गोवर्धन पूजा 2024: तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, और आध्यात्मिक महत्व
गोवर्धन पूजा की तिथि
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का महापर्व मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों—जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, और मध्य प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे 'अन्नकूट' के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें भगवान को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं। इस पूजा का आरंभ ब्रज क्षेत्र में भगवान कृष्ण के समय से हुआ था, और इस दिन गौमाता की भी पूजा की जाती है।
कब है Govardhan Puja 2024
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष गोवर्धन पूजा की कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर 2024 की शाम 6:16 बजे से शुरू होकर 2 नवंबर की रात 8:21 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व 2 नवंबर को मनाया जाएगा।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
इस दिन पूजा के लिए तीन मुख्य शुभ मुहूर्त हैं:
- सुबह का मुहूर्त: 6:34 से 8:46 बजे तक
- दोपहर का मुहूर्त: 3:23 से 5:35 बजे तक
- शाम का मुहूर्त: 5:35 से 6:01 बजे तक
इन समयों के दौरान गोवर्धन पूजा करने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
कैसे मनाएं Govardhan Puja
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, फिर साफ कपड़े पहनें। घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और उसके चारों ओर ग्वालबाल, पेड़-पौधों की आकृतियां सजाएं। गोवर्धन पर्वत के बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की विधिपूर्वक पूजा करें और उन्हें पंचामृत तथा 56 भोग अर्पित करें। पूजा के अंत में अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करें।
आध्यात्मिक संदर्भ में गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा हमें स्मरण कराती है कि जीवन की सुरक्षा और उसकी सहेजने की जिम्मेदारी हमारे ही हाथों में है। श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध से गोकुलवासियों की रक्षा करते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर यह संदेश दिया था कि विपत्तियों से निपटने का सामर्थ्य मनुष्य के भीतर है। इस पर्व में यह संकल्प लिया जाता है कि प्रकृति की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि यह हमारे धर्म और संस्कृति का हिस्सा है।
गोवर्धन पूजा के दौरान की जाने वाली परिक्रमा आत्म-चिंतन का प्रतीक है, जिसमें हम प्रकृति से अपने जुड़ाव और उसमें निहित संतुलन को अनुभव करते हैं। यह पूजा हमें प्रकृति और उसके संरक्षण का महत्त्व सिखाती है, जिससे हमारे जीवन में संतुलन और समृद्धि बनी रहती है।
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