त्रिपुर भैरवी सहस्त्रनाम स्तोत्र,Tripura Bhairavi Sahastranam Stotra

त्रिपुर भैरवी सहस्रनाम स्तोत्र

त्रिपुर भैरवी के सहस्र नामावली के स्तोत्र को सहस्रनाम स्त्रोत्रम कहते हैं. इसका इस्तेमाल तांत्रिक पद्धति से पूजा करते समय किया जाता है भैरवी, हिंदुओं की एक देवी हैं और दशमहाविद्याओं में से एक हैं उन्हें माता पार्वती का अवतार माना जाता है. शास्त्रों में माता त्रिपुर भैरवी को मां काली का ही स्वरूप माना गया है 

त्रिपुर भैरवी की पूजा के लिए, इन बातों का ध्यान रखें: 

  • पूजा एकांत में करनी चाहिए. 
  • स्नान करने के बाद लाल रंग के वस्त्र पहनकर पूर्व दिशा की तरफ़ मुंह करके बैठें. 
  • लाल रंग के आसन पर बैठकर पूजा करें. 
  • एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं. 
  • थाली में रोली से त्रिकोण बनाकर उस पर त्रिपुर भैरवी यंत्र रखें.

त्रिपुर भैरवी सहस्त्रनाम स्तोत्र,Tripura Bhairavi Sahastranam Stotra

॥ महाकालभैरव उवाच ॥ 

अथ वक्ष्ये महेशानि देव्या नाम सहस्त्रकम् । 
यत्प्रसादान्महादेवि चतुर्वर्गफलं लभेत् ॥१ ॥
सर्वरोगप्रशमनं सर्वमृत्युविनाशनम् ।
सर्वसिद्धिकरं स्तोत्रं नातः पर तरः स्तवः ॥२॥
नातः परतरा विद्यातीर्थं नातः परं स्मृतम्।
यस्यां सर्वं समुत्पन्नं यस्यामद्यापि तिष्ठति ॥३ ॥
क्षयमेष्यति तत्सर्वं लयकाले महेश्वरि।
नमामि त्रिपुरां देवीं भैरवीं भयमोचिनीम्। 
सर्वसिद्धिकरीं साक्षान्महापातकनाशिनीम्॥४॥

विनियोगः 

ॐ अस्य श्रीत्रिपुरभैरवी सहस्रनामस्तोत्रस्य भगवान् ऋषिः। पंक्तिश्छंदः। आद्या शक्तिः। भगवती त्रिपुरभैरवी देवता । सर्वकामार्थसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ॐ त्रिपुरा परमेशानी योगसिद्धिनिवासिनी। 
सर्वमन्त्रमयी देवी सर्वसिद्धिप्रवर्तिनी ॥१॥

सर्वांधारमयी देवी सर्वसम्पत्प्रदा शुभा। 
योगिनी योगमाता च योगसिद्धि प्रवर्तिनी ॥२॥

योगिध्येया योगमयी योगियोगनिवासिनी। 
हेला लीला तथा क्रीडा कालरूपप्रवर्तिनी ॥३ ॥

कालमाता कालरात्रिः काली कमलवासिनी। 
कमला कांतिरूपा च कामराजेश्वरी क्रिया ॥४॥

कटुः कपटकेशा च कपटा कुटिलाकृतिः। 
कुमुदा चर्चिका कांतिः कालरात्रिप्रिया सदा ॥५ ॥

घोराकारा घोरतरा धर्माधर्म्मप्रदामतिः । 
घण्टाघर्घरदा घण्टा घण्टानादप्रिया सदा ॥६ ॥

सूक्ष्मा सूक्ष्मतरा स्थूला अतिस्थूला सदामतिः। 
अतिसत्या सत्यवती सत्यसङ्केत वासिनी ॥७॥

क्षमा भीमा तथाऽभीमाभीमनाद प्रवर्तिनी। 
भ्रमरूपा भयहरा भयदा भयनाशिनी ॥८ ॥

श्मशानवासिनी देवी श्मशानालयवासिनी । 
शवासना शवाहारा शवदेहा शिवाऽशिवा ॥९॥

कंठदेशशवाहारा शवकंकणधारिणी। 
दंतुरा सुदंती सत्या सत्यसंकेतवासिनी ॥१०॥

सत्यदेहा सत्यहारा सत्यवादनिवासिनी । 
सत्यालया सत्यसंगा सत्यसंगरकारिणी ॥११॥

असंगसंगरहिता सुसंगासंगमोहिनी । 
माया मतिर्महामाया महामखविलासिनी ॥१२॥

गलद्रुधिरधारा च मुखद्वयनिवासिनी । 
सत्यायासा सत्यसंगा सत्यसंगतिकारिणी ॥१३॥

असंगा संगनिरता सुसंगा संगवासिनी। 
सदासत्या महासत्या मांसपाशा सुमांसका ॥१४ ॥

मांसाहारा मांसथरा मांसाशी मांसभक्षका। 
रक्तपाना रक्तरुचिरारक्ता रक्तवल्लभा ॥१५ ॥

रक्ताहारा रक्तप्रिया रक्तनिन्दकनाशिनी । 
रक्तपानप्रिया - बाला रक्तदेशा सुरक्तिका ॥१६ ॥
स्वयंभूकुसुमस्था च स्वयंभूकुसुमोत्सुका । 
स्वयंभूकुसुमाहारा स्वयंभूनिन्दकासना ॥१७॥
स्वयंभूपुष्पकप्रीता स्वयंभूपुष्पसम्भवा । 
स्वयंभूपुष्पहाराढ्या स्वयंभूनिन्दकांतका ॥१८ ॥

कुण्डगोल विलासा च कुण्डगोलसदामतिः । 
कुण्डगोलप्रियकरी कुण्डगोलसमुद्भवा ॥१९॥

शुक्रात्मिका शुक्रकरा सुशुक्रा च सुशुक्तिका। 
शुक्रपूजकपून्या च शुक्रनिन्दकनिन्दका ॥२०॥

रक्तमाल्या रक्तपुष्या रक्तपुष्पकपुष्पका । 
रक्तचन्दनसिक्तांगी रक्तचन्दननिन्दका ॥२१॥

मत्स्या मत्स्यप्रिया मान्या मत्यभक्षा महोदया। 
मत्स्याहारा मत्स्यकामा मत्स्यनिन्दकनाशिनी ॥२२ ॥

केकराक्षी तथा कूरा क्रूरसैन्यविनाशिनी। 
क्रूरांगी कुलिशांगी च चक्रांगी चक्रसम्भवा ॥२३॥

चक्रदेहा चक्रहारा चक्रकंकाल वासिनी। 
निघ्ननाभिर्भीतिहरा भयदा भयहारिका ॥२४ ॥

भयप्रदा भया भीता अभीमा भीमनादिनी। 
सुन्दरी शोभना सत्या क्षेम्या क्षेमकरी तथा ॥२५ ॥

सिन्दूराञ्चितसिन्दूरा सिन्दूरसदृशाकृतिः। 
रक्तारंजितनासा च सुनासा निम्ननासिका ॥२६ ॥

खर्वा लम्बोदरी दीर्घा दीर्घघोणा महाकुचा। 
कुटिला चञ्चला चण्डी चण्डनाद प्रचण्डिका ॥२७॥

अतिचण्डा महाचण्डा श्रीचण्डा चण्डवेगिनी। 
चाण्डाली चण्डिका चण्डशब्दरूपा च चञ्चला ॥२८ ॥

चम्पा चम्पावती चोस्ता तीक्ष्णतीक्ष्णा प्रिया क्षतिः। 
जलदा जयदा योगा जगदानन्दकारिणी ॥२९ ॥

जगद्वन्द्या जगन्माता जगती जगतः क्षमा। 
जन्या जयजनेत्री च जयिनी जयदा तथा ॥३० ॥

जननी च जगद्धात्री जयाख्या जयरूपिणी। 
जगन्माता जगन्मान्या जयश्रीर्जयकारिणी ॥३१ ॥

जयिनी जयमाला च जया च विजया तथा। 
खड्गिनी खड्गरूपा च सुसंगा खड्गधारिणी ॥३२॥

खड्गरूपा खड्गकरा खड्गिनी खड्गवल्लभा । 
खड्गदा खड्ङ्गभावा च खड्गदेहसमुद्भवा ॥३३॥

खड्गा खड्गधरा खेला खड्रिङ्गनी खड्गमण्डिनी। 
शंखिनी चापिनी देवी वत्रिणी शूलिनी मतिः ॥३४॥

बलिनी भिन्दिपाली च पाशिनी चांकुशी शरी। 
धनुषी चटकी चम्मांदंती च कर्णनालिकी ॥ ३५ ॥

मुसली हलरूपा च तूणीरगणनासिनी । 
तूणालया तूणहरा तूणसंभवरूपिणी ॥३६ ॥

सुतूणी तूणखेदा च तूणांगी तूणवल्लभा । 
नानास्त्रधारिणी देवी नानाशस्त्रसमुद्भवा ॥३७॥

लाक्षा लक्षहरा लाभा सुलाभा लाभनाशिनी। 
लाभहारा लाभकरा लाभिनी लाभरूपिणी ॥३८ ॥

धरित्री धनदा धान्या धान्यरूपा धरा धनुः । 
धुरशब्दा धुरा मान्या धरांगी धननाशिनी ॥३९॥

धनहा धनलाभा च धनलभ्या महाधनुः । 
अशांता शान्तिरूपा च श्वासमार्गनिवासिनी ॥४०॥

गगणा गणसेव्या च गणांगा वागवालभा। 
गणदा गणहा गम्या गमनागमसुन्दरी ॥४१ ॥

गम्यदा गणनाशी च गदहा गदवर्द्धिनी। 
स्थैर्यां च स्थैर्व्यनाशा च स्थैर्यातकारिणी कुला ॥४२ ।।

दात्री कीप्रिया प्रेमा प्रियदा प्रियवर्द्धिनी। 
प्रियहा प्रियभव्या च प्रियप्रेमांचिपा तनुः ॥४३ ॥

प्रियजा प्रियभव्या च प्रियस्था भवनस्थिता। 
सुस्थिरा स्थिररूपा च स्थिरदा स्थैर्व्यवर्हिणी ॥४३॥

चञ्चला चपला चोला चपलांगनिवासिनी। 
गौरी काली तथा च्छित्रा माया मायाहरप्रिया ॥४५ ॥

सुन्दरी त्रिपुरा भव्या त्रिपुरेश्वरवासिनी । 
त्रिपुरनाशिनी देवी त्रिपुरप्राणहारिणी ॥४६ ॥

भैरवी भैरवस्था च भैरवस्य प्रिया तनुः । 
भवांगी भैरवाकारा भैरवप्रियवाङ्गभा ॥४७ ।

कालदा कालरात्रिश्च कामा कात्यायनी क्रिया । 
क्रियदा क्रियहा क्लैव्या प्रियप्राणक्रिया तथा ॥४८ ॥

क्रींकारी कमला लक्ष्मीः शक्तिः स्वाहा विभुः प्रभुः। 
प्रकृतिः पुरुषश्चैव पुरुषा पुरुषाकृतिः ॥४९ ।।

परमः पुरुषश्चैव माया नारायणी मतिः । 
ब्राह्मी महेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा ॥५०॥

वाराही चैव चामुण्डा इन्द्राणी हरवाइभा। 
भार्गी माहेश्वरी कृष्णा कात्यायन्यपि पूतना ॥५१॥

राक्षसी डाकिनी चित्रा विचित्रा विभ्रमा तथा। 
हाकिनी राकिनी भीता गंधर्वा गंधवाहिनी ॥५२॥

केकरी कोटराक्षी च निर्मासा लूकमांसिका। 
ललजिह्वा सुजिह्वा च बालदा बालदायिनी ॥५३॥

चन्द्रा चन्द्रप्रभा चान्द्री चन्द्रकांतिसुतत्परा । 
अमृता मानदा पूषा तुष्टिः पुष्टी रतिधृतिः ॥५४॥

शशिनी चन्द्रिका कांतिज्योंत्ना श्रीः प्रीतिरंगदा । 
पूर्णा पूर्णामृता कल्पलतिका कल्पदानदा ॥५५॥

सुकल्पा कल्पहस्ता च कल्पवृक्षकरी हनुः। 
कल्पाख्या कल्पभव्या च कल्पानन्दकवन्दिता ॥५६॥

सूचीमुखी प्रेतमुखी च उल्कामुखी महामुखी। 
उग्रमुखी च सुमुखी काकास्या विकटानना ॥५७॥

कृकलास्या च संध्यास्या मुकुलीशा रमाकृतिः। 
नानामुखी च नानास्या नानारूपप्रधारिणी ॥५८ ॥

विश्वाच्यां विश्वमाता च विश्वाख्या विश्वभाविनी। 
सूर्य्या सूर्य्यप्रभा शोभा सूर्य्यमण्डलसंस्थिता ॥५९॥

सूर्य्यकांतिः सूर्खकरा सूय्यांख्या सूर्य्यभावना। 
तपिनी तापिनी धूम्रा मरीचिर्चालिनी रुचिः ॥६०॥

सुरदा भोगदा विश्वा बोधिनी धारिणी क्षमा। 
युगदा योगहा योग्या योग्यहा योगवर्द्धिनी ॥६१ ॥

वह्निमण्डलसंस्था च वह्निमण्डलमध्यगा । 
वह्निमण्डलरूपा च वह्निमण्डलसंज्ञका ॥६२॥

वह्नितेजा वह्निरागा वहिदा वह्निनाशिनी। 
वह्निक्रिया वह्निभुजा कला वह्निस्थिता सदा ॥६३॥

धूप्रार्चिषा चोज्वलिनी तथा वै विस्फुलिंगिनी। 
शूलिनी वै स्वरूपा च कपिला हव्यवाहिनी ॥६४॥

नानातेजस्विनी देवी परब्रह्मकुटुम्बिनी। 
ज्योतिर्ब्रह्ममयी देवी परब्रह्मस्वरूपिणी ॥६५ ॥

परमात्मा परा पुण्या पुण्यदा पुण्यवर्द्धिनी। 
पुण्यदा पुण्यनाम्नी च पुण्यगंधा प्रिया तनुः ॥६६ ॥

पुण्यदेहा पुण्यकरा पुण्यनिन्दकनिन्दका । 
पुण्यकालकरा पुण्या सुपुण्या पुण्यमालिका ॥६७॥

पुण्यखेला पुण्यकेली पुण्यनामसमा पुरा। 
पुण्यखेल्या पुराणपुण्यवल्लभा ॥ ६८ ॥

पुरुषा पुरुषप्राणा पुरुषात्मस्वरूपिणी। 
पुरुषांगी च पुरुषी पुरुषस्य कला सदा ॥६९ ॥

सुपुष्या पुष्पकप्राणा पुष्पहा पुष्पवल्लभा । 
पुष्पप्रिया पुष्पहारा पुष्पवन्दकवन्दका ॥७०॥

पुष्पहा पुष्पमाला च पुष्पनिन्दकनाशिनी। 
नक्षत्रप्राणहंत्री च नक्षत्रालक्ष्यवन्दका ॥७१॥

लक्षमाल्या लक्षहारा लक्ष्यालक्ष्यस्वरूपिणी। 
नक्षत्राणी सुनक्षत्रा नक्षत्राहा महोदया ॥७२॥

महामाल्या महामान्या महती मातृपूजिता। 
महामहाकनीया च महाकालेश्वरी महा ॥७३॥

महास्या वन्दनीया च महाशब्दनिवासिनी। 
महाशंखेश्वरी मीना मत्स्यगंधा महोदरी ॥७४॥

लम्बोदरी च लम्बोष्ठी लम्बनिम्नतनूदरी। 
लम्बोष्ठी लम्बनासा च लम्बघोणा ललत्सुका ॥७५॥

अतिलम्बा महालम्बा सुलम्बा लम्बवाहिनी। 
लम्बाई लम्बशक्तिश्च लम्बस्था लम्बपूर्विका ॥७६ ॥

चतुर्घण्टा महाघण्टा घण्टानाद प्रिया सदा। 
वाद्यप्रिया वाद्यरता सुवाद्या वाद्यनाशिनी ॥७७॥

रमा रामा सुबाला च रमणीयस्वभाविनी। 
सुरम्या रम्यदा रम्भा रम्भोरू रामवल्लभा ॥७८॥

कामप्रिया कामकरा कामांगी रमणी रतिः। 
रतिप्रिया रतिरती रतिसेव्या रतिप्रिया ॥७९ ॥

सुरभिः सुरभीशोभा दिक्शोभाऽशुभनाशिनी। 
सुशोभा च महाशोभाऽतिशोभा प्रेततापिनी ॥८०॥

लोभिनी च महालोभा सुलोभा लोभवर्द्धिनी। 
लोभांगी लोभवंद्या च लोभाही लोभवासका ॥८१॥

लोभप्रिया महालोभा लोभनिन्दकनिन्दका। 
लोभांगवासिनी गंधा विगंधा गंधनाशिनी ॥८२॥

गंधाङ्गी गंधपुष्टा च सुगंधा प्रेमगंधिका। 
दुर्गंधा पूतिगंधा च विगंधा चातिगंधिका ॥८३॥

पद्मांतिका पद्मवहा पद्मप्रियप्रियंकरी । 
पद्मनिन्दकनिन्दा च पद्मसंतोषवाहना ॥८४॥

रक्तोत्पलवरा देवी रक्तोत्पलप्रिया सदा। 
रक्तोत्पलसुगंधा व रक्तोत्पलनिवासिनी ॥८५ ॥

रक्तोत्पलमहामाला रक्तोत्पलमनोहरा ।
रक्तोत्पलसुनेत्रा च रक्तोत्पलस्वरूपधृक् ॥८६॥

वैष्णवी विष्णुपूज्या च वैष्णवांगनिवासिनी। 
विष्णुपूजकपूज्या च वैष्णवे संस्थिता तनुः ॥८७॥

नारायणस्य देहस्था नारायण मनोहरा । 
नारायणस्वरूपा च नारायणमनः स्थिता ॥८८॥

नारायणांगसम्भूता नारायणप्रिया तनुः। 
नारी नारायणी गण्या नारायणगृहप्रिया ॥८९॥

हरपूज्या हरश्रेष्ठा हरस्य - वल्लभा क्षमा । 
संहारी हरदेहस्था हरपूजनतत्परा ॥९०॥

हरदेहसमुद्धता हरांगवासिनी कुडूः । 
हरपूजकपूज्या च हरवन्दकतत्परा ॥११॥

हरदेहसमुत्पन्ना हरक्रीडासदागतिः। 
सुगणा संगरहिता असंगा संगनाशिनी ॥९२॥

निर्जना विजना दुर्गा दुर्गक्लेशनिवारिणी। 
दुर्गदेहांतका दुर्गारूपिणी दुर्गतस्थिता ॥९३ ॥

प्रेतप्रिया प्रेतकरा प्रेतदेहसमुद्भवा । 
प्रेतांगवासिनी प्रेता प्रेतदेहविमर्दिका ॥९४॥

डाकिनी योगिनी कालरात्रिः कालप्रिया सदा। 
कालरात्रिहरा काली कृष्णदेहा महातनुः ॥९५ ॥

कृष्णांगी कुटिलांगी च वज्रांगी वज्ररूपधृक् । 
नानादेहधरा धन्या षट्चक्रक्रमवासिनी ॥९६ ॥

मूलाधारनिवासा च मूलाधारस्थिता सदा। 
वायुरूपा महारूपा वायुमार्गनिवासिनी ॥९७॥

वायुयुक्ता वायुकरा वायुपूरकपूरका । 
वायुरूपधरा देवी सुषुम्नामार्गगामिनी ॥९८ ॥

देहस्था देहरूपा च देहध्येया सुदेहिका। 
नाडीरूपा महीरूपा नाडीस्थाननिवासिनी ॥९९॥

इडा च पिंगला चैव सुषुम्नामध्यवासिनी। 
सदाशिवप्रियकरी मूलप्रकृतिरूपधृक् ॥१००॥

अमृतेशी महाशाली श्रृंगारांगनिवासिनी। 
उत्पत्तिस्थितिसंहारिप्रलया - पदवासिनी ॥१०१ ॥

महाप्रलययुक्ता च सृष्टिसंहारकारिणी। 
स्वधा स्वाहा हव्यवाहा हव्या हव्यप्रिया सदा ॥१०२॥

हव्यस्था हव्यभक्षा च हव्यदेहसमुद्भवा । 
हव्यक्रीडा कामधेनुस्वरूपा रूपसम्भवा ॥१०३॥

सुरभिर्नन्दिनी पुण्या यज्ञांगी यज्ञसंभवा । 
यज्ञस्था यज्ञदेहा च योनिजा योनिवासिनी ॥१०४॥

अयोनिजा सती सत्या असती कुटिला तनुः। 
अहल्या, गौतमी गम्या विदेहा देहनाशिनी ॥१०५ ॥

गांधारी द्रौपदी दूती शिवप्रिया त्रयोदशी। 
पौर्णमासी पञ्चदशी पञ्चमी च चतुर्दशी ॥१०६ ॥

षष्ठी च नवमी चैव अष्टमी दशमी तथा। 
एकादशी द्वादशी च द्वाररूपाऽभयप्रदा ॥१०७॥

संक्रांतिः सामरूपा च कुलीना कुलनाशिनी। 
कुलकांता कृशा कुम्भा कुम्भदेहविवर्द्धिनी ॥१०८ ॥

विनीता कुलवत्यर्थां अंतरी चानुगाप्युषा। 
नदीसागरदा शान्तिः शान्तिरूपा सुशान्तिका ॥१०९ ॥

आशा तृष्णा क्षुधा क्षोभ्या क्षोभरूपनिवासिनी। 
गङ्गासागरगा कांतिः श्रुतिः स्मृतिर्द्धतिर्मही ॥११०॥

दिवा रात्रिः पंचभूतदेहा चैव सुदेहिका । 
तण्डुला च्छिन्नमस्ता च नागयज्ञोपवीतिनी ॥१११ ॥

वर्णिनी डाकिनी शक्तिः कुरुकुल्ला सुकुालका। 
प्रत्यंगिराऽपरा देवी अजिता जयदायिनी ॥११२॥

जया च विजया चैव महिषासुरघातिनी। 
मधुकैटभहंत्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥११३॥

निशुंभशुभहननी रक्तबीजक्षयंकरी। 
काशी काशीनिवासा च मधुरा पार्वती परा ॥११४॥

अपर्णा चण्डिका देवी मृडानी चाम्बिका कला। 
शुक्ला कृष्णा वर्ण्यवर्णा शरदिन्दुकलाकृतिः ॥११५ ॥

रुक्मिणी राधिका चैव भैरव्याः परिकीर्तितम्। 
अष्टाधिकसहस्रं तु देवीनामानुकीर्त्तनात् ॥११६ ॥

महापातकयुक्तोऽपि मुच्यते नात्र संशयः। 
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वगनागमः ॥११७॥

महापातक कोट्यस्तु तथा चैवोपपातकम्। 
स्तोत्रेण भैरवोक्तेन सर्वनश्यति तत्क्षणात् ॥११८ ॥

सर्वं वा श्रोकमेकं वा पठनात्स्मरणादपि । 
पठेद्वा पाठयेद्वापि सद्या मुच्येत बन्धनात् ॥११९ ॥

राजद्वारे रणे दुर्गे संकटे गिरिदुर्गमे। 
प्रांतरे पर्वते वापि नौकायां वा महेश्वरि ॥१२०॥

वह्निदुर्गभये प्राप्ते सिंहव्याघ्नभयाकुले। 
पठनात् स्मरणान्मत्यों मुच्यते सर्वसंकटात् ॥१२१॥

अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान्भवेत्। 
सर्वशास्त्रपरो विप्रः सर्वयज्ञफलं लभेत् ॥१२२॥

अग्निवायुजलस्तंभं गतिस्तंर्भ विवस्वतः । 
मारणे द्वेषणे चैव तथोच्चाटे महेश्वरि ॥१२३॥

गोरोचनाकुंकुमेन लिखेत्स्तोत्रमनन्यधीः। 
गुरुणा वैष्णवैर्वापि सर्वयज्ञफलं लभेत् ॥१२४॥

वशीकरणमंत्रैर्वा जायंते सर्वसिद्धयः । 
प्रातःकाले शुचिर्भूत्वा मध्याहे च निशामुखे ॥१२५ ॥

पठेद्वा पाठयेद्वापि सर्वयज्ञफलं लभेत्। 
वादी मूको भवेदुष्टो राजा च सेवको यथा ॥१२६ ॥

आदित्यमंगलदिने गुरौ वापि महेश्वरि। 
गोरोचनाकुंकुमेन लिखेत्स्तोत्रमनन्यधीः ॥१२७॥

धृत्वा सुवर्णमध्यस्थं सर्वान् कामानवाप्नुयात्। 
स्त्रीभिर्वामकरे धार्यं पुंभिर्दक्षकरे तथा ॥१२८॥

आदित्यमंगलदिने गुरौ वापि महेश्वरि। 
शनैश्चरे लिखेद्वापि सर्वासिद्धिं लभेक्षुवम् ॥१२९॥

प्रांतरे वा श्मशाने वा निशायामर्द्धरात्रके। 
शून्यागारे च देवेशि लिखेद्यलेन साधकः ॥१३०॥

सिंहराशी गुरुगते कर्कटस्थे दिवाकरे। 
मीनराशौ गुरुगते लिखेद्यलेन साधकः ॥१३१ ॥

रजस्वलाभगं दृष्ट्वा तत्रस्थो विलिखेत्सदा। 
सुगंधिकुसुमैः शुक्लैः सुगन्धिगंधचन्दनैः ॥१३२॥

मृगनाभि - मृगमदैर्विलिखेद्यत्नपूर्वकम् । 
लिखित्वा च पठित्वा च धारयेच्चाप्यनन्यधीः ॥१३३ ॥

कुमारी पूजयित्वा च नारीश्चापि प्रपूजयेत्। 
पूजयित्वा च कुसुमैर्गंधचन्दन वस्त्रकैः ॥१३४॥

सिन्दूररक्तकुसुमैः पूजयेद्भक्तियोगतः। 
अथवा पूजयेद्देवि कुमारीर्देश नान्यधीः ॥१३५ ॥

सर्वाभीष्टफलं तत्र लभते तत्क्षणादपि। 
नात्र सिद्धयाद्यपेक्षास्ति न वा मित्रारिदूषणम् ॥१३६ ॥

न विचायं च देवेशि जपमात्रेण सिद्धिदम्। 
सर्वदा सर्वकालेषु षट्‌साहस्त्रप्रमाणतः ॥१३७ ॥

बलिं दत्त्वा विधानेन प्रत्यहं पूजयेच्छिवाम्। 
स्वयंभूकुसुमैः पुष्यैर्वलिदानं दिवानिशम् ॥१३८ ॥

पूजयेत्पार्वतीं देवीं भैरवीं त्रिपुरात्मिकाम्। 
ब्राह्मणान्भोजयेन्नित्यं दश वा द्वादशं तथा ॥१३९॥

अनेन विधिना देवि बालां नित्यं प्रपूजयेत्। 
मासमेकं पठेद्यस्तु त्रिसंध्यं विधिनाऽमुना ॥१४० ॥

अपुत्रो लभते पुत्रं निर्द्धनो धनवान्भवेत्। 
सदा चानेन विधिना तथा मासत्रयेण च ॥१४१ ॥

कृतकार्यों भवेद्देवि तथा मासचतुष्टये। 
दीर्घरोगात्प्रमुच्येत पञ्चमे कविराड् भवेत् ॥१४२ ॥

सर्वैश्वर्यं लभेद्देवि मासषट्‌के तथैव च। 
सप्तमे खेचरत्वं च अष्टमे च बृहद्युतिः ॥१४३ ॥

नवमे सर्वसिद्धिः स्याद्दशमे लोकपूजितः। 
एकादशे राजवश्यो द्वादशे तु पुरन्दरः ॥१४४॥

वारमेकं पठेद्यस्तु प्राप्नुयात् पूजने फलम् । 
समग्रं श्रोकमेकं वा यः पठेत्प्रयतः शुचिः ॥१४५ ॥

स पूजाफलमाप्नोति भैरवेण च भाषितम्। 
आयुष्मत्प्रीतियोगे च ब्राहीन्द्रे च विशेषतः ॥१४६॥

पंचम्यां च तथा षष्ठ्यां यत्र कुत्रापि तिष्ठति। 
शंका न विद्यते तत्र न च मायादिदूषणम् ॥१४७ ॥

वारमेकं पठेन्मत्यों मुच्यते सर्वसंकटात् । 
किमन्य‌द्बहुना देवि सर्वाभीष्टफलं भवेत् ॥१४८ ॥

॥ इति श्रीविबसारे महाकालविरचितं श्रीमत्त्रिपुर भैरवी सहस्रनाम स्तोत्रं समाप्तम् ॥
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