माँ कात्यायनी देवी विराजमान वृन्दावन - गोपियों ने भगवान कृष्ण को पाने के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की,Maa Katyayani Devi Virajman Vrindavan - Gopiyon Ne bhagavaan Krshn Ko Paane Ke Lie Maa Katyayani Kee Pooja Kee
माँ कात्यायनी देवी विराजमान वृन्दावन - गोपियों ने भगवान कृष्ण को पाने के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की
ब्रह्मावैवर्त और पुराण के अनुसार "ब्रजे कात्ययनीय परा" है. अर्थात यहांपर वृंदावन में ब्रह्माशक्ति कात्यायनी विराजमान है. यह शक्तिपीठ 108 शक्तिपीठों में से एक कहा गया है. इस स्थान पर विराजित कात्यायनी देवी के हाथ में उच्चवल चंद्रहास नामक तलवार है. और वह सिंहासन पर आसीन है. यहां माता को उमा और भगवान शिव को भूतेश कहा जाता है इस शक्तिपीठ की स्थापना से संबन्धित एक मान्यता के अनुसार यहां पर देवी सती के केश गिरे थें निम्न पंक्तियां से यह मान्यता स्पष्ट होती है
चंद्रहासोजज्ववलाकारा शार्दूल वरवाहना।
कात्यायनि शुंभ दद्धाद देवी दानव घातिनी।।
यह अत्यंत प्राचीन सिद्धपीठ है. जिन स्थानों पर देवी सती के विभिन्न अंग गिरे,उन स्थानों पर शक्तिपीठों कि स्थापना हुई. इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है, कि जिन पावन भूमियों में देवी देवताओं ने अधर्म का नाश कर धर्म की रक्षा की उन स्थानों को तीर्थ या सिद्ध शक्ति पीठ का नाम दिया गया
श्रीकृ्ष्ण की पावन क्रीडाभूमि वृंदावन
श्रीकृ्ष्ण की पावन क्रीडाभूमि वृंदावन में यमुना के निकत राधाबाग स्थित माँ कात्यायनि देवी का यह सिद्धपीठ अति प्रख्यात है. कात्यायनी नवदुर्गा में षष्ठ दुर्गा है. कहते है, कि ब्रज बालाओं ने श्री कृ्ष्ण को पाने के लिये इस सिद्ध पीठ में मां कात्यायनी कि पूजा-उपासना की थी. कालरुप पीठ के तत्कालीन स्वामी के शिष्यों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था वृंदावन स्तेशन मधुरा से 15 किलोमीटर आगे है यहां पर इस्काँन द्वारा भव्य राधा-कृ्ष्ण मंदिर भी दर्शनीय है. इसके अतिरिक्त भी यहां अनेक प्रसिद्ध मंदिर है श्री बांकेबिहारी जी का मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण विशेष रु से जाना जाता है.
वृंदावन का शक्तिपुंज भगवती कात्यायनी का पौराणिक महत्व
मान्यता है कि वृंदावन की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए भगवती कात्यायनी की बालू से मूर्ति बनाई और पूजा-अर्चना की। यह आज पीठ के रूप में विद्यमान है। वृंदावन के राधाबागमें भगवती कात्यायनी का पौराणिक शक्तिपीठ है। इसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त्तपुराणऔर आद्यास्तोत्रमें मिलता है- व्रजे कात्यायनी परा। वृंदावन में आद्याशक्तिकात्यायनी के नाम से प्रतिष्ठित है। तंत्रशास्त्रके ग्रंथों के अनुसार, ब्रज में सती के केश गिरे थे। -गोपियों की कात्यायनी पूजा श्रीमद्भागवत महापुराणके दशम स्कंध में ब्रज की गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के उद्देश्य से भगवती कात्यायनी की पूजा और व्रत करने का वर्णन मिलता है। इस कथा का सार यह है कि ब्रज की गोपियां योगेश्वर श्रीकृष्ण पर मोहित होने के कारण उन्हें पति रूप में पाने के लिए इच्छुक थीं। वे जब यमुना तट पर एकत्र हुई, तभी वृंदादेवीउनके सामने एक तपस्विनी के रूप में आई। उन्होंने गोपियों को कात्यायनी देवी की आराधना का परामर्श दिया।
उन्होंने गोपियों को हेमंत ऋतु के प्रथम मास मार्गशीर्ष अगहन में पूरे महीने व्रत रखने को कहा, जिसमें केवल फलाहार किया जाता है। गोपियां नित्य सूर्योदय होने से पूर्व ब्रह्ममुहूर्त्तमें श्रीकृष्ण के नाम का जप करते हुए यमुना-स्नान करतीं। वे बालू से कात्यायनी माता की मूर्ति बनाकर उसे फल-फूल, धूप-दीप, नैवेद्य अर्पित करने लगीं। इस प्रकार ब्रज की कुमारियांविधि-विधान से जगदंबा की अर्चना में जुट गई। -कात्यायनी मंत्र गोपियां मां कात्यायनी की पूजा के बाद इस मंत्र का जप करने लगीं-
ऊं कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी
नंदगोपसुतं देवि पति में कुरुतें नम:
हे कात्यायनी! महामाया! नंद गोप के पुत्र श्रीकृष्ण को हमारा पति बना दें। हम आपको प्रणाम करती हैं। यह मंत्र श्रीमद्भागवत महापुराणके दशम स्कंध के 22वेंअध्याय का चौथा श्लोक है। कहते हैं कि कात्यायनी देवी के व्रत-अनुष्ठान से गोपियों की मनोकामना पूर्ण हुई। इसके बाद यह विधान कन्याओं के लिए मनोनुकूल वर पाने का साधन बन गया। आज भी युवतियां अपनी भावना के अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए बडी श्रद्धा के साथ यह अनुष्ठान करती हैं। -कात्यायनी पीठ का पुनरोद्धार द्वापरयुगमें व्रज की गोपियों द्वारा पूजित कात्यायनी माता का शक्तिपीठ कलियुग में लुप्त हो गया।
मां भवानी की प्रेरणा से स्वामी केशवानंदवृंदावन आए और उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह स्थान खोज निकाला। स्वामीजीने राधाबागमें एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया। वर्ष 1923में माघी पूर्णिमा के दिन मां कात्यायनी की मूर्ति स्थापित की गई। इसके साथ ही गणेश, शिव, विष्णु और सूर्य की भी स्थापना हुई। स्वामी केशवानंदके बाद स्वामी सत्यानंद और बाद में स्वामी नित्यानंद ने पीठ का कार्यभार संभाला। वर्तमान समय में स्वामी विद्यानंदके हाथों में कात्यायनी पीठ की व्यवस्था है। भक्त मानते हैं कि उन्हें कात्यायनी पीठ में देवी की साक्षात उपस्थिति का अनुभव होता है।
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