शिव नगरी वाराणसी में सिद्धिदात्री माता का प्राचीन मंदिर,Shiva Nagaree Varanasi Me Siddhidatri Mata Ka Praacheen Mandir

शिव नगरी वाराणसी में सिद्धिदात्री माता का प्राचीन मंदिर

सितंबर-अक्टूबर मास में होने वाली नवरात्रि के नवें दिन सिद्धेश्वरी देवी की पूजा करते हैं। देवी सिद्धिदात्री माँ दुर्गा का नवां स्वरूप है। माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएँ हें। उनका वाहन सिंह है। वे कमल पुष्प पर बैठती हैं। उनके निचले दायें हाथ में चक्र है तथा ऊपरी दाहिने हाथ में गदा है, निचले बाएँ हाथ में शंख है तथा ऊपरी बाएँ हाथ में कमल पुष्प है।

मां सिद्धिदात्री मंदिर

माता को यश, विद्या, बुद्धि और बल की देवी के रूप में पूजा जाता है. शिव नगरी वाराणसी में सिद्धिदात्री माता का अति प्राचीन मंदिर मैदागिन गोलघर इलाके के सिद्धमाता गली में स्थित है. माता को सभी सिद्धियों की दात्री कहा जाता है.

मां सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व: 

  • महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्तों के भय, शोक और रोग नष्ट हो जाते हैं. उनको समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं. माता रानी अपने भक्त से प्रसन्न होकर उसे मोक्ष भी प्रदान करती हैं.
  • देवी सिद्धिदात्री माँ दुर्गा का नवां स्वरूप है। वे अपने श्रद्धालुओं को हर प्रकार की सिद्धियाँ देती हैं। विभिन्न पुराणों में कई प्रकार की सिद्धियों का वर्णन है, देवी पुराण के अनुसार, भगवान शिव नें उनके आशीष से ही सिद्धियाँ पाई थीं। उनका आधा शरीर देवी रूप में हो गया था ।
  • पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी सिद्धिदात्री माता के महान भक्त हैं. भगवान शिव गौ माता की कृपा से ही अर्धनारीश्वर स्वरूप प्राप्त हुआ था आकाशगंगा, झील, वनस्पति, पेड़ पौधे, जल आकाश, थल आदि का निर्माण भी माता सिद्धिदात्री के अनुग्रह से ही हुआ, भक्तों को सिद्धिदात्री की पूजा करने से अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं.
  • नौवें दिन माताजी का पूजन, अर्चन, हवन आदि किया जाता है। उपरोक्त मंत्र का जाप करने से मां सिद्धिदात्री प्रसन्न होती हैं। मां सिद्धिदात्री के चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल इस बात का संकेत है कि वे सदैव हमारी सहायता के लिए तत्पर रहती हैं।

पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय :-

यह पूजा स्थान प्रातः 5:00 बजे से 10:00 बजे तक एवं सायं 4:00 बजे से रात के 10:00 बजे तक खुलता है। समय में परिवर्तन संभाव्य है।

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