नवरात्रि का छठे दिन "माता कात्यायनी"

नवरात्रि का छठे दिन माता कात्यायनी विशेष पूजा, भजन, कथा का पाठ और ध्यान,

माता कात्यायनी की विशेष पूजा विधि नवरात्रि के छठे दिन इस प्रकार से की जाती है:

पूजा विधि:

  • स्नान और साफ-सुथरे वस्त्र: प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें, विशेष रूप से लाल या पीले वस्त्रों को प्राथमिकता दें।
  • चौकी स्थापना: पूजा स्थल पर मां कात्यायनी की चौकी लगाएं। इस पर मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • पूजन सामग्री अर्पित करें: मां को पीले वस्त्र, लाल फूल, रोली, कुमकुम, और हल्दी का तिलक अर्पित करें।
  • भोग: मां को शहद का भोग विशेष रूप से अर्पित करें, साथ ही पांच प्रकार के फल और मिठाई का भी भोग लगाएं।
  • स्नान और पुष्प अर्पण: मां की प्रतिमा को स्नान कराएं और पुष्प अर्पित करें।
  • आरती: मां कात्यायनी की आरती करें और दीपक (घी का दीपक) व धूप जलाएं।
  • मंत्र और स्तुति पाठ: दुर्गा सप्तशती, मां कात्यायनी मंत्र, स्तुति, ध्यान, और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
  • लाल चुनरी अर्पण: मां को लाल चुनरी या वस्त्र अर्पित करें।
  • सिंदूर और इत्र: मां को सिंदूर और इत्र अर्पित करें।
  • हाथ धोकर भोग: अंत में हाथ धोकर मां को भोग लगाएं और प्रार्थना करें।

मां कात्यायनी से जुड़ी मान्यताएं:

मां का रूप स्वर्ण के समान चमकीला है, उनके चार हाथ हैं। दाहिने हाथ में अभय और वर मुद्रा है, और बाएं हाथ में तलवार और कमल-पुष्प।
  • माता कात्यायनी को विशेष रूप से लाल रंग प्रिय है और शहद का भोग उनके लिए महत्वपूर्ण है।
  • पूजा से साधक को शक्ति, यश, ख्याति, और विवाह संबंधी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  • मां की कृपा से सौभाग्य, लंबी आयु और जीवन में मंगल ही मंगल होता है।
  • इस पूजा का समय शाम के गोधूलि बेला में विशेष माना जाता है। मां कात्यायनी का मंत्र:
“मां कात्यायनी नमः”
इस सरल मंत्र का जाप श्रद्धा से करें।

जय माता कात्यायनी नवरात्रि भजन | By; Anuradha Paudwal bhajan lyrics

नवरात्रि का छठा है यह माँ कात्यायनी रूप।
कलयुग में शक्ति बनी दुर्गा मोक्ष स्वरूप॥

कात्यायन ऋषि पे किया माँ ऐसा उपकार।
पुत्री बनकर आ गयी, शक्ति अनोखी धार॥

देवों की रक्षा करी, लिया तभी अवतार।
बृज मंडल में हो रही आपकी जय जय कार॥

गोपी ग्वाले आराधा था जब जब हुए उदास।
मन की बात सुनाने को आए आपके पास॥

श्री कृष्णा ने भी जपा अम्बे आपका नाम।
दया दृष्टि मुझपर करो बारम्बार प्रणाम॥

नवरात्रों की माँ कृपा करदो माँ।
नवरात्रों की माँ कृपा करदो माँ॥

जय कात्यायनी माँ।
जय जय कात्यायनी माँ ॥

माता कात्यायनी कथा का पाठ

माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

माँ कात्यायिनी ध्यान 

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कात्यायनी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे दुश्मनों का संहार करने की शक्ति प्रदान कर। इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो,उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

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