वाराणसी के अलईपुर में माँ शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर,Varanasi ke Alaipur Me Maa Shailputri ka praacheen mandir

वाराणसी के अलईपुर में माँ शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर

शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर

नवरात्र का पहला दिन शैलपुत्री का माना जाता है। इसी तरह शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर पूरे भारत में फेमस है। वाराणसी की पहचान प्राचीन काल से ही 'मंदिरों के शहर' के रूप में रही है। वाराणसी के अलईपुर में मां शैलपुत्री का यह प्राचीन मंदिर है 
मां शैलपुत्री का यह प्राचीन मंदिर भक्तों के लिए अत्यंत श्रद्धा का केंद्र है। इस मंदिर में मां शैलपुत्री स्वयं विराजमान हैं, जो वासंती और शारदीय नवरात्र के पहले दिन भक्तों को साक्षात दर्शन देती हैं। माता के पहले रूप के नाम वाला यह मंदिर बेहद प्राचीन है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यही मां शैलपुत्री का पहला मंदिर है। हर साल नवरात्रि शुरू होने के पहले दिन इस मंदिर में तिल रखने तक की जगह नहीं होती है। मान्यता है कि इस दिन सुहागिन महिलाएं विशेष रूप से आती हैं, अपनी सुहाग की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मां से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। वे लाल चुनरी, लाल फूल, नारियल और सुहाग का सामान चढ़ाते हैं।

मंदिर से जुड़ी कथा

मंदिर से जुड़ी कथा अनुसार - मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं एक बार की बात है जब माता किसी बात पर भगवान शिव से नाराज हो गई और कैलाश से काशी आ गईं इसके बाद जब भोलेनाथ उन्हें मनाने आए तो उन्होंने महादेव से आग्रह करते हुए कहा कि यह स्थान उन्हें बेहद प्रिय लगा लग रहा है और वह वहां से जाना नहीं चाहती जिसके बाद से माता यहीं विराजमान हैं माता के दर्शन को आया हर भक्त उनके दिव्य रूप के रंग में रंग जाता है।

यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर माता शैलपुत्री की तीन बार आरती होने का साथ-साथ तीन बार सुहाग का सामान भी चढ़ता है। भगवती दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। हिमालय के यहां जन्म लेने से उन्हें शैलपुत्री कहा गया। इनका वाहन वृषभ है।उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। इन्हें पार्वती का स्वरूप भी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी।

माता के कई नाम

माता शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित दिखता है। माता के इसी रूप को प्रथम दुर्गा भी कहते हैं। सती के नाम से भी इन्हें ही जाना जाता है। माता शैलपुत्री रूप का महत्व और शक्ति अनंत है। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी रूप के अन्य नामों में से एक हैं।

माता शैलपुत्री की आराधना के वक़्त जातक को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। 

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

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