नवरात्रि के दौरान तीसरी देवी चंद्रघंटा के प्रसिद्ध मंदिर के दर्शन अवश्य करें,Navratri Ke Dauraan Teesaree Devi Chandraghanta Ke Prasiddh Mandir Ke Darshan Avashy Karen

प्रयागराज में स्थित मां चंद्रघंटा के प्रसिद्ध मंदिर में लोग अपनी इच्छा लेकर आता है, मां उसे जरूर पूरा करती हैं

नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा मां के चंद्रघंटा रूप की पूजा होती है. मां का चंद्रघंटा रूप राक्षसों का वध करने के लिए जाना जाता है. मान्यता ये भी है कि वह अपने भक्तों के दुखों को हमेशा दूर करती हैं

मां चंद्रघंटा का प्रसिद्ध मंदिर

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मां चंद्रघंटा का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर स्थित है। अगर मां चंद्रघंटा के मंदिर में दर्शन करने का अवसर मिले तो चूकें नहीं. मां का प्रसिद्ध मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित है. यह मंदिर चौक में स्थित है  यह मां क्षेमा माई का बेहद प्राचीन मंदिर है. कहते हैं कि पुराणों में इस मंदिर का विशेष तौर पर उल्लेख किया गया है. यहीं मां दुर्गा देवी चंद्रघंटा स्वरुप में विराजित हैं. नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के दर्शन करने के लिए यहां हर साल बड़ी संख्या में लोग आते हैं। माना जाता है कि मां अपने दर से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देती हैं। जो भी भक्त मां के दर पर अपनी इच्छा लेकर आता है, मां उसे जरूर पूरा करती हैं यहां पर मां चंद्रघंटा को खासतौर पर दूध से बनी एक खास मिठाई का भोग लगाया जाता है, जिसे रोज प्रात: काल में मंदिर में ही बनाया जाता है।

मां चंद्रघंटा का तीसरा स्वरूप 

भगवती दुर्गा अपने तीसरे स्वरूप में चंद्रघंटा के नाम से जानी जाती है । इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है । माता के सिर पर रत्नजड़ित मुकुट है और इस मुकुट में अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित है जिसके कारण यह देवी चन्द्रघंटा कहलाती है ।मां के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है और इनकी दस भुजाएं है जो खड्ग, बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि से विभूषित हैं । माता का ये स्वरूप सिंह पर विराजमान है । इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है । जब महिषासुर के साथ माता दुर्गा का युद्ध हो रहा था, तब माता ने  घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था । नवरात्र के तीसरे दिन मां चन्द्रघंटा की पूजा होती है । इसका कारण यह है कि माता का पहला रुप और दूसरा रुप भगवान शिव को पाने के लिए है । जब माता भगवान शिव को पति रुप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह अपने आदिशक्ति रुप में आ जाती हैं ।इसलिए माता लाल वस्त्रों में शोभा पा रही हैं । माता के सिर पर रत्नजड़ित मुकुट है । 

देवी पार्वती के जीवन की तीसरी बड़ी घटना है मां को उनका प्रिय वाहन बाघ प्राप्त होना । इसलिए इस रुप में माता बाघ पर सवार हैं और अपने आदिशक्ति रुप में भक्तों को दर्शन दे रही हैं । मान्‍यता के अनुसार इनके पूजन से साधक के मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त होती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है । चंद्रघंटा देवी की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है । हमें चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके मां चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना में तत्पर हों । उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं । मां चंद्रघंटा नाद की देवी हैं, इसलिए इनकी कृपा से साधक स्वर विज्ञान यानी गायन में प्रवीण होता है और मां चंद्रघंटा की जिस पर कृपा होती है, उसका स्वर इतना मधुर होता है कि उसकी आवाज सुनकर हर कोई उसकी तरफ आकर्षित हो जाता है

इन 108 नामों का जाप करने से मां भगवती प्रसन्न होंगी।

भवानी, भवमोचनी, आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी, पिनाकधारिणी, चित्रा,चंद्रघंटा, महातपा, बुद्धि, अहंकारा, चित्तरूपा, चिता, चिति, सर्वमंत्रमयी, सत्ता, सत्यानंदस्वरुपिणी, अनंता, भाविनी, भव्या, अभव्या, सदागति, शाम्भवी, देवमाता, चिंता,रत्नप्रिया, सर्वविद्या, दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी, अपर्णा, अनेकवर्णा, पाटला, पाटलावती, पट्टाम्बरपरिधाना, कलमंजरीरंजिनी, अमेयविक्रमा, क्रूरा, सुन्दरी, सुरसुन्दरी,वनदुर्गा, मातंगी, मतंगमुनिपूजिता, ब्राह्मी, माहेश्वरी, एंद्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुंडा, लक्ष्मी, पुरुषाकृति, विमला, उत्कर्षिनी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रिया, सर्ववाहनवाहना, निशुंभशुंभहननी, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहंत्री, चंडमुंडविनाशिनी,  सर्वसुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिनी, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिनी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यत‍ि, अप्रौढ़ा, प्रौढ़ा, वृद्धमाता,बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी, शिवदुती, कराली, अनंता, परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रह्मावादिनी

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