अग्नि पुराण - एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana - 176 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana-176 Chapter!

अथ षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः - प्रतिपदा तिथि के व्रत

अग्निरुवाच

वक्ष्ये प्रतिपदादीनि व्रतान्यखिलदानि ते ।
कार्त्तिकाश्वयुजे चैत्रे प्रतिपद्ब्रह्मणस्तिथिः ॥१

पञ्चदश्यान्निराहारः प्रतिपद्यर्चयेदजं ।
ओं तत्सद्ब्रह्मणे नमो गायत्र्या वाब्दमेककं ॥२

अक्षमालां स्रुवं दक्षे वामे स्रुचं कमण्डलु।
लम्बकूर्चञ्च जटिलं हैमं ब्रह्माणमर्चयेत् ॥३

शक्त्या क्षीरं प्रदद्यात्तु ब्रह्मा मे प्रीयतामिति ।
निर्मलो भोगभुक् स्वर्गे भूमौ विप्रो धनी भवेत् ॥४

धन्यं व्रतं प्रवक्ष्यामि अधन्यो धन्यतां व्रजेत् ।
मार्गशीर्षे प्रतिपदि नक्तं हुत्वाप्युपोषितः ॥५

अग्नये नम इत्यग्निं प्रार्च्याब्दं सर्वभाग्भवेत् ।
प्रतिपद्येकभक्ताशी समाप्ते कपिलाप्रदः ॥६

वैश्वानरपदं याति शिखिव्रतमिदं स्मृतं ।७

इत्याग्नेये महापुराणे प्रतिपद्व्रतानि नाम षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana-176 Chapter!-In Hindi

एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय प्रतिपदा तिथिके व्रत
अग्निदेव कहते हैं- अब मैं आपसे प्रतिपद् आदि तिथियों के व्रतों का वर्णन करूँगा, जो सम्पूर्ण मनोरथों को देने वाले हैं। कार्तिक, आश्विन और चैत्र मास में कृष्णपक्ष की प्रतिपद् ब्रह्माजी की तिथि है। पूर्णिमा को उपवास करके प्रतिपद्‌ को ब्रह्माजी का पूजन करे। पूजा 'ॐ तत्सद्ब्रह्मणे नमः।' इस मन्त्रसे अथवा गायत्री मन्त्रसे करनी चाहिये। यह व्रत एक वर्षतक करे। ब्रह्माजीके सुवर्णमय विग्रहका पूजन करे, जिसके दाहिने हाथों में स्फटिकाक्षकी माला और सुवा हों तथा बायें हाथों में सुक् एवं कमण्डलु हों। साथ ही लंबी दाढ़ी और सिरपर जटा भी हो। यथाशक्ति दूध चढ़ावे और मनमें यह उद्देश्य रखे कि 'ब्रह्माजी मुझ पर प्रसन्न हों।' यों करने वाला मनुष्य निष्पाप होकर स्वर्ग में उत्तम  भोग भोगता है और पृथ्वी पर धनवान् ब्राह्मण के रूप में जन्म लेता है॥ १-४॥

अब 'धन्यव्रत'का वर्णन करता हूँ। इसका अनुष्ठान करने से अधन्य भी धन्य हो जाता है। पहले मार्ग शीर्ष मास की प्रतिपद्‌ को उपवास करके रात में 'अग्नये नमः।' - इस मन्त्र से होम और अग्नि की पूजा करे। इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक मास की प्रतिपद्‌ को अग्नि की आराधना करने से मनुष्य सब सुखों का भागी होता है। प्रत्येक प्रतिपदाको एकभुक्त (दिनमें एक समय भोजन करके) रहे। सालभरमें व्रतकी समाप्ति होनेपर ब्राह्मण कपिला गौ दान करे। ऐसा करनेवाला मनुष्य 'वैश्वानर' पदको प्राप्त होता है। यह 'शिखिव्रत' कहलाता है ॥ ५-७॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'प्रतिपद् व्रतोंका वर्णन नामक एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १७६ ॥

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