नवरात्रि का प्रथम दिन "माता शैलपुत्री"

नवरात्रि का प्रथम दिन माता शैलपुत्री  विशेष पूजा, भजन, कथा का पाठ और ध्यान , 

माता शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। यह पूजा सुख-समृद्धि और शांति के लिए की जाती है। यहां कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं जो माता शैलपुत्री की विशेष पूजा से संबंधित हैं:-

  • सुख-समृद्धि का आशीर्वाद: मां शैलपुत्री की पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में खुशहाली का संचार होता है।
  • विवाह की बाधाओं का निवारण: जिन लोगों का विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह में समस्याएं आ रही हैं, उनके लिए यह पूजा अत्यंत फलदायी होती है।
  • ग्रह कलेश का निवारण: मां शैलपुत्री की पूजा से ग्रहों के दोष और पारिवारिक कलेश दूर होते हैं।
  • आरोग्य का वरदान: मां शैलपुत्री की पूजा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, जिससे आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है।
  • धन और यश की प्राप्ति: मां शैलपुत्री की कृपा से धन और यश की कामनाएं पूरी होती हैं।
  • भोग सामग्री: पूजा में गाय के घी और दूध से बनी चीज़ें चढ़ाई जाती हैं, जो माता को अत्यधिक प्रिय होती हैं। इसके साथ ही, कद्दू का हलवा भी भोग में अर्पित किया जाता है।
  • मानसिक विकास: मां शैलपुत्री की पूजा से मन और मस्तिष्क का विकास होता है, जिससे मानसिक स्थिरता और शांति प्राप्त होती है।
  • आनंद और उत्साह का संचार: माता की पूजा से मन में उमंग, उत्साह और आनंद का संचार होता है, जिससे भक्त ऊर्जा और सकारात्मकता से भर जाते हैं।
मां शैलपुत्री की पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में शुभता और सकारात्मकता का प्रवाह होता है।

जय माँ शैलपुत्री नवरात्रि भजन | By; Anuradha Paudwal lyrics

जय माँ शैलपुत्री प्रथम, दक्ष की हो संतान।
नवरात्रे के पहले दिन करें आपका ध्यान ॥

अग्नि कुण्ड में जा कूदी, पति का हुआ अपमान।
अगले जनम में पा लिया शिव के पास स्थान ॥

राजा हिमाचल से मिला पुत्री बन सम्मान।
उमा नाम से पा लिया देवों का वरदान ॥

सजा है दाये हाथ में संघारक त्रिशूल।
बाए हाथ में ले लिया खिला कमल का फूल ॥

बैल है वाहन आपका, जपती हो शिव नाम।
दर्शन ने आनंद मिले अम्बे तुम्हे प्रणाम ॥

नवरात्रों की माँ, कृपा कर दो माँ।
नवरात्रों की माँ, कृपा कर दो माँ।

जय माँ शैलपुत्री, जय माँ शैलपुत्री ॥
जय माँ शैलपुत्री, जय माँ शैलपुत्री ॥

माता शैलपुत्री कथा का पाठ 

नवरात्रि पूजन (Navratri Pujan) के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। ये ही नवदुर्गाओं (Navdurga) में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम 'सती' था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था।

कथा का पाठ 

नवरात्रि पूजन (Navratri Pujan) के पहले दिन  एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।' शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ई। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। 'शैलपुत्री' देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।

माँ शैलपुत्री का वास काशी नगरी वाराणसी में माना जाता है। वहां शैलपुत्री का एक बेहद प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां मां शैलपुत्री के सिर्फ दर्शन करने से ही भक्तजनों की मुरादें पूरी हो जाती हैं। कहा तो यह भी जाता है कि नवरात्र के पहले दिन यानि प्रतिपदा को जो भी भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है उसके सारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं। चूंकि मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ में त्रिशूल रहता है।

माँ शैलपुत्री ध्यान

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। 
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

अर्थ : देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

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