याग्नेये महा पुराणे वारव्रतानि नाम पञ्चवनत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥
अग्नि पुराण - एक सौ पंचानबेवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana 195 Chapter!-In Hindi
एक सौ पंचानबेवाँ अध्याय वार-सम्बन्धी व्रतों का वर्णन
अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले वार-सम्बन्धी व्रतों का वर्णन करता हूँ। जब रविवारको हस्त अथवा पुनर्वसु नक्षत्रका योग हो, तब पवित्र सर्वोषधिमिश्रित जलसे स्नान करना चाहिये। इस प्रकार रविवारको श्राद्ध करनेवाला सात जन्मोंमें रोगसे पीड़ित नहीं होता। संक्रान्तिके दिन यदि रविवार हो, तो उसे पवित्र 'आदित्य हृदय' माना गया है। उस दिन अथवा हस्तनक्षत्र युक्त रविवार को एक वर्ष तक नक्तव्रत करके मनुष्य सब कुछ पा लेता है। चित्रान क्षत्र युक्त सोमवार के सात व्रत करके मनुष्य सुख प्राप्त करता है।
स्वातीन क्षत्र से युक्त मङ्गलवार का व्रत आरम्भ करे। इस प्रकार मङ्गलवार के सात नक्तव्रत करके मनुष्य दुःख-बाधाओंसे छुटकारा पाता है। बुध सम्बन्धी व्रतमें विशाखा नक्षत्रयुक्त बुधवारको ग्रहण करे। उससे आरम्भ करके बुधवारके सात नक्तव्रत करने वाला बुधग्रहजनित पीड़ासे मुक्त हो जाता है। अनुराधानक्षत्रयुक्त गुरुवारसे आरम्भ करके सात नक्तव्रत करनेवाला बृहस्पति ग्रहकी पीड़ासे, ज्येष्ठानक्षत्रयुक्त शुक्रवार को व्रत ग्रहण करके सात नक्तव्रत करनेवाला शुक्रग्रहकी पीड़ा से और मूलनक्षत्रयुक्त शनिवारसे आरम्भ करके सात नक्तव्रत करनेवाला शनिग्रहकी पीड़ासे निवृत्त हो जाता है॥ १-५॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'वार-सम्बन्धी व्रतोंका वर्णन' नामक एक सौ पंचानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १९५॥
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