अग्नि पुराण - एक सौ पचासीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 185 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ पचासीवाँ अध्याय ! Agni Purana 185 Chapter !

एक सौ पचासीवाँ अध्याय - अथ नवमीव्रतानि॥

अग्निरुवाच

नवमीव्रतकं वक्ष्ये भुक्तिमुक्त्यादिसिद्धिदं ।
देवी पूज्याश्विने शुक्ले गौर्याख्यानवमीव्रतं ॥१

पिष्टकाख्या तु नवमी पिष्टाशी देवपूजनात् ।
अष्टम्यामाश्विने शुक्ले कन्यार्कमूलभे यदा ॥२

अघार्दना सर्वदा वै महती नवमी स्मृता ।
दुर्गा तु नवगेहस्था एकागारस्थिताथवा ॥३

पूजिताष्टादशभुजा शेषाः षोडशसत्कराः ।
शेषाः षोडशहस्ताः स्युरञ्जनं डमरुं तथा ॥४

रुद्रचण्डा प्रचण्डा च चण्डोग्रा चण्डनायिका ।
चण्डा चण्डवती पूज्या चण्डरूपातिचण्डिका ॥५

क्रमान्मध्ये चोग्रचण्डा दुर्गा महिषमर्दिनी ।
ओं दुर्गे दुर्गरक्षणि स्वाहा दशाक्षरो मन्त्रः ॥६

दीर्घाकारादिमन्त्रादिर्नवनेत्रो नमोऽन्तकः ।
षड्भिः पदैर्नमःस्वधा वषट्कारहृदादिकं ॥७

अङ्गुष्ठादिकनिष्ठान्तं न्यस्याङ्गानि जपेच्छिवां ।
एवं जपति यो गुह्यं नासौ केनापि बाध्यते ॥८

कपालं खेटकं घण्टां दर्पणं तर्ज्जनीं धनुः ।
ध्वजं डमरुकं पाशं वामहस्तेषु बिभ्रतीम् ॥९

शक्तिमुद्गरशूलानि वज्रं खड्गञ्च कुन्तकं ।
शङ्खं चक्रं शलाकां च आयुधानि च पूजयेत् ॥१

पशुञ्च काली कालीति जप्त्वा खड्गेन घातयेत् ।
कालि कालि वज्रेश्वरि लौहदण्डायै नमः ॥११

तदुत्थं रुधिरं मांसं पूतनायै च नैर्ऋते ।
वायव्यां पापराक्षस्यै चरक्यै नम ईश्वरे ॥१२

विदारिकायै चाग्नेय्यां महाकौशिकमग्नये ।
तस्याग्रतो नृपः स्नायाच्छत्रुं पिष्टमयं हरेत् ॥१३

दद्यात्स्कन्दविशाखाभ्यां ब्राह्म्याद्या निशि ता यजेत् ।
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ॥१४

दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।
देवीं पञ्चामृतैः स्नाप्य पूजयेच्चार्हणादिना ॥१५

ध्वजादिरथयात्रादिबलिदानं वरादिकृत् ।१६

इत्याग्नेये महापुराणे नवमीव्रतानि नाम पञ्चाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ पचासीवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana 185 Chapter!-In Hindi

एक सौ पचासीवाँ अध्याय नवमी तिथिके व्रत

अग्निदेव कहते हैं वसिष्ठ! अब मैं भोग और मोक्ष आदिकी सिद्धि प्रदान करनेवाले नवमी-सम्बन्धी व्रतोंका वर्णन करता हूँ। आश्विनके शुक्लपक्षमें 'गौरी-नवमी'का व्रत करके देवीका पूजन करना चाहिये। इस नवमीको 'पिष्टका- नवमी' होती है। उसका व्रत करनेवाले मनुष्यको देवीका पूजन करके पिष्टान्त्रका भोजन करना चाहिये। आश्विनके शुक्लपक्षकी जिस नवमीको अष्टमी और मूलनक्षत्रका योग हो एवं सूर्य कन्या राशिपर स्थित हों, उसे 'महानवमी' कहा गया है। वह सदा पापोंका विनाश करनेवाली है। इस दिन नवदुर्गाओंको नौ स्थानोंमें अथवा एक स्थानमें स्थित करके उनका पूजन करना चाहिये। मध्यमें अष्टादशभुजा महालक्ष्मी एवं दोनों पार्श्व-भागोंमें शेष दुर्गाओंका पूजन करना चाहिये। अञ्जन और डमरूके साथ निम्नलिखित क्रमसे नवदुर्गाओंकी स्थापना करनी चाहिये रुद्रचण्डा, प्रचण्डा, चण्डोग्रा, चण्डनायिका, चण्डा, चण्डवती, पूज्या, चण्डरूपा और अतिचण्डिका। इन सबके मध्यभागमें अष्टादशभुजा उग्रचण्डा महिषमर्दिनी दुर्गाका पूजन करना चाहिये। 'ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षसि स्वाहा।' यह दशाक्षर मन्त्र है- ॥ १-६ ॥

जो मनुष्य इस विधिसे पूर्वोक्त दशाक्षर मन्त्रका जप करता है, वह किसीसे भी बाधा नहीं प्राप्त करता। भगवती दुर्गा अपने वाम करोंमें कपाल, खेटक, घण्टा, दर्पण, तर्जनी मुद्रा, धनुष, ध्वजा, डमरू और पाश एवं दक्षिण करोंमें शक्ति, मुद्गर, त्रिशूल, वज्र, खङ्ग, भाला, अङ्कुश, चक्र तथा शलाका लिये हुए हैं। उनके इन आयुधोंकी भी अर्चना करे ॥ ७-१०॥

फिर 'कालि कालि' आदि मन्त्रका जप करके खङ्गसे पशुका वध करे। (पशुबलिका मन्त्र इस प्रकार है- 'कालि कालि वज्रेश्वरि लोहदण्डायै नमः।' बलि-पशुका रुधिर और मांस, 'पूतनाय नमः।' कहकर नैऋत्यकोणमें, 'पापराक्षस्यै नमः।' कहकर वायव्यकोणमें, 'चरक्यै नमः।' कहकर ईशानकोणमें एवं 'विदारिकायै नमः।' कहकर अग्निकोणमें उनके उद्देश्यसे समर्पित करे। राजा उसके सम्मुख स्नान करे और स्कन्द एवं विशाखके निमित्त पिष्टनिर्मित शत्रुकी बलि दे। रात्रिमें ब्राह्मी आदि शक्तियोंका पूजन करे-

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

'जयन्ती , मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, शिवा, क्षमा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।' आदि मन्त्रोंसे देवीकी स्तुति करे और देवीको पञ्चामृतसे स्नान कराके उनकी विविध उपचारोंसे पूजा करे। देवी के उद्देश्य से किया हुआ ध्वजदान, रथयात्रा एवं बलिदान- कर्म अभीष्ट वस्तु ओं की प्राप्ति कराने वाला है ॥ ११-१५॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'नवमीके व्रतोंका वर्णन' नामक एक सौ पचासौवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८५॥

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