Navratri Ka 8th Day - माँ महागौरी की पौराणिक कथा
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभे दद्यान्महादेवप्रमोददा ।।
मां महागौरी की कथा के मुताबिक, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. इस तपस्या के दौरान मां हज़ारों सालों तक बिना कुछ खाए रहीं और उनका शरीर काला पड़ गया. जब भगवान शिव ने मां की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया, तब उन्होंने मां के शरीर को गंगा जल से धोया. इससे मां का काला रंग गौर वर्ण जैसा हो गया और तब से उनका नाम महागौरी पड़ा !
मां महागौरी के बारे में कुछ और बातें:
- मां महागौरी, मां दुर्गा की आठवीं शक्ति हैं
- मां महागौरी को श्वेतांबरधरा के नाम से भी जाना जाता है
- मां महागौरी के हाथ में त्रिशूल, डमरू, अभय और वरमुद्रा होती है
- मां महागौरी को सफ़ेद रंग पसंद है
8th Day of Navratri - Maa Mahagauri Story |
एक कथा अनुसार -
माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं. जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं. इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं. पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं.
माँ महागौरी की पौराणिक कथा
माँ दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरताकी उपमा शङ्ख, चन्द्र और कुन्दके फूल से दी गयी है। इनकी आयु आठ वर्षकी मानी गयी है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी'। इनके समस्त वस्व एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपरके दाहिने हाथमें अभय मुद्रा और नीचेवाले दाहिने हाथमें त्रिशूल है। ऊपरवाले बायें हाथमें डमरू और नीचेके बायें हाथमें वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यन्त शान्त है।
अपने पार्वतीरूपमें इन्होंने भगवान् शिवको पति रूपमें प्राप्त करनेके लिये बड़ी कठोर तपस्या की थी। इनकी प्रतिज्ञा थी कि 'ब्रियेऽहं वरदं शम्भु नान्यं देवं महेश्वरात्। (नारद- पाञ्चरात्र)। गोस्वामी तुलसीदासजी के अनुसार भी इन्होंने भगवान् शिवके वरणके लिये कठोर संकल्प लिया था-
जन्म कोटि लगि रगर हमारी।
बरठे संभु न त रहउँ कुँआरी ॥
इस कठोर तपस्याके कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्यासे प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर जब भगवान् शिवने इनके शरीरको गङ्गा जी के पवित्र जलसे मलकर धोया तब वह विद्युत् प्रभाके समान अत्यन्त कान्ति मान् गौर हो उठा। तभीसे इनका नाम महागौरी पड़ा। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरीकी उपासनाका विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सहाः फलदायिनी है। इनकी उपासनासे भक्तोंके सभी कल्मष धुल जाते हैं। उसके पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्यमें पाप संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते। वह सभी प्रकारसे पवित्र और अक्षय पुण्योंका अधिकारी हो जाता है।
माँ महा गौरी का ध्यान स्मरण, पूजन-आराधन भक्तोंके लिये सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना बाहिये। इनकी कृपासे अलौकिक सिद्धियोंकी प्राप्ति होती है। मनको अनन्यभावसे एकनिष्ठ कर मनुष्यको सदैव इनके ही पादारविन्दोंका ध्यान करना चाहिये। ये भक्तोंका कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। अतः इनके धरणोंकी शरण पानेके लिये हमें सर्वविध प्रयन करना चाहिये। पुराणोंमें इनकी महिमाका प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्यकी वृत्तियोंको सत्की और प्रेरित करके असत्का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभावसे सदैव इनका शरणागत बनना चाहिये।
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