अग्नि पुराण - एक सौ नवासीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 189 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ नवासीवाँ अध्याय ! Agni Purana 189 Chapter !

एक सौ नवासीवाँ अध्याय श्रवण-द्वादशी व्रतका वर्णन

अग्निरुवाच

श्रवणाद्वादशीं वक्ष्ये मासि भाद्रपदे सिते ।
श्रवणेन युता श्रेष्ठा महती सा ह्युपोषिता ॥१

सङ्गमे सरितां स्नानाच्छ्रवणद्वादशोफलं ।
बुधश्रवणसंयुक्ता दानादौ सुमहाफला ॥२

निषिद्धमपि कर्तव्यन्त्रयोदश्यान्तु पारणं ।
द्वादृश्याञ्च निराहारो वामनं पूजयाम्यहं ॥३

उदकुम्भे स्वर्णमयन्त्रयोदश्यान्तु पारणं ।
आवाहयाम्यहं विष्णुं वामनं शङ्खचक्रिणं ॥४

सितवस्त्रयुगच्छन्ने घटे सच्छत्रपादुके ।
स्नापयामि जलैः शुद्धैर्विष्णुं पञ्चामृतादिभिः ॥५

छत्रदण्डधरं विष्णुं वामनाय नमो नमः ।
अर्घ्यं ददामि देवेश अर्घ्यार्हाद्यैः सदार्चितः ॥६

भुक्तिमुक्तिप्रजाकीर्तिसर्वैश्वर्ययुतं कुरु ।
वामनाय नमो गन्धं होमोऽनेनाष्टकं शतं ॥७

ओं नमो वासुदेवाय शिरः सम्पूजयेद्धरेः ।
श्रीधराय मुखं तद्वत्कण्ठे कृष्णाय वै नमः ॥८

नमः श्रीपतये वक्षो भुजो सर्वास्त्रधारिणे ।
व्यापकाय नमो नाभिं वामनाय नमः कटिं ॥९

त्रैलोक्यजयकायेति मेढ्रं जङ्घे यजेद्धरेः ।
सर्वाधिपतये पादौ विष्णोः सर्वात्मने नमः ॥१०

घृतपक्वञ्च नैवेद्यन्दद्याद्दध्योदनैर्घटान् ।
रात्रौ च जागरं कृत्वा प्रातः स्नात्वा च सङ्गमे ॥११

गन्धपुष्पादिभिः पूज्य वदेत्पुष्पाञ्जलिस्त्विदं ।
नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसञ्ज्ञित ॥१२

अघौघसङ्क्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।
प्रीयतान्देव देवेश मम नित्यञ्जनार्दन ॥१३

वामनो बुद्धिदो दाता द्रव्यस्थो वामनः स्वयं ।
वामनः प्रतिगृह्णाति वामनो मे ददाति च ॥१४

द्रव्यस्थो वामनो नित्यं वामनाय नमो नमः ।
प्रदत्तदक्षिणो विप्रान् सम्भोज्यान्नं स्वयञ्चरेत् ॥१५

इत्याग्नेये महा पुराणे श्रवणद्वादशीव्रतं नामैकोननवत्यधिकशतत्मोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ नवासीवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana 189 Chapter!-In Hindi

एक सौ नवासीवाँ अध्याय श्रवण-द्वादशी व्रतका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं- अब मैं भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में किये जाने वाले 'श्रवण द्वादशी' व्रत के विषय में कहता हूँ। यह श्रवण नक्षत्रसे संयुक्त होने पर श्रेष्ठ मानी जाती है एवं उपवास करनेपर महान् फल प्रदान करने वाली है। श्रवण-द्वादशीके दिन नदियोंके संगमपर खान करनेसे विशेष फल प्राप्त होता है तथा बुधवार और श्रवणनक्षत्रसे युक्त द्वादशी दान आदि कमर्मोंमें महान् फलदायिनी होती है॥ १-२॥

त्रयोदशी के निषिद्ध होने पर भी इस व्रतका पारण त्रयोदशी को करना चाहिये-
  • संकल्प-मन्त्र

द्वादश्यां च निराहारो वामनं पूजयाम्यहम् ॥ 
उदकुम्भे स्वर्णमयं त्रयोदश्यां तु पारणम्।

मैं द्वादशीको निराहार रहकर जलपूर्ण कलशपर स्थित स्वर्णनिर्मित वामन-मूर्तिका पूजन करता हूँ एवं मैं व्रत का पारण त्रयोदशीको करूँगा।'
  • आवाहन-मन्त्र

आवाहयाम्यहं विष्णुं वामनं शङ्खचक्रिणम् ॥
सितवस्त्रयुगच्छत्रे घटे सच्छत्रपादुके। 

'मैं दो श्वेतवस्त्रोंसे आच्छादित एवं छत्र पादुकाओंसे युक्त कलशपर शङ्ख-चक्रधारी वामनावतार विष्णुका आवाहन करता हूँ।'
  • स्नानार्पण-मन्त्र

स्नापयामि जलैः शुद्धैर्विष्णुं पञ्चामृतादिभिः ॥
छत्रदण्डधरं विष्णुं वामनाय नमो नमः।

'मैं छत्र एवं दण्डसे विभूषित सर्वव्यापी श्री विष्णु को पञ्चामृत आदि एवं विशुद्ध जलका स्नान समर्पित करता हूँ। भगवान् वामन को नमस्कार है।'
  • अध्यदान-मन्त्र

अर्घ्य ददामि देवेश अर्ध्याहांडीः सदार्चितः ॥
भुक्तिमुक्तिप्रजाकीर्तिसर्वेश्वर्ययुतं कुरु।

'देवेश्वर! आप अध्यके अधिकारी पुरुषों तथा दूसरे लोगोंद्वारा भी सदैव पूजित हैं। मैं आपको अर्घ्यदान करता हूँ। मुझे भोग, मोक्ष, संतान, यश और सभी प्रकारके ऐश्वर्योंसे युक्त कीजिये।' फिर 'वामनाय नमः' इस मन्त्रसे गन्धद्रव्य समर्पित करे और इसी मन्त्रद्वारा श्रीहरिके उद्देश्यसे एक सौ आठ आहुतियाँ दे ॥ ३-७॥

'ॐ नमो वासुदेवाय।' मन्त्रसे श्रीहरिके शिरोभागकी अर्चना करे। श्रीधराय नमः।' से मुखका, 'कृष्णाय नमः।' से कण्ठ देशका,' श्रीपतये नमः।' कहकर वक्षःस्थलका, 'सर्वास्त्रधारिणे नमः।' कहकर दोनों भुजाओंका, 'व्यापकाय नमः।' से नाभि और 'वामनाय नमः ।' बोलकर कटिप्रदेशका पूजन करे। ' त्रैलोक्यजननाय नमः ।' मन्त्रसे भगवान् वामनके उपस्थकी, 'सर्वाधिपतये नमः।' से दोनों जङ्घाओंकी एवं 'सर्वात्मने नमः ।' कहकर श्रीविष्णुके चरणोंकी पूजा करे ॥ ८-१० ॥ 

तदनन्तर वामन भगवान्‌को घृतसिद्ध नैवेद्य और दही-भातसे परिपूर्ण कुम्भ समर्पित करे। रात्रिमें जागरण करके प्रातः काल संगममें स्नान करे। फिर गन्ध-पुष्पादिसे भगवान्‌का पूजन करके निम्नाङ्कित मन्त्रसे पुष्पाञ्जलि समर्पित करे-

नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञित ॥ 
अघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव। 
प्रीयतां देवदेवेश मम नित्यं जनार्दन ॥

'बुध एवं श्रवणसंज्ञक गोविन्द ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। मेरे पापसमूहका विनाश करके समस्त सौख्य प्रदान कीजिये। देवदेवेश्वर जनार्दन। आप मेरी इस पुष्पाञ्जलिसे नित्य प्रसत्र हों ॥ ११-१३॥
(तत्पश्चात् सम्पूर्ण पूजन द्रव्य इस मन्त्रसे किसी विद्वान् ब्राह्मणको देㅡ)

वामनो बुद्धिदो दाता द्रव्यस्थो वामनः स्वयम्। 
वामनः प्रतिगृह्णाति वामनो मे ददाति च ॥ 
वामनो नित्यं वामनाय नमो नमः।

'भगवान् वामनने मुझे दानकी बुद्धि प्रदान की है। वे ही दाता हैं। देय द्रव्यमें भी स्वयं वामन स्थित हैं। वामन भगवान् ही इसे ग्रहण कर रहे हैं और वामन ही मुझे प्रदान करते हैं। भगवान् वामन नित्य सभी द्रव्योंमें स्थित हैं। उन श्री वामनावतार विष्णुको नमस्कार है, नमस्कार है।'इस प्रकार ब्राह्मणको दक्षिणासहित पूजन- द्रव्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराके स्वयं भोजन करे ॥ १४-१५ ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'श्रवणद्वादशी व्रतका वर्णन' नामक एक सौ नवासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८९॥

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