माँ कुष्मांडा का चमत्कारी मंदिर में रहस्यमयी तरीके से रिसता है जल,Maa Kushmanda Ke Chamatkaaree Mandir Me Rahasyamay Tareeke Se Risata Hai Paanee

माँ कुष्मांडा का चमत्कारी मंदिर में रहस्यमयी तरीके से रिसता है जल

नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘अदाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। 

मां कुष्मांडा देवी का प्राचीन मंदिर

घाटमपुर तहसील में मां कुष्मांडा देवी का लगभग 1000 साल पुराना मंदिर है। लेकिन इस की नींव 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी। इसमें एक चबूतरे में मां की मूर्ति लेटी थी। 1890 में घाटमपुर के कारोबारी चंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर मां दुर्गा की चौथी स्वरूप मां कुष्मांडा देवी इस प्राचीन मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में हैं। एक पिंड के रूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता रहता है और जो भक्त जल ग्रहण कर लेता है। उसका जटिल से जटिल रोग दूर हो जाता है। 
यह अब तक रहस्य बना हुआ है कि पिंडी से पानी कैसे निकलता है। कई साइंटिस्ट आए और कई सालों का शोध किया, लेकिन मां के इस चमत्कार की खोज नहीं कर पाए। यहां सिर्फ माली कराते हैं पूजा-अर्चना माता कुष्मांडा देवी में पंडित पूजा नहीं कराते। यहां नवरात्र हो या अन्य दिन सिर्फ माली ही पूजा-अर्चना करते हैं। दसवीं पीढ़ी के पुजारी माली गंगाराम ने बताया कि हमारे परिवार से दसवीं पीढ़ी की संतान हैं, जो माता रानी के दरबार में पूजा पाठ करवाते हैं। सुबह स्नान ध्यान कर माता रानी के पट खोलना, पूजा-पाठ के साथ हवन करना प्रतिदिन का काम है। मनोकामना पूरी होने पर जो भक्तगण आते हैं, हवन पूजन करवाते हैं। 

माता कुष्मांडा की कहानी शिव महापुराण के अनुसार,

भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था। लेकिन शंकर भगवान को निमंत्रण नहीं दिया गया था। माता सती भगवान शंकर की मर्जी के खिलाफ उस यज्ञ में शामिल हो गईं। माता सती के पिता ने भगवान शंकर को भला-बुरा कहा था, जिससे अक्रोसित होकर माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। माता सती के अलग-अलग स्थानों में नौ अंश गिरे थे। माना जाता है कि चौथा अंश घाटमपुर में गिरा था। तब से ही यहां माता कुष्मांडा विराजमान हैं।
यदि सूर्योदय से पहले नहा कर छह महीने तक इस नीर का इस्तेमाल किसी भी बीमारी में करे तो उसकी बीमारी शत फीसदी ठीक हो जाती है। साथ ही नवरात्र में हररोज भक्त मां के दरबार में हाजिरी लगाए और प्रसाद स्वरुप पुआ, गुण और चना चढ़ाए, कुष्मांडा माता भक्त की हर मनोकामना पूरी कर देती हैं। 

मान्यता अनुसार,-मंदिर पास बने तलाब में कभी पानी नहीं सूखता है।

पिंडी की प्राचीनता की गणना करना मुश्किल है। करीब एक हजार साल पहले एक घाटमपुर गांव जंगलों से घिरा था। इसी गांव का का ग्वाला कुढ़हा गाय चराने के लिए आता था। शाम के वक्त जब वह घर जाता और गाय से दूध निकालता तो गाय एक बूंद दूध नहीं देती। उसको शक हुआ और शाम को जब वह गाय को लेकर चलने लगा, तभी गाय के आंचल से दूध की धारा निकली। मां ने प्रकट होकर ग्वाला से कहा कि मैं माता सती का चौथा अंश हूं। ग्वाले ने यह बात पूरे गांव को बताई और उस जगह खुदाई की गई तो मां कुष्मांडा देवी की पिंडी निकली। गांववालों ने पिंडी की स्थापना वहीं करवा दी और मां की पिंडी से निकलने वाले जल को प्रसाद स्वरुप मानकर पीने लगे।

माता कुष्मांडा की उपासना

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

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