आश्विन अमावस्या का महत्व और ध्यान रखने योग्य बातें,Ashwin Amavasya ka mahatv aur dhyaan rakhane yogy baaten

आश्विन अमावस्या का महत्व और ध्यान रखने योग्य बातें

आश्विन महीने की अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है, पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह दिन पितृपक्ष के समापन का प्रतीक है, और पितरों की कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए अनेक कर्मकांड किए जाते हैं। इसके प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं:

  • पितृपक्ष का अंत: यह दिन पितरों को विदा करने का होता है, क्योंकि मान्यता है कि पितृ इस दिन पितृलोक वापस लौट जाते हैं।
  • परेशानियों से मुक्ति: पितरों की पूजा करने से व्यक्ति की समस्याएं और बाधाएं दूर होती हैं।
  • पितृ ऋण से मुक्ति: इस दिन पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है, जिससे जीवन में समृद्धि और शांति आती है।
  • तर्पण का महत्व: पितरों को तर्पण अर्पित करने से वे तृप्त होते हैं और परिवार को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • शनिदेव की पूजा: पितरों की पूजा के बाद शनिदेव की आराधना करने से शनि की महादशा के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।
  • गंगाजल से स्नान: गंगाजल मिलाकर स्नान करने से तीर्थ स्नान का फल मिलता है, जिससे शरीर और आत्मा शुद्ध होती है।
  • दान-पुण्य: इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है, खासकर गाय को घास खिलाना और जरूरतमंदों को भोजन देना।
  • वृक्षारोपण: पेड़-पौधे लगाना भी इस दिन पुण्य का कार्य माना जाता है, जिससे पर्यावरण की रक्षा होती है।
  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप: भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र या शिव के नाम का जाप अत्यंत फलदायी होता है।

सर्वपितृ अमावस्या का यह दिन पितरों की संतुष्टि और उनके आशीर्वाद से जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए विशेष महत्व रखता है।

अश्विन अमावस्या के दिन ध्यान रखने योग्य बातें

अश्विन अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है, पितरों का श्राद्ध करने और उन्हें सम्मानित करने का विशेष दिन है। इस दिन किए गए कर्म पितरों को शांति प्रदान करते हैं और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि आती है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं, जो इस दिन ध्यान में रखनी चाहिए:

  • सर्वपितृ श्राद्ध: इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। यदि किसी का व्यक्तिगत तिथि श्राद्ध नहीं हो सका हो, तो इस दिन पूरे वंश के पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जा सकता है।
  • पवित्र नदियों में स्नान: पितरों की आत्मा की शांति के लिए पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह स्नान पापों के नाश और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है।
  • सूर्यदेव को जल अर्पित करना: सुबह जल्दी उठकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें और पितरों को तर्पण करें। इससे सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • सायंकाल दीपदान: शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं और पितरों को प्रसाद के रूप में पूड़ी, सब्ज़ी, और अन्य मिष्ठान रखें। इससे पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
  • लोहे और स्टील के बर्तनों का प्रयोग वर्जित: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन लोहे और स्टील के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर पीतल के बर्तनों का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
  • पितरों का भोजन: पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन को भगवान को भोग नहीं लगाना चाहिए और न ही उसे चखना चाहिए। यह भोजन विशेष रूप से पितरों के लिए अर्पित किया जाता है।
  • ब्रह्म मुहूर्त स्नान: इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में, यानी सूर्य उदय से पहले स्नान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यह आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है, और इसे पितरों की प्रसन्नता के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

अश्विन अमावस्या के दिन इन परंपराओं और नियमों का पालन करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है, जिससे परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि बनी रहती है।

अश्विना अमावस्या  FQA :-

  • अश्विना अमावस्या क्या है?
आश्विन अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। ये पंद्रह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए समर्पित हैं जो अपने मृत माता-पिता / दादा-दादी / परदादा-परदादी आदि की शांति के लिए प्रार्थना करना चाहते हैं।
  • क्या अश्विन महीना शुभ है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आश्विन मास में पितृ पक्ष और नवरात्रि जैसे कई शुभ त्योहार मनाए जाएंगे। हिंदुओं में इस पूरे महीने को बहुत शुभ माना जाता है ।
  • आश्विन मास की अमावस्या कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन अमावस्या तिथि की शुरुआत 01 अक्टूबर को रात 09 बजकर 39 मिनट पर होगी और 03 अक्टूबर को देर रात 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। यह गणना अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार है। सनातन धर्म में सूर्योदय के बाद से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए 2 अक्टूबर को अश्विन अमावस्या है।
  • आश्विन मास में कौन सा त्यौहार आता है?
सबसे पहले प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि उत्‍सव मनाया जाता है. इसके बाद दशमी तिथि को दशहरा या विजयादशमी पर्व मनाते हैं. इसके बाद शरद पूर्णिमा मनाई जाती है, जिसे कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं. अश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है

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