श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
श्री भुवनेश्वरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र,Sri Bhuvaneshwari Ashtottara Shatnam Stotra
॥ देव्युवाच ॥
॥ ईश्वर उवाच ॥
विनियोग:-
ऋष्यादिन्यास :
॥ स्तोत्रम् ॥
महामाया महाविद्या महायोगा महोत्कटा।
माहेश्वरी कुमारी च ब्रह्माणी ब्रह्मरूपिणी ॥१ ॥
वागीश्वरी योगरूपा योगिनी कोटि सेविता।
जया च विजया चैव कौमारी सर्वमङ्गला ॥ २॥
हिंगुला च विलासी च ज्वालिनी ज्वालरूपिणी।
ईश्वरी क्रूरसंहारी कुलमार्ग प्रदायिनी ॥३॥
वैष्णवी सुभगाकारा सुकुल्या कुलपूजिता।
वामाङ्गा वामाचारा च वामदेवप्रिया तथा ॥४॥
डाकिनी योगिनीरूपा भूतेशी भूतनायिका ।
पद्मावती पद्मनेत्रा प्रबुद्धा च सरस्वती ॥५॥
भूचरी खेचरी माया मातङ्गी भुवनेश्वरी।
कान्ता पतिव्रता साक्षी सुचक्षुः कुण्डवासिनी ॥६॥
उमा कुमारी लोकेशी सुकेशी पद्यरागिनी।
इन्द्राणी ब्रह्मचाण्डाली चण्डिका वायुवल्लभा ॥७ ॥
सर्वधातुमयी मूर्तिर्जलरूपा जलोदरी।
आकाशी रणगा चैव नृकपाल विभूषणा ॥८॥
शम्मंदा मोक्षदा चैव काम धर्मार्थदायिनी।
गायत्री चाथ सावित्री त्रिसंध्या तीर्थगामिनी ॥९॥
अष्टमी नवमी चैव दशम्येकादशी तथा।
पौर्णमासी कुहूरूपा तिथिमूर्ति स्वरूपिणी ॥१० ॥
सुरारि नाशकारी च उग्ररूपा च वत्सला।
अनला अर्द्धमात्रा च अरुणा पीतलोचना ॥११ ॥
क्षयरूपी क्षयकरी तेजस्विनी शुचिस्मिता ।
अव्यक्ता व्यक्तलोका च शम्भुरूपा मनस्विनी ॥१३॥
मातङ्गी मत्तमातङ्गी महादेवप्रिया सदा।
दैत्यहा चैव वाराही सर्वशास्त्रमयी शुभा ॥१४॥
॥ फलश्रुति ॥
य इदं पठते भक्त्या शृणुयाद् वा समाहितः।
अपुत्रो लभते पुत्रान् निर्धनो धनवान् भवेत् ॥१ ॥
वैश्यस्तु धनवान् भूयात् शूद्रस्तु सुखमेधते।
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः ॥२॥
मूर्खापि लभते शास्त्रं चौरोपि लभते गतिम्।
वेदानां पाठको विप्रः क्षत्रियो विजयो भवेत् ॥ ३॥
ये पठन्ति सदाभक्त्या न ते वै दु: ख भागिनः।
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वा चतुर्थकं॥४॥
ये पठन्ति सदा भक्त्या स्वर्ग लोके च पूजिताः।
रुद्रं दृष्ट्वा यथा देवा पन्नगा गरुडं यथा॥५ ॥
शत्रवः प्रपलायन्ते तस्य वक्त्र विलोकनात् ॥ ६॥
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