विष्णु के द्वारा शिव की स्तुति,Vishnu Ke Dvaara Shiv Kee Stuti

विष्णु के द्वारा शिव की स्तुति

विष्णु भगवान कहने लगे- हे एकाक्षर रूप ! हे रुद्र ! हे अकार स्वरूप ! हे आदि देव ! हे विद्या के स्थान ! आपको नमस्कार है। हे मकार स्वरूप ! हे शिव स्वरूप ! हे परमात्मा ! सूर्य, अग्नि और चन्द्रमा के वर्ण वाले ! हे यजमान स्वरूप ! आपको नमस्कार है। आप अग्नि स्वरूप हो, रुद्र रूप हो। हे रुद्रों के स्वामी! आपको नमस्कार है। आप शिव हैं, शिव मन्त्र हैं, वामदेव हैं, वाम हैं, अमृत्व के वरदायक हैं, अघोर हैं, अत्यन्त घोर हैं, ईशान हैं, श्मशान हैं, अत्यन्त वेगशाली हैं, श्रुतियाँ जिनकी पाद है, ऊर्ध्वलिंग हैं, हेमलिंग हैं, स्वर्ण स्वरूप ही हैं, शिवलिंग हैं, शिव हैं, आकाश व्यापी हैं, वायु के समान वेग वाले हैं, वायु के समान व्याप्त हैं, ऐसे तेजस्वी संसार के भरण करने वाले आपको नमस्कार है।


आप जल स्वरूप हैं, जल भूत हैं, जल के समान व्यापक हैं, आप पृथ्वी और अन्तरिक्ष हैं, ऐसे आपको नमस्कार है। आप एक स्पर्श रूप रस गन्ध रूप हैं, आप गुह्य से भी गुह्यतम हैं, हे गणाधिपतये ! आपको नमस्कार है। आप अनन्त हैं, विश्व रूप हैं वरिष्ठ हैं, आपके गर्भ में जल है, आप योगी हो, आप बिना रूप के हैं तथा कामदेव के रूप को भी हरण करने वाले हैं, भस्म से शरीर लिपटा हुआ है, सूर्य, अग्नि तथा चन्द्रमा के कारण रूप हो, श्वेत वर्ण के हैं, बर्फ से भी अधिक श्वेत हैं। सुन्दर मुख है, श्वेत शिखा है, हे श्वेत लोहित ! आपको नमस्कार है। हे ऋद्धि, शोक और विशोक रूप ! हे पिनाकी ! हे कपर्दो ! हे विपाश! हे पाप नाशन! हे सुहोत्र ! हे हविष्य ! हे सुब्रह्मण्य! हे सूर ! हे दुर्दमन ! हे कंकाय ! हे कंकरूप ! हे सनक सनातन ! हे सनन्दन ! हे सनत्कुमार ! हे संसार की आँख ! हे शंख पाल ! हे शंख ! हे रज! हे तम ! हे सारस्वत ! हे मेघ ! हे मेघ वाहन ! आपको नमस्कार है।

हे मोक्ष ! हे मोक्ष स्वरूप ! हे मोक्ष करने वाले ! हे आत्मन ! हे ऋषि ! हे विष्णु के स्वामी! आपको नमस्कार है। हे भगवान ! आपको नमस्कार है। हे नागों के स्वामी ! आपको नमस्कार है। हे ओंकार रूप ! हे सर्वज्ञ ! हे सर्व ! हे नारायण ! हे हिरण्यगर्भ ! हे आदि देव ! हे महादेव ! हे ईशान ! हे ईश्वर ! आपको नमस्कार है। हे शर्व! हे सत्य ! हे सर्वज्ञ ! हे ज्ञान ! हे ज्ञान के जानने के योग्य ! हे शेखर ! हे नीलकण्ठ ! हे अर्धनारीश्वर ! हे अव्यक्त ! आपको नमस्कार है। हे स्थाणु ! हे सोम ! हे सूर्य ! हे भव ! हे यश करने वाले ! हे देव ! हे शंकर! हे अम्बिका पति ! हे उमापति ! हे नीलकेश ! हे वित्त ! हे सर्पों के शरीर में आभूषण पहनने वाले ! नन्दी बैल पर सवारी करने वाले ! सभी के कर्त्ता ! भर्त्ता आदि, रामजी के नाथ! हे राजाधिराज ! पालन करने वालों के स्वामी! केयूर के आभूषण पहनने वाले ! श्रीकण्ठ (विष्णु) के भी नाथ ! त्रिशूल हाथ में धारण करने वाले ! भुवनों के ईश्वर ! हे देव ! आपको नमस्कार है।

हे सारंग, हे राजहंस ! हे सर्पों के हार वाले ! हे यज्ञोपवीत वाले ! सर्प की कुण्डली की माला वाले ! कमर में सर्पों का सूत्र धारण करने वाले ! हे वेद गर्भाय ! हे संसार को अपने पेट (गर्भ) में रखने वाले ! हे संसार के गर्भ ! हे शिव ! आपको बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मा जी बोले- हे देवताओ ! इस प्रकार मुझ ब्रह्मा के साथ भगवान विष्णु महादेव जी की स्तुति करके रुक गए। इस पुण्य, सब पापों को नाश करने वाले स्तोत्र के द्वारा जो स्तुति करता है, पढ़ता है अथवा ब्राह्मण या वेद पारंगत विद्वानों के द्वारा श्रवण करता है, वह चाहे पापी ही क्यों न हो परन्तु ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। इसलिए सभी पापों से शुद्ध होने के लिए विष्णु भगवान के द्वारा कहे गए इस स्तोत्र को नित्य ही जपना चाहिए अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा इसे श्रवण करना चाहिए।

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