श्री कमला अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र,Shri Kamala Ashtottara Shatnam Stotra

श्री कमला अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

माँ कमला का रूप, देवी लक्ष्मी के समान मन को शांति प्रदान करने वाला है. माँ कमला प्रसिद्धी, भाग्य, धन की देवी है. अगर कोई व्यक्ति गुप्त नवरात्री में सच्चे मन से माँ कमला की पूजा करता है उसे धन, समृद्धि की प्राप्ति होती है.

कमला महाविद्या से जुड़ी कुछ और बातें: 

  • कमला महाविद्या का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन के समय हुआ था
  • कमला महाविद्या को भगवान विष्णु की दिव्य शक्ति माना जाता है 
  • कमला महाविद्या चतुर्भुजी हैं
  • कमला महाविद्या को लाल पोशाक और भव्य स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित दिखाया गया है
  • कमला महाविद्या के समक्ष चार हाथी हैं
  • कमला महाविद्या का दशाक्षरी मंत्र है - ॐ नमः कमलवासिन्यै स्वाहा

श्री कमला अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र,Shri Kamala Ashtottara Shatnam Stotra

॥ श्री शिव ज्यामः ॥

 शतमष्टोत्तरं नाम्नां कमलाया बरानने । 
प्रवक्ष्याम्यतिगुह्यं हि न कदापि प्रकाशयेत् ॥१॥

महामाया महालक्ष्मीर्महावाणी महेश्वरी। 
महादेवी महारात्रिर्महिषासुरमर्दिनी ॥२॥

कालरात्रिः कुद्धः पूर्णानन्दाऽद्या भद्रिका निशा। 
जया रिक्ता महाशक्तिर्देवमाता कृशोदरी ॥३॥

शचीन्द्राणी शकनुता शंकरप्रियवल्लभा। 
महावराहजननी मदनोन्मथिनी मही ॥४॥

वैकुण्ठनाधरमणी विष्णुवक्षःस्थलस्थिता। 
विश्वेश्वरी विश्वमाता बरदाऽभयदा शिवा ॥५॥

शूलिनी चक्रिणी मा च पाशिनी शङ्खधारिणी। 
गदिनी मुण्डमाला च कमला करुणालया ॥६॥

पद्याक्षधारिणी हाम्बा महाविष्णुप्रियंकरी। 
गौलोकनाथरमणी गोलोकेश्वरपूजिताः ॥७॥

गया गंगा च यमुना गोमती गरुडासना। 
गण्डकी सरयूस्तापी रेवा चैव पचस्विनी ॥८॥

नर्मदा चैव कावेरी केदारस्थलवासिनी। 
किशोरी केशवनुता महेन्द्रपरिवन्दिता ॥९॥

ब्रह्मादिदेवनिर्माणकारिणी देवपूजिता। 
कोटिब्रह्माण्डमध्यस्था कोटिब्रह्माण्डकारिणी ॥१०॥

श्रुतिरूपा श्रुतिकरी श्रुतिस्मृतिपरायणा। 
इन्दिरा सिन्धुनतया मातंगी लोकमातृका ॥११॥

त्रिलोकजननी तन्त्रा तन्त्रमंत्रस्वरूपिणी। 
तरुणी च तमोहन्वी मंगला मंगलायना ॥१२॥

मधुकैटभमानी शुम्भासुरविनाशिनी। 
निशुम्भादिहरा माता हरिशंकरपूजिता ॥१३॥

सर्वदेवमयी सर्वा शरणागतपालिनी। 
शरण्या शम्भुवनिता सिन्धुतीरनिवासिनी ॥१४॥

गन्धर्वगानरसिका गीता गोविन्दवल्लभा ।
त्रैलोक्यपालिनी तत्त्वरूपतारुण्यपूरिता ॥१५॥

बन्द्रावली चन्द्रमुखी चन्द्रिका चन्द्रपूजिता।
चन्द्रा शशाङ्कभगिनी गीतवाद्यपरायणा ॥१६॥

मुष्टिरूपा सृष्टिकरी सृष्टिसंहारकारिणी। 
इति ते कथितं देवि रमानामशताष्टकम् ॥१७॥

त्रिसन्ध्यं प्रयतो भूत्वा पठेदेतत्समाहितः । 
यं यं कामयते कार्म तं तं प्राप्नोत्यसंशयः ॥१८॥

इर्म स्तवं यः पठतीह मत्यों वैकुण्ठपल्या परमाद्रेण । 
धनाधिपाडीः परिवन्दितः स्यात् प्रयास्यति श्रीपदमन्तकाले ॥१९॥

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