वस्त्र के द्वारा छान कर शिव-मन्दिर के लेपन का वर्णन,Vastr Ke Dvaara Chhaana kar Shiv-Mandir Ke Lepan Ka Varnan

वस्त्र के द्वारा छान कर शिव-मन्दिर के लेपन का वर्णन

सूतजी बोले- हे श्रेष्ठ मुनियो ! वस्त्र में जल को छान कर शिवजी के मन्दिर का लेपन करना चाहिए अन्यथा सिद्धि नहीं होती है। जल तो सदा पवित्र होते ही हैं। वस्त्रपूत और नदी के जल विशेष पवित्र होते हैं। इसलिए सब देव कार्य पवित्र जल से करने चाहिए। सूक्ष्म जन्तुओं से मिले जल से जन्तु हत्या करके जो जल प्राप्त होता है वह अपवित्र होता है। लेपन में, मार्जन में, अग्नि जलाने में, पीसने में जल ग्रहण करने में गृहस्थी को सदा हिंसा लगती है। सब प्राणियों का अहिंसा परम धर्म है इससे सदा वस्त्रपूत जल से कार्य करना चाहिए। मनुष्य को सदा कर्म, मन और वाणी से अहिंसक होना चाहिए। वेद पाठी ब्राह्मण को तीनों लोकों का दान करने पर जो फल मिलता है उससे करोड़ गुना फल अहिंसक को मिलता है मन, वचन और शरीर से सब जन्तुओं पर दया करते हैं वे पुत्र, पौत्र सहित रुद्र लोक में बसते हैं। इससे वस्त्रपूत जल से शिव मन्दिर को छिड़कना तथा स्नान करना चाहिए। त्रिलोकी को मारकर जो पाप होता है वह शिव मन्दिर में एक ही जन्तु को मारने के बराबर पाप समझना चाहिए वस्त्रपूत जल से कार्य करना उचित है।


ययाति क्षत्रियों को यथार्थ पशु की हिंसा तथा दुष्टों की हिंसा कही है परन्तु ब्रह्मवादी योगीजनों को कुछ भी विहित अविहित नहीं है। इससे पाप में रत मनुष्य की भी हिंसा नहीं करनी चाहिए। स्त्रियों की भी हिंसा नहीं करनी चाहिए। चाहे वे मलिन ही क्यों न हों। जो मनुष्य वेद वाह्य हैं, पापी हैं, स्पर्श करने योग्य नहीं हैं, दर्शन योग्य नहीं हैं उनको भी नहीं मारना चाहिए। उन्हें देखकर सूर्य का दर्शन करना चाहिए। जो सत्पुरुषों के संग से एक बार भी शिव का पूजन करता है वह शिव लोक को प्राप्त होता है। जो शिव की भक्ति से हीन पुरुष है वह निर्दय और दुखी होते हैं। जो देव देव शिव के भक्त हैं, वे भाग्यवान हैं। वे सब भोगों को भोगकर मुक्त होते हैं। जो जन शिव में आसक्त हैं, ऐसे भक्तों के संग से एक बार भी शिव में आसक्त हो जाय तो उसको परमेश्वर का लोक दूर नहीं है।

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