Maa Brahmacharini Temple: मां के दर्शन से व्यक्ति को यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है,Maa Ke Darshan Se Vyakti Ko Yash Aur Keerti Kee Praapti Hotee Hai

मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर काशी के दुर्गा घाट में स्थित और मां के दर्शन करने से यश और कीर्ति प्राप्त

नवरात्रि पर तो इस मंदिर में लाखों भक्त मां के दर्शन करने के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि मां के इस रूप का दर्शन करने वालों को संतान सुख मिलता है साथ ही वो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर काशी के  दुर्गा घाटमें स्थित है दुर्गा की पूजा के क्रम में दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन-पूजन होता है
काशी के माता ब्रह्मचारिणी का मंदिर गंगा किनारे दुर्गा घाट पर स्थित है मां ब्रह्मचारिणी के मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है श्रद्धालु लाइन में लगकर मां का दर्शन प्राप्त करते हैं श्रद्धालु मां के इस रूप का दर्शन करने के लिए नारियल, चुनरी, माला फूल आदि लेकर श्रद्धाभक्ति के साथ अपनी बारी आने का इंतजार करते हैं

मां के दर्शन करने से यश और कीर्ति प्राप्त 

ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल रहता है. जो देवी के इस रूप की आराधना करता है उसे साक्षात परब्रह्म की प्राप्ति होती है. मां के दर्शन मात्र से श्रद्धालु को यश और कीर्ति प्राप्त होती है

ब्रह्मचारिणी पूजा विधि :

 देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें. प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें. इनकी पूजा के पश्चात मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें.
देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें -

“दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू. 
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा”

इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) व कमल काफी पसंद है उनकी माला पहनायें. प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. अंत में क्षमा प्रार्थना करें “आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी 

मां ब्रह्मचारिणी की ध्यान :

 वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
 जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

 गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
 धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥

 परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
 पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

मां ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ :

 तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
 ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

 शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
 शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

ब्रह्मचारिणी की कवच :

 त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
 अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

 पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
 षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

 अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

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