दशहरा पर श्लोक और दशहरा पर कविता,Shloka on Dussehra and poem on Dussehra

दशहरा पर श्लोक और दशहरा पर कविता

विजयादशमी और दशहरा में क्या अंतर है ?

अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन माता दुर्गा के रूप कात्यायिनी ने महिषासुर का वध किया था। इसी की याद में विजयादशमी का उत्सव यानी विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है जबकि इसी दिन जब प्रभु श्रीराम ने इसी दिन दशानन रावण का वध कर दिया तो इस दिन को दशहरा भी कहा जाने लगा।

दशहरा पर श्लोक और दशहरा पर कविता

कवन सो काज कठिन जग माहीं। 
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहिं॥

राम काज लगि तव अवतारा। 
सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥

जेम नर सुनहि जे गावहिं ।
सुख सम्पति नाना बिधि पावहिं।। 

'जिमी सागर सागर महुं जाहि।'
जद्यपि ताहि कामना नहीं।।

तिमि सुख संपति बिनहिं बोलै।
धर्मसिल पहिं जाहिं सुभाँ।।

हनुमान तेहि परसा करपुनि कीन्ह प्रणाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहा बिश्राम॥

दशहरा पर कविता

विजयादशमी विजय का, पावन है त्योहार।
जीत हो गयी सत्य की, झूठ गया है हार।।
रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार।
लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।।
विजयादशमी ने दिया, हम सबको उपहार।
अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।।
मनसा-वाता-कर्मणा, सत्य रहे भरपूर।
नेक नीति हो साथ में, बाधाएं हों दूर।।
पुतलों के ही दहन का, बढ़ने लगा रिवाज।
मन का रावण आज तक, जला न सका समाज।।
राम-कृष्ण के नाम धर, करते गन्दे काम।
नवयुग में तो राम का, हुआ नाम बदनाम।।
आज धर्म की ओट में, होता पापाचार।
साधू-सन्यासी करें, बढ़-चढ़ कर व्यापार।।
आज भोग में लिप्त हैं, योगी और महन्त।
भोली जनता को यहां, भरमाते हैं सन्त।।
जब पहुंचे मझधार में, टूट गयी पतवार।
कैसे देश-समाज का, होगा बेड़ा पार।।

विजयादशमी के दिन इस मंत्र का करें जाप

  • ‘ओम दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात’

मान्यता के मुताबिक इस दिन भगवान राम और माता सीता की विधिवत पूजा-अर्चना करने और इस मंत्र का जाप करने से जातक को सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इसके साथ ही दशहरे पर सुंदरकांड का पाठ घर में करने या फिर करवाने से सभी बीमारियों और मानसिक समस्याएं दूर होती है और जातक के जीवन से सभी मुश्किलें दूर हो जाती है।

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