नवरात्रि के नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा: एक आध्यात्मिक यात्रा

नवरात्रि के नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा: एक आध्यात्मिक यात्रा

नवरात्रि का पर्व हर साल भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना होती है। नवरात्रि के नवमी के दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन मां के अंतिम स्वरूप की पूजा होती है, जब भक्त उन्हें विदाई देते हैं।

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप

माँ सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है और वह कमल के फूल पर है। दाहिनी ओर, नीचे वाले हाथ में चक्र और ऊपर वाले हाथ में गदा है, जबकि बायीं ओर, नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। उनकी यह छवि बेहद मोहक है और उनके कृपापात्रों से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

पूजा का महत्व

नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा से भक्तों को यश, बल और धन की प्राप्ति होती है। इस दिन कन्याओं की पूजा की जाती है, जीवन में सकारात्मकता लाने का प्रयास किया जाता है।

कन्या पूजा

इस दिन छोटी-छोटी लड़कियों को मां का रूप देकर उनकी पूजा की जाती है। उन्हें उपहार देना आशीर्वाद प्राप्त करने की परंपरा है। अगर किसी कारणवश कंजक न मिले तो गोमाता के प्रसाद के लिए कंजकों की पूजा का फल भी प्राप्त किया जा सकता है।

परोपकार का महत्व

नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, भक्तों की मदद की भी आवश्यकता है।
यदि संभव हो तो आपदा के समय गरीबों की सहायता करें। गाय आदि को भी प्रसाद खिला सकते हैं।

दान और सेवा

परोपकार सबसे बड़ी सेवा है। आप अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों को दान देकर उनकी सहायता कर सकते हैं। यह केवल आपके लिए नहीं है, बल्कि समाज के लिए भी मूल्यवान है।

मां सिद्धिदात्री की कथा

मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से से मनुष्य को कर्मों से लडऩे की शक्ति प्राप्त होती है। देवी सिद्धिदात्री की पूजा करने से मनुष्य के जीवन की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है। मां कमल के आसन पर विराजमान है उनके पास हाथों में कमल, शंख गदा, सुदर्शन चक्र है जो जीवन में सही मार्ग की और अग्रसर करते हैं। नवमी के दिन मां की आराधना से यश, बल व धन की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा करने से अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता प्राप्त होती है और जीवन में अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
भगवान शिव ने भी मां सिद्धिदात्री की ही उपासना की थी। जिसके बाद उनका आधा शरीर देवी का हो गया था। आधा शरीर नर और आधा शरीर नारी का होने के कारण ही इन्हें अर्धनारीश्वर भी कहा गया। मां सिद्धिदात्री को सिंह पर सवारी करने वाली, चतुर्भुज तथा सर्वदा प्रसन्न रहने वाली है। मां की उपासना करने से भक्तों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष मिलता है। देवी ने सफेद रंग के वस्त्र धारण कर रखे हैं और वह अपने भक्तों को ज्ञान देती हैं। मां की हमेशा उपासना करने से अमृत पद की प्राप्ति होती है।

विशेष ध्यान

भगवान शिव ने भी मां सिद्धिदात्री की पूजा की थी, जिससे उनका आधा शरीर देवी का हो गया था। इसी कारण से उन्हें अर्धनारीश्वर कहा जाता है। माँ सिद्धिदात्री की आराधना करने से भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मां सिद्धिदात्री के मंत्र

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥

यह मंत्र मां सिद्धिदात्री को समर्पित है, जो सभी प्रकार के मनोरथों को पूरा करने वाली और यश प्रदान करने वाली हैं। नवरात्रि के नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा का केवल आध्यात्मिक महत्व नहीं है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता और लाभ लाने का भी एक माध्यम है। इस दिन की आराधना से आशीर्वाद प्राप्त करके हम अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।

टिप्पणियाँ