Navratri Ka 6th Day - माँ कात्यायनी की पौराणिक कथा,Maa Katyayani kee pauraanik katha

Navratri Ka 6th Day - माँ कात्यायनी की पौराणिक कथा

चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। 
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ।।

मां कात्यायनी की कुछ और खास बातें:

  • मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ही महिषासुर का वध किया था
  • मां कात्यायनी की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है
  • मां कात्यायनी के चार हाथ हैं और ये स्वर्ण की तरह चमकीली हैं
  • इनके दाहिने हाथ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में है
6th Day of Navratri - Maa Katyayani Story 

माँ कात्यायनी की पौराणिक कथा

माँ दुर्गाके छठवें स्वरूपका नाम कात्यायनी है। इनका कात्यायनी नाम पड़नेकी कथा इस प्रकार है-कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्यके गोत्रमें विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बाकी उपासना करते हुए बहुत वर्षातक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्रीके रूपमें जन्म लें। माँ भगवतीने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी। कुछ काल पश्चात् जब दानव महिषासुरका अत्याचार पृथ्वीपर बहुत बढ़ गया तब भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनोंने अपने अपने तेजका अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिये एक देबीको उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारणासे यह कात्यायनी कहलायी।

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायनके वहाँ पुत्रीरूपसे उत्पन्न भी हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशीको जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी- तक-तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषिकी पूजा ग्रहण कर दशमीको महिषासुरका वध किया था। माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान् कृष्णको पतिरूपमें पानेके लिये व्रजकी गोपियों ने इन्हींको पूजा कालिन्दी यमुना के तटपर की थी। ये व्रजमण्डल को अधिष्वात्री देवी के रूपमें प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यन्त ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्णके समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफका ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रामें है तथा नीचे वाला वरमुद्रामें है। बायीं तरफके ऊपरवाले हाथमें तलवार और नीचेवाले हाथमें कमल पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। दुर्गापूजाके छठवें दिन इनके स्वरूपकी उपासना की जाती है। उस दिन साधकका मन 'आज्ञा' चक्रमें स्थित होता है। योगसाधनामें इस आज्ञा चक्रका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस चक्रमें स्थित मनवाला साधक माँ कात्यायनीके चरणोंमें अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तको सहज भावसे माँ कात्यायनीके दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। माँ कात्यायनीकी भक्ति और उपासनाद्वारा मनुष्यको बड़ी सरलतासे अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलोंकी प्राप्ति हो जाती है। यह इस लोकमें स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभावसे युक्त हो जाता है। उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मान्तरके पापोंको विनष्ट करनेके लिये माँकी उपासनासे अधिक सुगम और सरल मार्ग दूसरा नहीं है। इनका उपासक निरन्तर इनके सान्निध्यमें रहकर परमपदका अधिकारी बन जाता है। अतः हमें सर्वतोभावेन माँके शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासनाके लिये तत्पर होना चाहिये।

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