मातंगी सहस्रनाम स्तोत्र,Matangi Sahasranama Stotra

मातंगी सहस्रनाम स्तोत्र,Matangi Sahasranama Stotra

॥ ईश्वर उवाच ॥

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि साम्प्रतं तत्त्वतः परम्। 
नाम्नां सहस्रं परमं सुमुख्याः सिद्धये हितम् ॥१॥
महस्त्रनामपाठी यः सर्वत्र विजयी भवेत्।
पराभवो न तस्यास्ति सभायां वा महारणे ॥२॥ 
पथा तुष्टा भवेद्देवी सुमुखी चास्य पाठतः । 
तथा भवति देवेशि साधकः शिव एव सः ॥३॥ 
अश्वमेघसहस्त्राणि वाजपेयस्य कोटयः। 
सकृत्याठेन जायंते प्रसन्ना सुमुखी भवेत् ॥४॥ 
मातंगोऽस्य ऋषिश्छंदोऽनुष्टुप् देवी समीरिता । 
सुमुखी विनियोगः स्यात्पर्वसंपत्तिहेतवे ॥५॥
एवं ध्यात्वा पठेदेतद्यदीच्छेत्सिद्धिमात्मनः ॥६ ॥

॥ अथ ध्यानम् ॥

देवीं पोडशवार्षिकी शवगतां माध्वीरसाघूर्णितां 
श्यामांगीमरुणाम्बरां पृथुकुचों गुंजावलीशोभिताम् । 
हस्ताभ्यां दधतीं कपालममलं तीक्ष्णं तथा कर्डिंकां 
ध्यायेन्मानसपङ्कजे भगवतीमुच्छिष्टचाण्डालिनीम् ॥१ ॥

॥ अथ स्तोत्रम् ॥

ॐ सुमुखी शेमुषी सेव्या सुरसा शशिशेखरा। 
समानास्या साधनी च समस्तसुरसम्मुखी ॥२॥ 
सर्वसम्यत्तिजननी सम्पदा सिंधुसेविनी। 
शम्भुसीमंतिनी सौम्या समाराध्या सुधारसा ॥३॥
सारंगासवलीवेला लावण्यवनमालिनी । 
वनजाक्षी वनचरी वनी वनविनोदिनी ॥४॥
वेगिनी वेगदा वेगा बगलस्था बलाधिका।
काली कालप्रिया केली कामला कालकामिनी ॥५४॥ 
कमला कमलस्था च कमलस्था कलावती । 
कुलीना कुटिला कांता कोकिला कलभाषिणी ॥६॥ 
कीरा केलिकरा काली कपालिन्यपि कालिका। 
केशिनी च कशावर्ता कौशाम्भी केशवप्रिया ॥७॥ 
काली काशी महाकालसङ्काशा केशदायिनी। 
कुण्डला च कुलस्था च कुण्डलाङ्गदमंडिता ॥८॥ 
कुण्डपद्या कुमुदिनी कुमुदप्रीतिवर्द्धिनी। 
कुण्डप्रिया कुण्डरुचिः कुरंगनयनाकुला ॥९॥
कुन्दबिम्बालिनदिनी कुसुंभकुसुमाकरा ।
काञ्चीकनकशोभाद्या क्वणत्किंकिणिकाकटिः ॥१०॥
कठोरकरणा काष्ठा कौमुदी कण्ठवत्यपि।
कपर्द्दिनी कपटिनी कठिनी कलकण्डिनी ॥११॥ 
कीरहस्ता कुमारी च कुरूउकुसुमप्रिया ।
कुंजरस्था कुंजरता कुंभी कुंभस्तनी कला ॥१२॥ 
कुम्भिकांगा करभोरूः कदलीकुशशायिनी।
कुपिता कोटरस्था च कङ्कीला कन्दलालया ॥१३॥
कपालवासिनी केशी कम्पमानशिरोरुहा।
कादम्बरी कदम्बस्था कुंकुमप्रेमधारिणी ॥१४॥ 
कुटुम्बिनी कृपायुक्ता क्रतुः क्रतुकरप्रिया । 
कात्यायनी कृत्तिका च कार्तिकी कुशवर्तिनी ॥१५ ॥ 
कामपत्री कामदात्री कामेशी कामवन्दिता । 
कामरूपा कामरतिः कामाख्या ज्ञानमोहिनी ॥१६॥ 
खङ्गिनी खेचरी खञ्जा खञ्जरीटेक्षणा खगा।
खरगा खरनादा च खरस्था खेलनप्रिया ॥१७॥
खरांशुः खेलिनी खट्वा खरा ख‌ांगधारिणी। 
खरखण्डिन्यपि ख्यातिः खण्डिता खण्डनप्रिया ॥१८॥
खण्डप्रिया खण्डखाद्या खण्डसिंधुश्च खण्डिनी।
गंगा गोदावरी गौरी गौतम्यपि च गोमती ॥१९॥ 
गंगा गया गगनगा गारुडी गरुडध्वजा। 
गीता गीतप्रिया गया गुणप्रीतिर्गुरुर्मिरी ॥२०॥
गौर्गौरी गण्डसदना गोकुला गोप्रतारिणी।
गोप्ता गोविन्दिनी गूढा गूढविग्रस्तगुञ्जिनी ॥२१॥
गजगा गोपिनी गोपी गोक्षा जयप्रिया गणा।
गिरिभूपालदुहिता गोगा गोकुलवासिनी ।। २२॥
घनस्तनी घनरुचिर्धनोरुर्धन निस्स्वना।
घुङ्कारिणी घुक्षकरी घूघूकपरिवारिता ॥२३॥ 
घण्टानादप्रिया घण्टा घोटा घोटकवाहिनी। 
घोररूपा च घोरा च घृतप्रीतिर्युताञ्जनी ॥ २४॥ 
पुताची घृतवृष्टिच घण्टाघटघटावृता । 
घटस्था घटना घातकरी घातनिवारिणी ॥२५॥
चंचरीकी चकोरी च चामुण्डा चौरधारिणी।
चातुरी चपला चञ्चुश्चिता चिंतामणिस्थिता ॥२६॥
यातुर्वर्ण्यमयी चंचुलोराचार्या चमत्कृतिः। 
चक्रवर्तिवधूश्चित्रा चक्रांगी चक्रमोदिनी ॥२७॥ 
चेतश्वरी चित्तवृत्तिश्चेतना चेतनप्रिया। 
चापिनी चम्पकप्रीतिश्चण्डा बण्डालवासिनी ॥२८ ॥
चिरंजीविनी तच्चित्ता चिंचामूलनिवासिनी। 
छुरिका छत्रमध्यस्था छिन्दा छिन्दकरी छिदा ॥२९॥ 
छुच्छुन्दरी छलप्रीतिश्छुच्छुन्दरिनिभस्वना ।
 छलिनी छत्रदा छिन्ना छिण्टिच्छेदकरी छटा ॥३०॥ 
छग्रिनी छान्दसी छाचा छरुच्छन्दकरीत्यपि । 
जयदाजयदा जाती जायिनी जामला जतुः ॥३९॥ 
जम्बूप्रिया जीवनस्था जंगमा जंगमप्रिया। 
जपापुष्यप्रिया जप्या जगज्जीवा जगज्जनिः ॥३२॥
जगज्जंतुप्रधाना च जगज्जीवपरा जवा। 
जातिप्रिया जीवनस्था जीमूतसदृशीरुचिः ॥३३॥
जन्या जनहिता जाया जन्मभूर्जभसी जभूः ॥३४॥
जयदा जगदावासा जायिनी ज्वरकृच्छ्रजित्। 
जपा च जपती जप्या जपार्हा जायिनी जना ॥३५॥ 
जालन्धरमयी जानुर्जालाका जाप्यभूषणा।
जगजीवमयी जीवा जरत्कारुर्जनप्रिया ॥३६॥
जगतीजननिरता जगच्छोभाकरी जवा ।
जगतीत्राणकृजङ्घा जातीफलविनोदिनी ॥३७॥ 
जातीपुष्पप्रिया ज्वाला जातिहा जातिरूपिणी।
जीमूतवाहनरुचिर्जीमूता जीर्णवस्वकृत् ॥३८॥
जीर्णवरबधरा जीर्णा ज्वलती जालनाशिनी।
जगत्क्षोभकरी जातिर्जगत्क्षोभविनाशिनी ॥३९॥
जनापवादा जीवा च जननी गृहवासिनी।
जनानुरागा जानुस्था जलबासा जलार्तिकृत् ॥४०॥
जलजा जलवेला व जलचक्कनिवासिनी।
जलमुक्ता जलारोहा जलसा जलजेक्षणा ॥४१॥
जलप्रिया जलौका च जलशोभावती तथा।
जलविस्फूर्जितवपुज्वंलत्यावकशोभिनी ॥४२॥ 
झिलमयी झिञ्झाझणत्कारकरी जया। 
झंझी झंपकरी झंपा झंपत्रासनिवारिणी ॥४३॥
टंकारस्था टंककरी टंकारकरणांहसा ।
टंकारोदृकृतष्ठीवा डिण्डीरवसनावृता ॥४४॥
डाकिनी डामरी चैव डिण्डिमध्वनिनादिनी।
डकारनिस्स्वनरुचिस्तपिनी तापिनी तथा ॥४५॥ 
तरुणी तुन्दिला तुन्दा तामसी च तमः प्रिया।
ताम्रा तामवती तंतुस्तुन्दिलातुलसंभवा ॥४६ ॥ 
तुल्यकोटिसुवेगा च तुल्यकामा तुलाश्रया। 
तुदनी तुननी तुम्बी तुलाकाला तुलाश्रवा ॥४७॥
तुमुला तुलजा तुल्या तुलादानकरी तथा । 
तुल्यवेगा तुल्यगतिस्तुला कोटिनिनादिनी ॥४८ ॥ 
ताम्रौष्ठा ताम्रपर्णी च तमः संक्षोभकारिणी । 
त्वरिता ज्वरहा तीरा तारकेशी तमालिनी ॥४९॥ 
तमोदानवती ताम्रतालस्थानवती तमी।
तामसी च तमिस्त्रा व तीव्रा तीव्रपराक्रमा ॥५०॥ 
तटस्था तिलतैलाता तरुणी तपनद्युतिः।
तिलोत्तमा च तिलकृत्तारकाधीशशेखरा ॥५१॥ 
तिलपुष्यप्रिया तारा तारकेशी कुटुम्बिनी। 
स्थाणुपनी स्थिरकरी स्थूलसम्पद्विवर्द्धिनी ॥५२॥
स्थितिः स्वैर्यस्थविष्ठा च स्थपतिः स्थूलविग्रहा। 
स्थूलस्थलवती स्थाली स्थलसंगविवर्द्धिनी ॥५३॥
दण्डिनी दंतिनी दामा दरिद्रां दीनवत्सला ।
देवी देववधूर्हित्या दामिनी देवभूषणा।
दयादमवती दीनवत्सला दाडिमस्तनी ॥५४॥
देवमूर्तिकरा दैत्या दारिणी देवतानता ।
दोलाकोडा दयालुश दम्पती देवतामयी ।
दशादीपस्थिता दोषा दोषहा दोषकारिणी ॥५५॥
दुर्गा दुर्गार्तिशमनी दुर्गम्या दुर्गवासिनी।
दुर्गन्धनाशिनी दुःस्था दुःखप्रशमकारिणी ॥५६॥ 
दुर्गंधा दुन्दुभिध्वांता दूरस्था दूरवासिनी। 
दरदा दरदात्री च दुव्र्व्याधदयिता दमी ॥५७॥ 
धुरंधरा धुरीणा च धीरेयी धनदायिनी।
धीरारवा धरित्री च धर्मदा धीरमानसा ॥५८॥
धनुर्द्धरा च धमनी धमनीधूर्तविग्रहा। 
धूम्रवर्णा धूम्रपाना धूमला धूममोदिनी ॥५९॥
नन्दिनीनन्दिनी नन्दा नन्दिनी नन्दबालिका। 
नवीना नर्मदा नर्मनेमिनियमनिस्स्वना ॥६०॥
निर्मला निगमाधारा निम्नगा नग्नकामिनी। 
नीला निरत्ना निर्वाणा निर्लोभा निर्गुणा नत्तिः ॥६१॥
नीलग्रीवा निरीहा च निरञ्जनजनानवा।
निर्गुण्डिका च निर्गुण्डा निर्नासा नासिकाभिधा ॥६२॥ 
पताकिनी पताका च पत्रप्रीतिः पयस्विनी। 
पीना पीनस्तनी पत्री पवनाशा निशामयी ॥६३॥ 
परा परपरा काली पारकृत्यभुजप्रिया।
पवनस्था च पवना पवनप्रीतिवर्द्धिनी ॥६४॥ 
पशुद्धिकरी पुष्पपोषिका पुष्टिवर्द्धिनी। 
पुष्पिणी पुस्तककरा पूर्णिमाऽतलवासिनी ॥६५॥ 
पेशी पाशकरी पाशा पांशुहा पांशुला पशुः। 
पटुः पराशा परशुधारिणी पाशिनी तथा ॥६६॥ 
पापानी पतिपत्नी च पतिता पतितापनी।
पिशाची च पिशाचष्नी पिशिताशनतोषिणी ॥६७॥ 
पानदा पानपात्री च पानदानकरोद्यता।
पेया प्रसिद्धा पीयूषा पूर्णा पूर्णमनोरथा ॥६८॥ 
पतंगाभा पतंगा च पौनः पुन्यमिवापरा। 
पङ्किला पंकमग्ना च पानीया पञ्जरस्थिता ॥६९॥ 
पञ्चमी पञ्चयज्ञा च पञ्चता पञ्चमप्रिया। 
पिचुमन्दा पुण्डरीका पिकी पिंगललोचना ॥७०॥ 
प्रियंगुमञ्जरी पिण्डी पण्डिता पाण्डुरप्रभा।
प्रेतासना प्रियालस्था पाण्डुघ्नी पीनसापहा ॥७१ ॥
फलिनी फलदात्री च फलश्रीः फलभूषणा। 
फूत्कारकारिणी स्फारी फुला फुलाम्बुजानना ॥७२॥ 
स्फुलिंगहा स्फीतमतिः स्फीतकीर्तिकरी तथा। 
बलमाया बलारातिर्बलिनी चलवर्द्धिनी ॥७३॥ 
वेणुवाद्या वनचरी विरिञ्चिजनवित्र्यपि।
विद्याप्रदा महाविद्या बोधिनी बोधदायिनी ॥७४॥
बुद्धमाता च बुद्धा च वनमालावती वरा।
वरदा वारुणी वीणा वीणावादनतत्परा ॥७५॥
विनोदिनी विनोदस्था वैष्णवी विष्णुवावभा।
वैद्या वैद्यचिकित्सा च विवशा विश्वविश्रुता ॥७६ ॥
विद्यौषविद्धला वेला वित्तदा विगतज्वरा। 
विरावा विवरीकारा बिम्बोष्ठी बिम्बवत्सला ॥७७ ।।
विंध्यस्था वरवंद्या च वीरस्थानवरा च वित्। 
वेदांतवेद्या विजया विजया विजयप्रदा ॥ ७८ ॥
विरोगिवन्दिनी बंध्या वंद्यबधनिवारिणी।
भगिनी भगमाला व भवानी भवनाशिनी ॥७९॥
भीमा भीमाननाभीमा भंगुरा भीमदर्शना।
भिल्ली भिक्षधरा भीरुर्भरुण्डा भीर्भयावहा ॥८०॥
भगसर्पिण्यपि भगा भगरूपा भगालया। 
भगासना भगाभोगा भेरीझङ्काररञ्जिता ॥८१॥
भीषणा भीषणारावा भगवत्यहिभूषणा। 
भारद्वाजा भोगदात्री भूतिघ्नी भूतिभूषणा ॥८२॥
भूमिदा भूमिदात्री च भूपतिर्भरदायिनी। 
भ्रमरी भ्रामरी भाला भूपालकुलसंस्थिता ॥८३॥
माता मनोहरा माया मानिनी मोहिनी मही। 
महालक्ष्मीर्मदक्षीबा मदिरा मदिरालया ॥८४॥
मदोद्धता मतंगस्था माधवी मधुमर्दिनी। 
मोदा मोदकरी मेधा मेध्या मध्याधिपस्थिता ॥८५॥
मद्यपा मांसलोमस्था मांदिनी मैथुनोद्यता। 
मूर्द्धावती महामाया मायामहिममन्दिरा ॥८६॥
महामाला महाविद्या महामारी महेश्वरी। 
महादेववधूर्मान्या मधुरा मेरुमण्डित्ता ॥८७॥
मेदस्विनी मिलिन्दाक्षी महिषासुरमर्दिनी।
मण्डलस्था भगस्था च मदिरारागगर्विता ॥८८॥
मोक्षदा मुण्डमाला च माला मालविलासिनी।
मातंगिनी च मातंगी मातंगतनयापि च ॥८९॥
मधुस्त्रवा मधुरसा बंधूककुसुमप्रिया।
यामिनी यामिनीनाथभूषा यावकरञ्जिता ॥९०॥
यवांकुरप्रिया यामा यवनी यवनार्दिनी। 
यमध्नी चमकल्पा च यजमानस्वरूपिणी ॥११॥
यज्ञा बज्ञयजुर्वक्षी यशोनिष्कंपकारिणी। 
यक्षिणी यक्षजननी यशोदायासधारिणी ॥९२॥
यशस्सूत्रपदा यामा यज्ञकर्मकरीत्वपि। 
यशस्विनी यकारस्था यूपस्तंभनिवासिनी ॥९३ ॥
रंजिता राजपत्री च रमा रेखा रवीरणा।
रजोवती  रजश्चित्रा रंजनी रजनीपतिः ॥९४॥
रोगिणी रजनी राज्ञो राज्यदा राज्यवर्द्धिनी।
राजन्वती राजनीतिस्तथा रजतवासिनी ॥९५ ॥
रमणी रमणीया च रामा रामावती रतिः। 
रेतोरती स्तोत्साहा रोगब्नी रोगकारिणी ॥ ९६ ॥
रंगा रंगवती रागा रागज्ञा रागकृद्दया। 
रामिका रजकी रेवा रजनी रंगलोचना ॥९७॥
रक्तचर्मधरा रंगी रंगस्था रंगवाहिनी। 
रमा रंभाफलप्रीती रंभीरू राघवप्रिया ॥९८ ॥
रंगा रंगांगमधुरा रोदसी च महारवा। 
रोगकुद्रोगहंत्री च रोगभृद्रोगस्त्राविणी ॥९९॥
बन्दी बन्दिस्तुता बन्धुबन्धूककुसुमाधरा। 
बंदिता बंद्यमाना च वैद्रावी वेद‌विद्विधा ॥१००॥
विकोपा विकपाला च विकस्था विङ्कवत्सला।
वेदिर्बिलग्रलग्रा च विधिविडूकरी विधा ॥१०१ ॥
शङ्खिनी शङ्खवलया शंखमालावती शमी। 
शंखपात्राशिनी शंखस्वना शंखगला शशी ॥१०२॥
शबरी शांबरी शंभुः शंभुकेशा शरासिनी। 
शवा श्वेनवती श्यामा श्यामांगी श्यामलोचना ॥१०३॥ 
श्मशानस्था श्मशाना च श्मशानस्थानभूषणा। 
शमदा शमहंत्री च शंखिनी शंखरोषणा ॥१०४॥ 
शांतिः शांतिप्रदा शेषा शेषाख्या शेषशायिनी। 
शेमुषी शोषिणी शेषा शौर्यां शौव्वंशरा शरी ॥१०५ ॥ 
शापदा शापहा शापा शापपंथाः सदाशिवा। 
भंगिणी भंगिपलभुक् शङ्करी शांकरी शिवा ॥१०६ ॥ 
शवस्था शवभुक् शांता शवकर्णा शबोदरी। 
शाविनी शवशिंशा श्रीः शवा च शवशायिनी ॥१०७॥ 
शवकुण्डलिनी शैवा शीकरा शिशिराशना। 
शवकाची शवश्रीका शवमाला शवाकृतिः ॥१०८ ॥ 
खवंती सचा शक्तिः शंतनुः शवदायिनी। 
सिंधुः सरस्वती सिंधुः सुंदरी सुन्दरानना ॥१०९ ॥ 
साधुः सिद्धिप्रदात्री च सिद्धा सिद्धसरस्वती। 
संततिः सम्पदा संविच्छंकिसम्पत्तिदायिनी ॥११०॥ 
सपत्नी सरसा सारा सारस्वतकरी सुधा। 
सुरा सांसाशना च समाराध्या समस्तदा ॥११९॥ 
समधीः सामदा सीमा संमोहा समदर्शना। 
सामतिः सामदा सीमा सावित्री सविधा सती ॥११२ ॥ 
सवना सबनासारा सवरा सावरा समी। 
सिमरा सतता साध्वी सधीची ससहायिनी ॥११३॥ 
हंसी हंसगतिर्हसी ईसोज्ज्वलनिचोलयुक्। 
हलिनी हालिनी हाला हलश्रीर्हरवल्लाभा ॥११४ ।। 
हला हलवती होषा हेला हर्षविवर्द्धिनी। 
हंतिर्हता हया हाहाहताऽहंतातिकारिणी ॥११५॥ 
हंकारी हंकृतिर्हका हीहीहाहाहिता हिता। 
हीतिर्हेमप्रदा हारा राविणी हरिसम्मता ॥११६॥ 
होरा होत्री होलिका च होमा होमहविर्हविः। 
हारिणी हरिणीनेत्रा हिमाचलनिवासिनी ॥११७॥ 
लम्बोदरी लम्बकर्णा लम्बिका लम्बविग्रहा। 
लीला लीलावती लोला ललना ललिता लता ॥११८॥ 
ललामलोचना लोम्या लोलाक्षीसत्कुलालया। 
लपत्नी लपती लम्या लोपामुद्रा ललंतिका ॥११९॥ 
लतिका लंघिनी लंघा लालिमा लघुमध्यमा । 
लधीयसी लघूदर्य्या लूता लूताविनाशिनी ॥१२०॥ 
लोमशा लोमलम्बी च ललंती च लुलुम्पती।
लुलायस्था च लहरी लङ्कापुरपुरंदरा ॥१२१॥ 
लक्ष्मीर्लक्ष्मीप्रदाऽलभ्या लाक्षाक्षी लुलितप्रभा । 
क्षणा क्षणक्षुः क्षुत्क्षीणी क्षमा क्षांतिः क्षमावती ॥१२२॥ 
क्षमा क्षामोदरी क्षेम्या क्षोभभुत्क्षत्रियांगना । 
क्षया क्षयकरी क्षीरा क्षौरदा क्षीरसागरा ॥१२३॥ 
क्षेमंकरी क्षयकरी क्षयकृत्क्षयदा क्षतिः। 
क्षुद्रिकाऽक्षुद्रिका क्षुद्रा श्रुत्क्षामा क्षीणपातका ॥१२४॥ 
मातुः सहस्त्रनामेदं सुमुख्याः सिद्धिदायकम्।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं स एव स्यान्महेश्वरः ॥१२५॥ 
अनाचारात्पठेन्नित्यं दरिद्रो धनवान्भवेत्। 
मूकः स्याद्वाक्पतिर्देवि रोगी नीरोगंतां व्रजेत् ॥१२६ ॥ 
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। 
बंध्यापि सूते सत्पुत्रं विदुषः सदृशं गुरोः ॥१२७॥
सत्यं च बहुधा भूयाद्‌गावश्च बहुदुग्धदाः ।
राजानः पादनप्नाः स्युस्तस्य हासा इव स्फुटाः ॥१२८ ॥ 
अरयः संक्षयं यांति मनसा संस्मृता अपि । 
दर्शनादेव जायंते नरा नाव्यर्योऽपि तद्वशाः ॥१२९॥ 
कर्ता हर्ता स्वयं वीरी जायते नात्र संशयः।
चं यं कामवते कार्म तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ॥१३०॥ 
दुरितं न च तस्यास्ति नास्ति शोकः कथंचन । 
चतुष्पथेऽर्द्धरात्रे च यः पठेत्साधकोत्तमः ॥१३१॥
एकाकी निर्भयो वीरो दशवारं स्तवोत्तमम्। 
मनसा चिंतितं कार्यं तस्य सिद्धयेन्त्रसंशयः ॥१३२॥
विना सहस्त्रनाम्नां यो जपेन्मंत्र कदाचन। 
न सिद्धिर्जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥९३३॥ 
कुजवारे श्मशाने वा मध्याह्ने यो जपेत्सदा। 
कृतकृत्यः स जायेत कर्ता हर्ता नृणामिह ॥१३४॥ 
रोगातोंऽर्द्धनिशायां यः पठेदासनसंस्थितः । 
सद्यो नीरोगतामेति यदि स्याग्निर्भयस्तदा ॥१३५॥ 
अर्द्धरात्रे श्मशाने वा शनिवारे जपेन्मनुम्। 
अष्टोत्तरसहस्रं तु दशवारे जपेत्ततः ॥१३६ ।। 
सहस्त्रनाम चैतद्धि तदा याति स्वयं शिवा। 
महापवनरूपेण घोरगोमायुनादिनी ॥१३७ ।। 
ततो यदि न भीतिः स्यात्तदा देहीति वाग्भवेत्।
तदा पशुबलिं दद्यात्स्वयं गृह्णाति चण्डिका ॥१३८ ॥ 
यथेष्टं च वरं दत्त्वा प्रयाति सुमुखी शिवा। 
रोचनागरुकस्तूरीकर्पूरैश्च सचन्दनैः ॥१३९॥ 
कुंकुमेन दिने श्रेष्ठे लिखित्वा भूर्जपत्रके। 
शुभनक्षत्रयोगे च कृतमारुतसत्क्रियः ॥१४० ॥ 
कृत्वा सम्पातनविधिं धारयेद्दक्षिणे करे। 
सहस्त्रनाम स्वर्णस्थं कण्ठे वां विजितेन्द्रियः ॥१४९ ॥ 
तदा यं प्रणमेन्मंत्री कुद्धः स निवते नरः। 
दुष्टश्वापदजंतूनां न भीः कुत्रापि जायते ॥१४२ ॥ 
बालकानामियं रक्षा गर्भिणीनामपि प्रिये। 
मोहनस्तंभनाकर्षमारणोच्चाटनानि च ॥१४३ ।। 
यंत्रधारणतो नूनं जायंते साधकस्य तु। 
नौलवस्त्रे विलिख्यैतत्तद्धजे स्थापयेद्यदि ॥१४४॥ 
तदा नष्टा भवत्येव प्रचण्डाप्यरिवाहिनी ।
एतज्जर्स महाभस्म ललाटे यदि धारयेत् ॥१४५ ॥ 
तद्विलोकन एव स्युः प्राणिनस्तस्य किंकराः। 
राजपल्योऽपि विवशाः किमन्याः पुरयोषितः ॥१४६ ॥ 
एतज्जमं पिबेत्तोयं मासेन स्यान्महाकविः। 
पण्डितच महावादी जायते नात्र संशयः ॥१४७॥
अयुतं च पठेत्स्तोत्रं पुरश्चरणसिद्धये। 
दशांशं कमलैर्तुत्वा त्रिमध्वाक्तैर्विधानतः ॥१४८॥
स्वयमायाति कमला वाण्या सह तदालये। 
मंत्रो निष्कील तामेति सुमुखी सुमुखी भवेत् ॥१४९ ॥
अनंतं च भवेत्पुण्यमपुण्यं च क्षयं वजेत्। 
पुष्करादिषु तीर्थेषु स्नानतो यत्फलं भवेत् ॥१५०॥
तत्फलं लभते जंतुः सुमुख्याः स्तोत्रपाठतः । 
एतदुक्तं रहस्यं ते स्वसर्वस्वं वरानने ॥१५१॥ 
न प्रकाश्यं त्वया देवि यदि सिद्धिं त्वमिच्छसि। 
प्रकाशनादसिद्धिः स्यात्कुपिता सुमुखी भवेत् ॥१५२ ॥
नातः परतरे लोके सिद्धिदं प्राणिनामिह ॥१५३॥ 
बन्दे श्रीसुमुखीं प्रसन्नवदनां पूर्णेन्दुबिम्बाननां, 
सिन्दूरांकितमस्तकां मधुमदोल्लोलोच्यमुक्तावलीम् । 
श्यामां कज्जलिकाकरों करगतं चाध्यापयंती शुकं, 
गुंजापुंजविभूषणां सकरुणामामुक्तवेणीलताम् ॥१५४॥
॥ श्रीनन्द्यावर्ततंत्रे उत्तरखण्डे मातंगीसहस्रनाम स्तोर्थ सम्पूर्ण ॥

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