Navratri Ka Nau Day - माँ सिद्धिदात्री की पौराणिक कथा
सिद्धगन्धर्वयक्षाचैरसुरैरमरैरधि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥
मां सिद्धिदात्री से जुड़ी पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इनकी उत्पत्ति के बारे में ये बातें कही जाती हैं:
- एक बार जब ब्रह्मांड में सिर्फ़ अंधेरा था, तब प्रकाश की एक किरण प्रकट हुई और उससे मां सिद्धिदात्री का जन्म हुआ.
- मां सिद्धिदात्री ने अपने तेज से ब्रह्मा, विष्णु, और महेश को प्रकट किया और उन्हें सृष्टि का संचालन करने का आदेश दिया.
- त्रिदेवों ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर मां ने उन्हें शक्ति और सिद्धि प्रदान कीं.
- मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाए.
9th Day of Navratri - Siddhidatri Mata Story |
माँ दुर्गाजीकी नवीं शक्तिका नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकारकी सिद्धियोंको देनेवाली हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व-चे आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रहावैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण- जन्मखण्डमें यह संख्या अट्ठारह बतायी गयी है। इनके नाम इस प्रकार हैं-
- अणिमा
- लघिमा
- प्राति
- प्राकाव्य
- महिमा
- ईशित्त्व, वाशित्व
- सर्वकामावसाचिता
- सर्वज्ञत्व
- दूरश्रवण
- परकायाप्रवेशन
- वाक्क्सिद्धि
- कल्पवृक्षत्व
- सुष्टि
- संहारकरणसामर्थ्य
- अमरत्व
- सर्वन्यायकत्व
- भावना
- सिद्धि
माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकोंको ये सभी सिद्धियां प्रदान करनेमें समर्थ हैं। देवीपुराणके अनुसार भगवान् शिवने इनकी कृपासे ही इन सिद्धियोंको प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पासे ही भगवान् शिवका आधा शरीर देवीका हुआ था। इसी कारण वह लोकमें 'अर्द्धनारीश्वर' नामसे प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओंवाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्पपर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफके नीचेवाले हाथमें चक्र, ऊपरवाले हाथमें गदा तथा बायीं तरफके नीचेवाले हाथमें शङ्ख और ऊपरवाले हाथमें कमलपुष्प है। नवरात्र पूजनके नवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठाके साथ साधना करनेवाले साधकको सभी सिद्धियोंकी प्राप्ति हो जाती है। सृष्टिमें कुछ भी उसके लिये अगम्य नहीं रह जाता। ब्रह्माण्डपा पूर्ण विजय प्राप्त करनेकी सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
प्रत्येक मनुष्यका यह कत्र्त्तव्य है कि वह माँ सिद्धिदात्रीकी कृपा प्राप्त करनेका निरन्तर प्रयत्न करे। उनकी आराधनाकी ओर अग्रसर हो। इनकी कृपासे अनन्त दुःखरूप संसारसे निर्लिप्त रहकर सारे सुखोंका भोग करता हुआ वह मोक्षको प्राप्त कर सकता है। नव दुर्गाओंमें माँ सिद्धिदात्री अन्तिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओंकी पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधानके अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजाके नवें दिन इनकी उपासनामें प्रवृत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँकी उपासना पूर्ण कर लेनेके बाद भक्तों और साधकोंकी लौकिक- पारलौकिक सभी प्रकारकी कामनाओंकी पूर्ति ही जाती है। लेकिन सिद्धिदात्री माँके कृपापात्र भक्तके भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओंसे ऊपर उठकर मानसिकरूपसे माँ भगवतीके दिव्य लोकोंमें विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूषका निरन्तर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवतीका परम सात्रिध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पदको पानेके बाद उसे अन्य किसी भी वस्तुको आवश्यकता नहीं रह जाती। माँके चरणोंका यह सान्निध्य प्राप्त करनेके लिये हमें निरन्तर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिये। माँ भगवतीका स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसारकी असारताका बोध कराते हुए वास्तविक परमशान्तिदायक अमृत पदकी ओर ले जानेवाला है।
माता ‘सिद्धिदात्री’ की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड पूरी तरह से अंधेरे से भरा हुआ एक विशाल शून्य था। दुनिया मे कहीं भी किसी प्रकार का कोई संकेत नहीं था तब उस अंधकार से भरे हुए ब्रह्मांड मे ऊर्जा का एक छोटा सा पुंज प्रकट हुआ। देखते ही देखते उस पुंज का प्रकाश चारों ओर फैलने लगा, फिर उस प्रकाश के पुंज ने आकार लेना शुरू किया और अंत मे वह एक दिव्य नारी के आकार मे विस्तृत होकर रुक गया। वह प्रकाश पुंज देवी महाशक्ति के आलवा कोई और नहीं था। सर्वोच्च शक्ति ने प्रकट होकर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी) को अपने तेज़ से उत्तपन्न किया और तीनों देवों को इस सृष्टि को सुचारु रूप से चलाने के लिए अपने-अपने कर्तव्यों के निर्वाहन के लिए आत्मचिंतन करने को कहा।
देवी के कथनानुसार तीनों देव आत्मचिंतन करते हुए जगतजननी से मार्गदर्शन हेतु कई युगों तक तपस्या मे लीन रहें। अंतत: उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महाशक्ति ‘माँ सिद्धिदात्री’ (Siddhidatri) के रूप मे प्रकट हुईं। देवी ‘माँ सिद्धिदात्री’ ने ब्रह्माजी को सरस्वती जी, विष्णुजी को लक्ष्मी जी और शिवजी को आदिशक्ति प्रदान किया। ‘माँ सिद्धिदात्री’ ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना का भर सौंपा, विष्णु जी को सृष्टि के पालन का कार्य दिया और महादेव को समय आने पर सृष्टि के संहार का भार सौंपा। ‘माँ सिद्धिदात्री’ ने तीनों देवों को बताया की उनकी शक्तियाँ उनकी पत्नियों मे हैं जो उनके कार्यनिर्वाहन मे उनकी सहायता करेंगी। उन्होने त्रिदेवों को दिव्य-चमत्कारी शक्तियाँ भी प्रदान की जिससे वो अपने कर्तव्यों को पूरा करने मे सक्षम हो सकें। देवी ने उन्हें आठ अलौकिक शक्तियाँ प्रदान की।
इस तरह दो भागों नर एवं नारी, देव-दानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे तथा दुनिया की कई और प्रजातियों का जन्म हुआ। आकाश असंख्य तारों, आकाशगंगाओं और नक्षत्रों से जगमगा उठा। पृथ्वी पर महासागरों, नदियों, पर्वतों, वनस्पतियों और जीवों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार ‘माँ सिद्धिदात्री’ की कृपा से सृष्टि की रचना, पालन और संहार का कार्य संचालित हुआ। एक अन्य कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर दानव महिषासुर का उत्पात बहुत बढ़ गया था तब सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण मे जाते हैं, तत्पश्चात सभी देवों के तेज़ से माता सिद्धिदात्री प्रकट होती हैं और ‘दुर्गा’ रूप मे महिषासुर का वध करके समस्त सृष्टि की रक्षा करती हैं।
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