श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र,Sri Bhuvaneshwari Ashtottara Shatnam Stotra

श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

हिंदू मान्यता के अनुसार 10 महाविद्या में मां भुवनेश्वरी चौथी देवी हैं, जिनकी विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति को मनचाहा वरदान प्राप्त होता है. हिंदू मान्यता के अनुसार देवी भुवनेश्वरी पूरे ब्रह्मांड को चलाने वाली परम सत्ता हैं. देवी दुर्गा का बेहद सौम्य अवतार मानी जाने वाली इस देवी की पूजा शीघ्र फलदायी मानी गई है

श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र,Sri Bhuvaneshwari Ashtottara Shatnam Stotra

कैलाश शिखरे रम्ये नानारत्नोप शोभिते। 
नर-नारी हितार्थाय शिवं पप्रच्छ पार्वती ॥

॥ देव्युवाच ॥

भुवनेश्वरी महाविद्या नाम्नामष्टोत्तरं शतम्। 
कथयस्व महादेव यद्यहं तव वल्लभा ॥ 

॥ ईश्वर उवाच ॥

शृणु देवि महाभागे स्तवराजमिदं शुभम्। 
सहस्त्र नाम्नामधिकं सिद्धिदं मोक्षहेतुकम् ॥ 
शुचिभिः प्रातरुत्थाय पठितव्यं समाहितैः । 
त्रिकालं श्रद्धया युक्तैः सर्व कामफल प्रदम् ॥

विनियोग:- 

ॐ अस्य श्रीभुवनेश्र्व्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रस्य श्रीशक्तिऋषिः। 
गायत्री छन्दः। श्रीभुवनेश्वरी देवता। चतुर्वर्ग साधने विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास :

श्रीशक्ति ऋषये नमः शिरसि। 
गायत्री छन्दसे नमः मुखे। 
श्री भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदि। 
चतुर्वर्ग साधने विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।

॥ स्तोत्रम् ॥

महामाया महाविद्या महायोगा महोत्कटा।
माहेश्वरी कुमारी च ब्रह्माणी ब्रह्मरूपिणी ॥१ ॥

वागीश्वरी योगरूपा योगिनी कोटि सेविता।
जया च विजया चैव कौमारी सर्वमङ्गला ॥ २॥

हिंगुला च विलासी च ज्वालिनी ज्वालरूपिणी।
ईश्वरी क्रूरसंहारी कुलमार्ग प्रदायिनी ॥३॥

वैष्णवी सुभगाकारा सुकुल्या कुलपूजिता।
वामाङ्गा वामाचारा च वामदेवप्रिया तथा ॥४॥

डाकिनी योगिनीरूपा भूतेशी भूतनायिका ।
प‌द्मावती पद्मनेत्रा प्रबुद्धा च सरस्वती ॥५॥

भूचरी खेचरी माया मातङ्गी भुवनेश्वरी। 
कान्ता पतिव्रता साक्षी सुचक्षुः कुण्डवासिनी ॥६॥

उमा कुमारी लोकेशी सुकेशी पद्यरागिनी। 
इन्द्राणी ब्रह्मचाण्डाली चण्डिका वायुवल्लभा ॥७ ॥

सर्वधातुमयी मूर्तिर्जलरूपा जलोदरी। 
आकाशी रणगा चैव नृकपाल विभूषणा ॥८॥

शम्मंदा मोक्षदा चैव काम धर्मार्थदायिनी। 
गायत्री चाथ सावित्री त्रिसंध्या तीर्थगामिनी ॥९॥

अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी तथा।
पौर्णमासी कुहूरूपा तिथिमूर्ति स्वरूपिणी ॥१० ॥

सुरारि नाशकारी च उग्ररूपा च वत्सला। 
अनला अर्द्धमात्रा च अरुणा पीतलोचना ॥११ ॥

क्षयरूपी क्षयकरी तेजस्विनी शुचिस्मिता । 
अव्यक्ता व्यक्तलोका च शम्भुरूपा मनस्विनी ॥१३॥

मातङ्गी मत्तमातङ्गी महादेवप्रिया सदा।
दैत्यहा चैव वाराही सर्वशास्त्रमयी शुभा ॥१४॥

॥ फलश्रुति ॥ 

य इदं पठते भक्त्या शृणुयाद् वा समाहितः। 
अपुत्रो लभते पुत्रान् निर्धनो धनवान् भवेत् ॥१ ॥

वैश्यस्तु धनवान् भूयात् शूद्रस्तु सुखमेधते। 
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः ॥२॥

मूर्खापि लभते शास्त्रं चौरोपि लभते गतिम्। 
वेदानां पाठको विप्रः क्षत्रियो विजयो भवेत् ॥ ३॥

ये पठन्ति सदाभक्त्या न ते वै दु: ख भागिनः।
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा चतुर्थकं॥४॥ 

ये पठन्ति सदा भक्त्या स्वर्ग लोके च पूजिताः।
रुद्रं दृष्ट्वा यथा देवा पन्नगा गरुडं यथा॥५ ॥ 

शत्रवः प्रपलायन्ते तस्य वक्त्र विलोकनात् ॥ ६॥

॥श्रीरुद्रयामले श्रीभुवनेश्वर्यष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

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