Navratri Ka Second Day - माँ ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा,Maa Brahmacharini Kee Pauraanik Katha

Navratri Ka Second Day - माँ ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी 

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जो देवी पार्वती का अविवाहित रूप मानी जाती हैं। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह रंग बुद्धि, ज्ञान, उत्साह, और पालन-पोषण का प्रतीक है। भक्त पीले वस्त्र पहनकर पूजा करते हैं और मां को पीले रंग के फूल, फल, और मिठाई अर्पित करते हैं। मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र 'ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः' का 108 बार जाप करना चाहिए। इसके अलावा, 'या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः' का जाप भी बहुत शुभ माना जाता है। मां को चीनी का भोग लगाया जाता है, जिससे लंबी उम्र, अच्छे विचार, और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्त को तप, साधना, और आत्मनियंत्रण में प्रगति मिलती है, साथ ही सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है।

दधाना करप‌द्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मचि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

Second Day of Navratri - Maa Brahmacharini Story

 माँ ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा

माँ दुर्गाकी नव शक्तियोंका दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणीका है। यहाँ 'बा' शब्दका अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तपकी चारिणी-तपका आचरण करनेवाली। कहा भी है- वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्त्व और तप 'ग्रहा' शब्दके अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवीका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथमें जपकी माला एवं बायें हाथमें कमण्डलु रहता है। अपने पूर्वजन्ममें जब चे हिमालयके घर पुत्री रूपमें उत्पन्न हुई थीं तब नारदके उपदेशसे इन्होंने भगवान् शङ्करजीको पति-रूपमें प्राप्त करनेके लिये अत्यप्त कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्याके कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नामसे अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फाल-मूल खाकर व्यतीत किये थे। सौ वर्षोंतक केवल शाकपर निर्वाह किया था। कुछ दिनोंतक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाशके नीचे वर्षा और धूपके भयानक कष्ट सहे। 

इस कठिन तपश्चर्याके पश्चात् तीन हजार वर्षीतक केवल जमीनपर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रोंको खाकर वह अहर्निश भगवान् शङ्करकी आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रोंको भी खाना छोड़ दिया। कई हजार वर्षांतक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों (पर्ण) को भी खाना छोड़ देनेके कारण उनका एक नाम 'अपणों' भी पड़ गया। कई हजार वर्षोंकी इस कठिन तपस्याके कारण ब्रह्मचारिणी देवीका वह पूर्वजन्मका शरीर एकटम क्षीण हो उठा। वह अत्यन्त ही कृशकाय हो गयी थीं। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यन्त दुःखित हो उठीं। उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्यासे विरत करनेके लिये आवाज दी 'उमा', अरे। नहीं, ओ नहीं। तबसे देवी ब्रह्मचारिणीका पूर्वजन्मका एक नाम 'उमा' भी पड़ गया था। उनकी इस तपस्यासे तीनों लोकोंमें हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवीकी इस तपस्याको अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्तमें पितामह ब्रह्माजीने आकाशवाणीके द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरोंमें कहा-'हे देवि! आजतक किसीने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी।

ऐसी तपस्या तुम्हींसे सम्भव थी। तुम्हारे इस अलौकिक कृत्यकी चतुर्दिक सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान् चन्द्रमौलि शिवजी तुम्हें पतिरूयमें प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्यासे विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं माँ दुर्गाजीका यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धोंको अनन्तफल देनेवाला है। इनकी उपासनासे मनुष्यमें तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयमकी वृद्धि होती है। जीवनके कठिन संघोंमें भी उसका मन कर्त्तव्य-पथसे विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवीकी कृपासे उसे सर्वत्र सिद्धि और विजयकी प्राप्ति होती है। दुर्गापूजाके दूसरे दिन इन्हींके स्वरूपकी उपासना की जाती है। इस दिन साधकका मन 'स्वाधिष्ठान' चक्रमें स्थित होता है। इस चक्रमें अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राम करता है।

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